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धान की फसल को बर्बाद होने से बचाने के लिए रहें इन रोंगों से सावधान, बचाव के लिये करें यह उपाय

भारत में धान की फसल के लिए प्रमुख रोग और बचाव के उपाय
भारत में धान की फसल के लिए प्रमुख रोग और बचाव के उपाय

खरीफ सीजन चालू हो चुका है लगभग जुलाई का आधा महीना बीत गया है। कुछ राज्यों में धान की रोपाई भी हो चुकी है। कई किसान धान की रोपाई करने में व्यस्त हैं। धान की रोपाई के बाद फसलों में कई तरह के रोग व कीट लग जाते हैं। जिससे फसल की पैदावार में अधिक प्रभाव पडता है। धान की फसल में मोथा रोग भी काफी नुकसान पहुंचाते हैं। 

रायबरेली के कृषि केंद्र के सहायक विकास अधिकारी ने बताया कि धान की रोपाई के बाद फसल में कई तरह के रोग, कीट एवं खरपतवार लगने का खतरा रहता है। जिनमें से मोथा भी एक प्रकार का खरपतवार है यह फसल की वृद्धि को रोकता है। और भी ऐसे कई रोग हैं जिससे फसल का सही से विकास नही हो पाता। आईए जानते हैं इन रोंगो के बारे में जिससे फसल की पैदावार भी अच्छी और रोग से छुटकारा पाया जा सकता है। 

मोथा रोग का लक्षण Symptoms of Motha Disease:

मोथा रोग हरे रंग का और इसकी पत्तियां तिकोनी होती हैं, जड़े जमीन में काफी गहराई तक होती हैं तथा सूखने पर भूरे रंग का दिखाई देता है।

ऐसे करें बचाव Protect Yourself Like This:

धान की फसल में रोपाई के साथ यह खरपतवार खेत में ही उग जाता है। इस खरपतवार से फसल को सुरक्षित रखने के लिये किसान धान की फसल की दो बार निराई करें साथ ही कीटनाशक का छिड़काव करें। मोथा से अपनी फसल को बचाने के लिए किसान पेंडीमेथलीन 30 ई.सी, ब्यूटी फ्लोर 50% ईसी, प्रोटीन फ्लोर ऑक्सीफ्लोरफेन, पाइराजोसल्फ्यूरान इथाईल डब्ल्यू पी का छिड़काव करके अपनी फसल को सुरक्षत रख सकते हैं। किसान धान की रोपाई के 3 दिन बाद कृषि विशेषज्ञ की सलाह पर इन दवाओं का छिड़काव करके अपनी फसल को मोथा से सुरक्षित रख सकते हैं।

सफेद लट रोग के लक्षण: इस रोग के लिए गर्म व आर्द्रता तथा अनुकूल मौसम वाला होता है। यह कीट पौधों की जड़ों को खाता है, जिससे पौधे की वृद्धि पर प्रभाव पड़ता है जिससे पौधे सूखने लगते हैं और जमीन पर गिरने लगते हैं। सफेद लट मिट्टी के अंदर जाकर तने में छेद करते हुए पौधे में प्रवेश करता है।

कैसे करें बचाव: इस रोग के निवारण के लिये गोबरखाद अथवा कंडे की सूखी राख का प्रयोग कर सकते हैं। फुरादन 5 किलो प्रति एकड़ में प्रयोग करें।

झुलसा रोग (करपा) के लक्षण: इस रोग को आमतौर पर झुलसा या करपा भी कहते हैं। यह पौधे से लेकर दाने तक प्रभावित करता है, और यह मुख्य रूप से पत्तियों तने की गाँठे और बालियों पर असर करता है। यह बाली पर राख के रन्ध्र तथा किनारों पर गहरे भूरे लालिमा लिये धब्बे का आकार दिखाता है। गाँठो पर या बालियों के आधार पर हवा से ही बाली के आधार टूट जाते हैं।

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झुलसा रोग के निवारण: रोगरोधी फसल बीजों का चयन करें। बीजोपचार ट्रायसायक्लाजोल या कोर्बेन्डाजीम अथवा बोनोमील-2 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की मात्रा से घोल बनाकर 6 से 12 घंटे तक बीज को डुबोये, इसके बाद छाया मे बीज को सुखाकर बुवाई करें।

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