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Basil Cultivation in Hindi: तुलसी की खेती और इसके फायदे, औषधीय गुण तथा महत्व जानें

तुलसी की खेती और इसके फायदे
तुलसी की खेती और इसके फायदे

हिन्दू धर्म में, तुलसी को देवी के रूप में पूजा जाता है और तुलसी के पौधे के हर हिस्से को पवित्र माना जाता है। तुलसी की विशेष लौंग जैसी गंध और साथ ही मच्छरों, मक्खियों और अन्य हानिकारक कीटों को भी दूर करती है। तुलसी दो प्रकार की होती है- एक हरे पत्तोंवाली और दूसरी श्यामा तुलसी जिसके पत्ते छोटे व काले रंग के होते हैं। तुलसी दैनिक जीवन में आगमन और सुबह के रीति-रिवाजों और अन्य आध्यात्मिक और शुद्धिकरण के माध्यम से भी शामिल होती है, जिसमें इसके पत्तों को खाना या तुलसी चाय का सेवन शामिल हो सकता है। तुलसी का पुजन समर्पित पवित्र जल बनाने के लिए किया जाता है। तुलसी को शहरों में वायु प्रदूषण से लड़ने के लिए भी उपयोग किया जाता है, और आगरा के ताजमहल के चारों ओर लाखों तुलसी पौधे लगाए गए हैं ताकि पर्यावरण प्रदूषण को बचाव करने में मदद मिले। तुलसी से प्राप्त दवाएँ तनाव, बुखार को ठीक करने, सूजन को कम करने और स्थामित करने में मदद करती हैं। फूल छोटे और बैंगनी रंग के होते हैं। यह भारत में पूरे देशभर में पाया जाता है, लेकिन मध्य प्रदेश में यह आमतौर पर पाया जाता है।

तुलसी की खेती कैसे करें How to basil cultivation:

तुलसी की खेती के लिये जून-जुलाई का समय सही माना जाता है, क्योंकि बारिश के समय इसकी पैदावार अच्छी होती है। तुलसी की खेती के लिये अच्छी जलनिकासी वाली दोमट-बलुई मिट्टी को सबसे बेहतर मानी जाती है। तुलसी की पौध तैयार होने के बाद नर्सरी से निकालकर खेत में रोप दी जाती है।

मिट्टी और जलवायु Soil and Climate:

तुलसी का पौधा विभिन्न प्रकार की मिट्टी में उगाया जा सकता है। यह सर्वोत्तम परिणाम उस समय मिलते हैं जब इसे अच्छे जल संचार वाली मिट्टी में उगाया जाता है इसकी वृद्धि के लिए pH 5.5-7.0 के बीच की मिट्टी सर्वोत्तम मानी जाती है।  लेटराइट, खारी और मध्यम अम्लीय मिट्टियाँ भी इसके खेती के लिए उपयुक्त हैं। अच्छी निकासी वाली मिट्टी से वनस्पतिक वृद्धि में सहायक होती है। यह उच्च वर्षा और आर्द्रता वाली स्थितियों में अच्छी खेती करता है। लंबे दिन और उच्च तापमान को पौधे की वृद्धि और तेल उत्पादन के लिए अनुकूल पाया गया है। यह 900 मीटर की ऊँचाई तक उगा सकता है।
तुलसी की सिंचाई: तुलसी के पौधे की सिंचाई मौसम और मिट्टी की नमी की आधार पर निर्भर करती है। गर्मियों में हफ्ते में दो बार सिंचाई की आवश्यकता होती है जबकि सर्दियों में इसे एक हफ्ते के अंतराल पर सिंचाई की जानी चाहिए। मिट्टी की नमी को संरक्षित करने के लिए मलच लगाएं।

रोपाई का समय और पौध ट्रांसप्लांटिंग Time of planting and transplanting seedlings:

पौधशाला को मई के तीसरे सप्ताह में उठाया जा सकता है और ट्रांसप्लांटिंग आमतौर पर जुलाई के मध्य में की जाती है। छः हफ्ते के बुढ़ापे के पौधे और 4-5 पत्तियों वाले पौधे को 40 × 40 सेमी, 40 × 50 सेमी और 50 × 30 सेमी की दूरी पर ट्रांसप्लांट किया जाता है। खेतों में ट्रांसप्लांटिंग के तुरंत बाद सिंचाई की जाती है। दूसरी सिंचाई के समय पौधे अच्छे से स्थापित हो जाते हैं।

खाद व उर्वरक तथा खरपतवार Manure and fertilizer and weeds:

खेती से पहले गोबर की खाद / कम्पोस्ट को 10 टन प्रति हेक्टेयर के रूप में देना चाहिए। शहरी कचरे और मानव मल से बनी कम्पोस्ट का उपयोग नही करना चाहिए। पौधों के पोषण के लिए ताज़ा खाद न दें। इस फसल के लिए खाद मात्रा 120 किलोग्राम एन, 60 किलोग्राम पी2ओ5 और केटूओ प्रति हेक्टेयर है। तुलसी के पौधे के लिए पोषक तत्वों और प्रकाश के लिए खरपतवारी को प्रबंधित किया जाना चाहिए। पहली खरपतवारी बोने के एक महीने बाद की जाती है और दूसरी चार हफ्ते बाद। इसके बाद, पौधे गूंथदार हो जाते हैं, जिससे खरपतवारियों को दबा दिया जाता है, इसलिए कोई अधिक खरपतवारी की आवश्यकता नहीं होती है।

तुलसी की लोकप्रिय प्रजातियाँ:

  1. कृष्ण तुलसी: यह प्रजाति भारत के सभी क्षेत्रों में पाई जाती है। इस प्रजाति के पत्ते बैंगनी रंग के होते हैं। कृष्ण तुलसी विटामिन ए, विटामिन के और बीटा-कैरोटीन से भरपूर है। इस प्रजाति का तुलसी तेल बनाने में उपयोग किया जाता है, जो मच्छरों को भगाने और मलेरिया की दवा के रूप में काम करता है।              
  2. अमृता तुलसी: यह तुलसी भारत के सभी क्षेत्रों में पाई जाती है। इसमें गहरे बैंगनी पत्ते होते हैं। इसका उपयोग कैंसर, हृदय रोग, गठिया, मधुमेह और बौद्धिक विकृतियों के इलाज में किया जाता है। 
  3. वन तुलसी: हिमालय और भारत के मैदानों में पाई जाती है। पौधे की ऊंचाई अन्य प्रजातियों से ज्यादा होती है। पेट के घावों की प्रतिरोधशीलता में सुधार करने जैसे स्वास्थ्य लाभ होते हैं। पत्तियाँ लौंग जैसी और जटिल सुगंध देती हैं। 
  4. राम/काली तुलसी: यह प्रजाति चीन, ब्राजील, पूर्वी नेपाल के साथ-साथ बंगाल, बिहार, चटगांव और भारत के दक्षिणी राज्यों में पाई जाती है। इसकी डंठली बैंगनी और पत्तियाँ हरे रंग की होती हैं और बहुत ही सुगंधित होती हैं। इसमें उच्च औषधीय गुण होते हैं, जैसे एडाप्टोजेनिक, एंटीफंगल, एंटीबैक्टीरियल होती है और प्रतिरक्षा को बढ़ाती है।   

तुलसी का चिकित्सीय लाभ: तुलसी स्वास्थ्य के लिए आयुर्वेद लाभदायक होती है। यह गरम और कड़वी होती है और गहरे ऊतकों में प्रवेश करती है, ऊतक के शुष्क स्राव को शांत करती है और कफ और वात को सामान्य करती है। तुलसी को त्वचा को चमक, आवाज को मधुरता और सौंदर्य, बुद्धिमत्ता, स्थायित्व और शांत भावना के लिए भी श्रेय दिया जाता है। इन स्वास्थ्य-प्रोत्साहक गुणों के अलावा, तुलसी को चिंता, खांसी, अस्थमा, डायरिया, बुखार, आंतों की संक्रमण, गठिया, नेत्र रोग, कान की बीमारी, अपच, हिचकी, उल्टी, जीर्ण, वात और मूत्र जनन संबंधित विकारों, पीठ दर्द, त्वचा रोग, दाद, कीड़े, साँप और बिच्छू के काटने और मलेरिया के लिए भी उपचार के रूप में की जाती है।

तुलसी के औषधीय गुण तथा महत्व: आयुर्वेद में तुलसी के पौधो को औषधीय गुणों का खजाना माना गया है। इसका धार्मिक महत्व भी है। तुलसी के रस को चाय पावडर व विभिन्न तरीकों से उपयोग किया जा सकता है। इसमें विटामिन्स और मिनरल्स का भण्डार है। इसमें मुख्य रूप से विटामिन- सी  कैल्शियम जिन्क आयरन और क्लोरोफिल पाया जाता है तथा इसमें एन्टीबैक्टीरियल गुण भी पाये जाते हैं। तुलसी के पत्तों को उपचार के लिये सबसे बड़ी जड़ीबूटियों का भण्डार माना जाता है। तुलसी के पत्तों को सुबह खाली पेट चबाने से ब्लड शुगर लेवल को कन्ट्रोल रखने में मदद करती है साथ ही डायबटीज के मरीजों के लिये भी फायदेमन्द है। इसके पत्ते को खाने से शरीर का फैट और मेटाबोलिज्म सही रहता है। फेफडो, जोड़ों में दर्द के लिये लाभदायक है। 

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तुलसी का पौधा बहुत महत्वपूर्ण और पवित्र माना जाता है। आज भी पूजा-पाठ में तुलसी के पत्तों की जरूरत पड़ती है। पंचामृत व चरणामृत दोनों में तुलसी के पत्ते लगते हैं। हिन्दू धर्म में तुलसी के पौधे को रोजाना जल चढ़ाने से दैवीय कृपा बनी रहती है। तुलसी का पौधा लगाने से घर में सकारात्मकता का वास होता है। इसकी गंध दसों दिशाओं को पवित्र करती है।  

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