एक बार फिर से सुर्खियों में आया आईआईटी इंदौर ने कमाल कर दिखाया है। हाल ही में आईआईटी इंदौर ने एल्जाइमर की बीमारी पर रिसर्च किया था। अब इस संस्थान ने सिमरोल ग्राम के किसानों को सस्टेनेबल फार्मिंग और मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार के लिए एडवांस्ड टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल के बारे में जानकारी दी, जो किसानों के लिए कारगार साबित होगी। इससे किसानों को नुकसान कम और फसल की उत्पादकता बढ़ाने में सहायता मिल सकती है। इस दौरान गांव घोसीखेड़ा और सिमरोल के 100 से अधिक किसान मौजूद थे।
सस्टेनेबल फार्मिंग कृषि के बारे में सोचने का एक सरल तरीका यह है कि इसमें भविष्य की पीढ़ियों की क्षमता से समझौता किए बिना आज की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त भोजन और फाइबर का उत्पादन करना शामिल है। स्थिरता को महत्व देने वाले किसान और पशुपालक उत्पादक संचालन करते समय तीन सामान्य लक्ष्यों को अपनाते हैं- दीर्घ अवधि में लाभ, हमारे देश की भूमि, वायु और जल की देखभाल, किसानों, पशुपालकों, कृषि कर्मचारियों और हमारे समुदायों के लिए जीवन की गुणवत्ता।
कंपनी के को-फाउंडर और सीईओ डॉ. चंद्रभान पटेल ने फर्टिलाइजर के उपयोग से सस्टेनेबल फार्मिंग के नए तरीकों पर चर्चा की गई। उन्होंने बताया कि आईआईटी इंदौर के प्रोफेसर के मार्गदर्शन में क्वटिक एल 2एम द्वारा बनाई गई है साथ ही यह टेक्नोलॉजी 20 सेकंड में मिट्टी की जांच भी कर सकती है। मशीन लर्निंग व आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का उपयोग करके फसलों की उत्पादकता व गुणवत्ता में सुधार किया जा सकता है।
इस तकनीकि से फसलों में होने वाली बीमारियों की पहचान करने में मदद मिलेगी:
क्वांटेक एल 2एम के निदेशक एवं आईआईटी के प्रोफेसर मुखर्जी ने बताया कि उनके पास ऐसी मशीन उपलब्ध है, जिससे फसलो में होने वाली बीमारियों की पहचान समय पर की जा सकती है। चीफ टेक्निकल ऑफिसर विकास वर्मा ने बताया कि यह मशीन किसानों को मिट्टी पैरामीटर के बारे में तुरंत जानकारी प्रदान कर सकती है। इसकी मदद से किसान जान सकते हैं कि उनके खेतों में कौन से फर्टिलाइजर और दवाइयों की जरूरत है। जिससे उनकी भूमि से फसलों का उत्पादन बढ़ सके।