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पूसा बायो-डीकंपोजर से अधिकतम लाभ के लिए किसानों को दिशानिर्देशों का इस्तेमाल करना चाहिए

पूसा बायो-डीकंपोजर से अधिकतम लाभ के लिए किसानों को दिशानिर्देशों का इस्तेमाल करना चाहिए
पूसा बायो-डीकंपोजर से अधिकतम लाभ के लिए किसानों को दिशानिर्देशों का इस्तेमाल करना चाहिए

किसानों को पूसा बायो-डीकंपोजर का उपयोग करते समय विशिष्ट दिशानिर्देशों और मानक संचालन प्रक्रिया का पालन करना चाहिए। यह बात बायो-डीकंपोजर के विकास में अहम भूमिका निभाने वाले वैज्ञानिकों ने कही है, जिसे पराली जलाने की समस्या के समाधान के रूप में विकसित किया गया है।

नयी दिल्ली में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर)

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई) के शोधकर्ताओं ने यह भी कहा कि डीकंपोजर के उचित कार्यान्वयन से पराली निस्तारण में न केवल प्रभावी मदद मिलेगी बल्कि मिट्टी की उर्वरता बनाए रखने में भी मदद मिलेगी।

पूसा बायो-डीकंपोजर को पंजाब और हरियाणा में किसानों द्वारा दूसरी फसल के लिए अपने खेतों को जल्दी खाली करने के लिए पराली जलाने की समस्या के समाधान के रूप में विकसित किया गया है।

कहा जाता है कि पराली जलाने से दिल्ली-एनसीआर समेत पड़ोसी राज्यों में हवा की गुणवत्ता खराब होती है।  इस साल नवंबर में एनसीआर के विभिन्न इलाकों में वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) कई बार 400 और 450 की 'गंभीर' और 'अति गंभीर' सीमा को पार कर गया।  वैज्ञानिकों का कहना है कि पूसा बायो-डीकंपोजर एक ‘माइक्रोबियल’ समाधान है जो लगभग 20 दिनों में लगभग 70-80 प्रतिशत पराली को खाद में बदल सकता है।

कृषि अनुसंधान संस्थान के अनुसार, यह समाधान सात ‘फंगल कल्चर’ का एक मिश्रण है जो सब्जी, खट्टे फल और फूलों के कचरे के अलावा धान के भूसे, सोयाबीन कचरा, बाजरा और मक्का के अवशेषों को ‘अपघटित’ कर सकता है।

आईसीएआर-आईएआरआई, नयी दिल्ली के माइक्रोबायोलॉजी विभाग की प्रधान वैज्ञानिक, लिवलीन शुक्ला ने बताया, 'वास्तव में, ये सूक्ष्मजीव हैं। हम केवल अपघटन गड्ढे में पराली के साथ सूक्ष्मजीवों की संख्या बढ़ाते हैं।

डीकंपोजर प्री-मिक्स पाउडर के रूप में उपलब्ध है जिसे किसान पानी में मिलाकर तुरंत उपयोग कर सकते हैं। आईएआरआई के वरिष्ठ वैज्ञानिक डोलामणि अमात के अनुसार, बायो-डीकंपोजर को आसानी से अगली फसल के लिए खेत तैयार करने की प्रथाओं में शामिल किया जा सकता है।

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