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भारत का सब्जी उत्पादन में दूसरा स्थान है। सेम की खेती पूरे भारत में सफलतापूर्वक की जाती है। इसकी फलियों के रंग एवं आकार में भिन्नता पाई जाती है। इसकी नीचे की लता और पत्तियों को काटकर पशुओं को खिलाया जाता है। पोषक तत्वों की दृष्टि से सेम एक महत्वपूर्ण फसल है। सेम में प्रोटीन और खनिज तत्व प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। विटामिन्स कार्बोहाइड्रेट्स कैल्षियम फास्फोरस आयरन मैग्नीषियम सल्फर इत्यादि पाया जाता है। यह वायुमण्डलीय नाइट्रोजन को मिट्टी में स्थिर कर मिट्टी को स्वस्थ्य और उपजाऊ बनाता है।
सेम की खेती दलहन फसल के रूप में भी की जाती है जो सब्जी के रूप में खाई जाती है। इसमें फलियां होती हैं। इन फलियों का उपयोग कच्ची सब्जी के रूप में किया जाता है। सेम सभी भागों में उगाई जाती हैं। आयुर्वेद में सेम को मधुर, शीतल, भारी, बलकारी, वातकारक तथा पित्त और कफ का नाश करने वाली औषधी के रूप में कार्य करती है। इसमें पौष्टिकता काफी मात्रा में रहती है। ललौसी नामक त्वचा रोग सेम की पत्ती को संक्रमित स्थान पर रगड़ने से ठीक हो जाता है। भारत में वर्तमान समय में सेम की खेती उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र और तमिलनाडु में बड़े स्तर पर की जा रही है।
खेत में नमी की कमी होने पर बुवाई से पूर्व खेत में पलेवा करवा लेना चाहिए। बुवाई के पूर्व खेत को अच्छे से 2 बार ट्रैक्टर या हल से जुताई करके पाटा लगाकर तैयार कर लेना चाहिए। बुवाई के समय बीज अंकुरण के लिये खेत में पर्याप्त नमी होनी चाहिए। सेम की बुवाई समतल खेत में मेड़ों एवं क्यारियों में करनी चाहिए। मेड़ों या क्यारियों में बुवाई करना पौधों की अच्छी वृद्धि के लिये उपयुक्त होता है। लताओं वाली किस्मों के लिये कतार से कतार और पौधे से पौधे की दूरी 90 तथा 75 सेमी. रखना चाहिए।
सेमी की खेती अच्छी जल निकासी वाली बलुई-दोमट मिट्टी में सर्वोत्तम है जिसका पी.एच. मान 6.0-7 के बीच सर्वोत्तम है। सेम मुख्यतः गर्म जलवायु में उगाई जाती है। इसकी अच्छी उपज के लिये 18-30 डिग्री सेंटीग्रेट तापमान उपयुक्त है। असिंचित अवस्था में भी इसकी खेती की जा सकती है इसके लिये 650-700 मि.मी. वर्षा उपयुक्त होती है।
सेमी कीअधिक उपज के लिये 10-12 टन गोबर की खाद भूमि की बुवाई करते समय खेत में मिला देना चाहिए। 20-25 किग्रा. नाइट्रोजन 40-45 किग्रा. फास्फोरस और 40-50 किग्रा. पोटाश की प्रति हेक्टेयर आवश्यकता होती है। नाइट्रोजन की आधी मात्रा और फास्फोरस व पोटाश की पूरी मात्रा खेत की बुवाई के समय खेत में डालते हैं तथा नाइट्रोजन की मात्रा 30-35 दिन बाद करना चाहिए।
बुवाई का समय Time of Sowing: सेम की बुवाई जुलाई-अगस्त में की जाती है जो इसकी खेती के लिये बहुत ही उपयुक्त समय है।
पलवार का प्रयोग तथा खरपतवार प्रबंधन के उपाय: बुवाई के तुरंत बाद मल्चिंग का प्रयोग करना चाहिए। मल्चिंग से बीजों का जमाव मृदा ताप के अधिक होने के कारण अधिक होता है। खेत में नमी संरक्षित रहती है और खरपतवार नहीं उगते है। खेत की फसल को खरपतवार से मुक्त रखने के लिये निराई-गुराई करनी चाहिए। खरपतवार नियंत्रण के लिये खरपतवारनाशी रसायनों जैसे पेन्डामेथालीन 3.5 लीटर मात्रा को 1000 लीटर पानी में घोलकर बुवाई के 48 घंटे के अन्दर छिड़काव करना चाहिए जिससे 40-50 दिनों तक खरपतवार नियंत्रित हो जाता है।
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सेम के लिये सिंचाई Irrigation for Beans: सेम की फसल में बरसार के मौसम में सिंचाई क जरूरत नहीं पड़ती है। फूल के अंकुरण के समय खेत में नमी की कमी नहीं होनी चाहिए। नमी होने पर पौधे मुरझा जाते हैं जिससे उत्पादन में कमी आती है। इसके लिये समय-समय पर सिंचाई करते रहना चाहिए।
सेम का महत्व: सेम एक लताओं एवं दानों वाली सब्जी है जिसे आलू-सेमी के साथ कई सब्जियों में मिलाकर खाया जाता है। इसकी फलियां लम्बी चपटी पीली हरी सफेद धारीदार आदि रंगों की होती है। सेम की दाल होती है जिसमें प्रोटीन अधिक मात्रा में पाया जाता है। उत्तर प्रदेश में रेड़ी के रूप में खेत में बोते हैं। सेम की पत्तियां कब्ज की समस्या रक्त को शुद्ध और स्किन समस्या को दूर करता है। सेम की पत्ती का रस फायदेमंद होता है।
सेम की उन्नत किस्में:
प्रमुख रोग और नियंत्रण: