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Bael Cultivation in Hindi: बेल की खेती से किसान कर सकते हैं अच्छी कमाई, जाने बेल की खेती की पूरी जानकारी हिंदी में

बेल की खेती
बेल की खेती

बेल को श्रीफल के नाम से जाना जाता है। बेल का धार्मिक महत्व है जो सदाफल, बिल्व, शैलपत्र और लक्ष्मीपुत्र के नाम से भी जानते हैं। हिन्दू धर्म में बेल के पौधे को बहुत पवित्र माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि इसकी जड़ों में महादेव शिव निवास करते हैं। इसी वजह से इसका बेलपत्र भगवान शिव को चढ़ाया जाता है। इस बेल फल का इस्तेमाल औषधीय रूप में भी किया जाता है। गर्मियों में बेल की पत्तियां झड़ जाती हैं जिसके कारण इसके पौधे शुष्क और अर्धशुष्क जलवायु में आसानी से उगाया जा सकता है।

बेल की खेती किस प्रकार करें How to vine farming:

बेल की खेती भारत में सभी जगह की जाती है। इसके शाखाओं में कांटे होते हैं जो 25 से 30 फिट की ऊंचाई का होता है। बेल के अन्दर का भाग जूस बनाने और खाने में किया जाता है। इसके फल पकने के बाद पीले दिखाई देते हैं तथा बाहर से कठोर होते है जिस कारण इसे पथरीला फल भी कहा जाता है। बेल के पौधे को कलम या बीज के माध्यम से नर्सरी में तैयार किया जाता है। बीज के रूप में कलम तैयार करने के लिये इसके बीजों को फलों से निकालने के तुरंत बाद खेतों में लगा दिया जाता है। डेढ़ से दो साल बाद उन्हें ग्राफ्टिंग विधि से पौध के रूप में तैयार किया जाता है। व्यावसायिक तौर पर खेती करने के लिये गुटी दाब विधि से इस्तेमाल किया जाता है। इस विधि से पौध एक से डेढ़ माह में रोपाई के लिये तैयार हो जाते हैं। किसान भाई नर्सरी से भी इसके पौधे लेकर खेतों में लगा सकते हैं। पौध लेते वक्त ध्यान रखें कि एक साल पुराना और अच्छे से विकास कर रहा रोग रहित पौधा ही लें।

बेल के लिये खेत की तैयारी Field preparation for vine:

बेल के पौधे को लगाने के लिये खेतों में कढ्ढे तैयार कर लगाया जाता है। गढ्ढा तैयार करने से पहले खेत को हलों से गहरी जुताई करें फिर कुछ दिनों के लिये खुला छोड़ दें ताकि सूर्य की तेज धूप ठीक से लग जाये। खेत की कल्टीवेटर से जुताई कर देना चाहिये। फिर पानी लगा देना चाहिए इसके बाद जब खेत की मिट्टी सूखी दिखाई देने लगे रोटरावेटर लगाकर जुताई करना चाहिए। इस प्रकार खेत तैयार हो जाता है।

तापमान, जलवायु तथा मिट्टी की आवश्यकता Temperature, climate and soil requirement:

बेल के पौधों को शुरूआती अवस्था में वृद्धि करने के लिये सामान्य तापमान की आवश्यकता होती है। पूर्ण रूप से वृद्धि करने पर किसी भी तापमान पर आसानी से विकास कर सकते हैं। इसके पौधे गर्मियों में अधिकतम 50 डिगी और न्यूनतम 0 डिग्री तापमान सहन कर सकते हैं तथा 30 डिग्री तापमान पर पौधे अच्छे से विकास करते हैं।

बेल की खेती के लिये शुष्क तथा अर्धशुष्क जलवायु उपयुक्त है। सूर्य की धूप लगने पर इसके पौधे अधिक वृद्धि करते हैं। इसकी खेती सर्दी और गर्मी दोनों मौसम के लिये उपयुक्त होते हैं। इसके पौधे को कम पानी की आवश्यकता होती है।
बेल की खेती सभी प्रकार की भूमि पठारी, बंजर, कठोर, और रेतीली में आसानी से की जा सकती है। इसकी खेती के लिये भूमि का पी.एच. मान 5 से 8 के बीच होना चाहिए। इसकी अच्छी खेती के लिये भूमि में जल भराव नहीं होना चाहिए। 

बेल की उन्नत किस्में Improved Vine Varieties:

  1. नरेन्द्र बेल 5 - इस किस्म के पौधे कम ऊंचाई वाले और अधिक फैले हुए होते हैं। इस किस्म प्रत्येक पेड़ो की औसतन उपज 70 से 80 किलो के आसपास पाई जाती है। इसके फल ऊपर से हल्के चपटे और सामान्य आकार के होते हैं। जिसके अंदर पाए जाने वाले गुदे में बीजों की मात्रा काफी कम होती है।
  2. नरेन्द्र बेल 9 - बेल की इस किस्म के पौधे मध्यम ऊंचाई के पाए जाते है। इस किस्म के पौधों पर लगने वाले फलों का आकार गोल तथा अंडाकार बड़ा होता है। इसके गुदे में मिठास की मात्रा ज्यादा पाई जाती है। इस किस्म का सात साल बाद औसतन उत्पादन 50 किलो के लगभग पाया जाता है। 
  3. गोमा यशी - बेल की इस किस्म को कम समय में अधिक उत्पादन के लिए सेंट्रल हॉर्टिकल्चर एक्सपेरिमेंट स्टेशन, गोधरा (गुजरात) के द्वारा तैयार किया गया है। एक पेड़ से सालाना 70 किलो के आसपास फल प्राप्त होते हैं। इसके फलों का आकार बड़ा और पकने के बाद उनका रंग हरा पीला दिखाई देता है।

बेल के फायदे तथा महत्व: बेल का स्वास्थ्य के लिये कई सारे फायदे होते हैं। यह शरीर में होने विभिन्न प्रकार की बीमारियो जैसे- दस्त डायबटीज वात रोग पेचिश ल्यूकोरिया तथा शरीर कफ के लिये अधिक लाभकारी होता है। बेल के अन्दर की तासीर ठंडी होती है। जिससे इस फल का मुरब्बा और पेय पदार्थ बनाने के लिये उपयोग में लाया जाता है। गर्मियों के समय में बाजारों में बेल का शर्बत लोगों को अधिक पसंद किया जाता है। इसकी छाल पत्ते और जड़े औषधीय रूप में इस्तेमाल किया जाता है। हिन्दू धर्म में बेलपत्र या बेल के पौधे को बहुत ही पवित्र माना जाता है जिसे भगवान शिव को चढ़ाया जाता है। इसलिये इसका महत्व बहुत अधिक है।

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बेल की फसल तुड़ाई, पैदावार तथा कमाई: बेल का पौधा 7 वर्ष के बाद पैदावार देना शुरू कर देता है। जब फल हरे से हल्के पीले रंग के दिखाई देने लगे तब फलों को तोड़ लेना चाहिए। तुड़ाई के बाद एकत्रित करके बाजार में कूढे़ लगाकर बेच सकते हैं। एक बेल के पौधे से लगभग 40-50KG का उत्पादन प्राप्त हो जाता है। बेल के पौधों के बीच खाली बची हुई जमीन में औषधि सब्जी मसाला कम समय में तैयार होने वाली फसल जैसे पपीता आदि फसलों को उगा सकते हैं। जिससे किसान भाईयों को पैदावार भी मिलती है और कम समय में अधिक फसलों को भी लगाया जा सकता है। बेल का बाजार में भाव भी अच्छा प्राप्त होता है तथा किसान भाई इसकी खेती करके अच्छा लाभ कमा सकते हैं।

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