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धान खरीफ सीजन की एक प्रमुख फसल है। इस समय किसानों ने बड़े स्तर पर धान की खेती की है। लेकिन, अब कई जगह किसानों के सामने फसल में बकानी रोग लगने की समस्या आ रही है। कृषि विभाग ने फसल को इस रोग से बचाने के लिए एडवाइजरी जारी की है।
कृषि विभाग के अधिकारियों ने जब कासगंज जिले में निरीक्षण किया तो कुछ जगह फफूंद जनित बकानी रोग का धान की फसल पर प्रकोप देखने को मिला है। कासगंज के जिला कृषि अधिकारी डॉ अवधेश मिश्र ने बताया कि इस रोग का प्रकोप मुख्य रूप से धान की तीन प्रजातियों पर देखने को मिलता है। बासमती 1692, पूसा बासमती 1509 और पूसा बासमती 1718 प्रजाति। जिन पौधों में बकानी रोग लग गया है उन्हें खेत से निकालकर गढ्ढे में दबा दें।
यूपी के कासगंज जिला के कृषि अधिकारी डॉ अवधेश बताते हैं, बासमती धान में यह रोग लगने पर प्रभावित पौधा अन्य पौधों की तुलना में अधिक लंबा हो जाता है। साथ ही इस पौधे की ऊपर की पत्ती की लंबाई बहुत अधिक और संरचना तलवार जैसी नुकीली हो जाती है। मुख्य तने पर गांठ बन जाती है और इस पौधे में धान की बाली नहीं बनती। इस रोग से प्रभावित पौधों की जड़ें फूल जाती हैं और इसमें गांठ के ऊपर सफेद रेशे निकल आते हैं। यहीं से पौधा सड़ने लगता है और अंत में सूख जाता है।
कृषि अधिकारी डॉ अवधेश ने इस रोग को फसल में फैलने से बचाव के लिए कुछ अन्य उपाय बताते हैं। उन्होने बताया कि एक एकड़ क्षेत्र में तीन किलोग्राम ट्राइकोडर्मा, 500 ग्राम थायोफिनेट मिथाइल और 20 ग्राम स्ट्रेप्टोसाइक्लिन को 150 से 200 लीटर पानी में घोलकर धान की जड़ों में छिड़काव करें। विकास खंडों पर स्थित राजकीय कृषि रक्षा इकाइयों पर ट्राइकोडर्मा 75 फीसदी अनुदान पर मिलती है। रोग से प्रभावित खेत में यूरिया का प्रयोग कम करने की सलाह देते हैं। धान के खेत की लगातार निगरानी करते रहें।
तना छेदक कीट धान की फसल को पहुंचाता है नुकसान: इस समय धान की फसल मे तना छेदक का भी प्रकोप देखने को मिलता है। प्रदेश में कुछ किसानों के सामने खेत में तना छेदक कीट लगने की समस्या आती है। इससे धान की फसल में सफेद बालियां आती हैं और उनमें धान नहीं होता। लखनऊ के प्लांट प्रोटेक्शन ऑफिसर महेश चंद्र बताते हैं, इससे खेत को बचाने के लिए प्रोफेनोफस 50 फीसदी ईसी एक एमएल प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव कर सकते हैं। ऐसा करने से तना छेदक कीट खत्म हो जाएंगे और धान में सफेद बालियां नहीं निकलेंगी।