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गर्मियों में किसान खेतों को खाली ही छोड़ देते हैं। अप्रैल माह के अंत तक लगभग गेहूं और सरसों की कटाई हो जाती है। खाली खेत छोड़ने के बजाय खेत की अच्छी जुताई करके तिल के बीज की सही ढ़ग से बुवाई कर दें। विशेषकर इस सीजन में तिल की फसल में पानी का खास ध्यान देना पड़ता है। सही समय पर सिंचाई करनी चाहिए।
तिल की खेती के लिए आपको उन्नत तकनीकों और सही प्रबंधन करना चाहिए। एक हेक्टेयर में बुआई के लिए 5 से 6 किलोग्राम तिल के बीज की आवश्यकता है और खरीफ में वर्षा की शुरुआत होते ही, जून से मध्य जुलाई तक बुआई की जा सकती है। बुआई के समय, कतार से कतार की दूरी को 25-30 सेंटीमीटर और पौधा से पौधा की दूरी को 10-12 सेंटीमीटर बनाए रखना चाहिए। हल्की सिंचाई से भूमि में नमी को बनाए रखने के लिए बुआई के समय हल्की सिंचाई भी करना चाहिए।
तिल की खेती के लिये खाद और उर्वरक का उपयोग मिट्टी की जांच के आधार पर करें। तिल की अच्छी उपज प्राप्त करने के लिये बुवाई से पूर्व 250 किलोग्राम जिप्सम का प्रयोग करना चाहिए। बुवाई से पहले 250 किलोग्राम नीम की खली का प्रयोग करना लाभदायक होता है। खरपतवार नियंत्रण के लिए पहली निकाई-गुड़ाई बुवाई के 15-20 दिनों के बाद और दूसरी निकाई-गुड़ाई 30-35 दिनों के अंदर करें।
तिल की खेती के लिये बलुई दोमट मिट्टी सबसे अच्छी होती है। इसके बाद रोटावेटर से खेत को कम से कम दो बार जुताई करनी चाहिए। इसके बाद दो से तीन बार कल्टीवेटर से खेत की जुताई करनी चाहिए। तिल के बीज की बुवाई करते समय एक पंक्ति में करना चाहिए। इससे फसल की उपज अच्छी होगी। अगर किसान इस तरह से तिल की खेती करेंगे, तो अवश्य ही उन्हें अच्छा मुनाफा होगा।
तिल की बुवाई के 20 से 25 दिन बाद फसल की सिंचाई करनी चाहिए। दूसरी सिंचाई 10 से 12 दिन के अंतराल पर करनी चाहिए। गर्मियों के सीजन में बाजार में तिल का भाव काफी ज्यादा रहता है, जिससे किसानों को एक एकड़ फसल से ही लाखों रुपए का मुनाफा हो सकता है।