विज्ञापन
लौकी को लोग अक्सर सब्जी के रुप में ही खाना पसंद करते हैं। यह एक वार्षिक लोकप्रिय और पौष्टिक सब्जी है। इसकी खेती गर्मियों में फरवरी-मार्च में की जाती है। इसमें किसान को कम मेहनत में ज्यादा फायदा होता है। लौकी दो आकार की होती हैं, पहली गोल और दूसरी लंबी। उत्तर प्रदेश हरियाणा बिहार और मध्य प्रदेश ऐसे राज्य हैं जो इस सब्जी का उत्पादन करते हैं। आयुर्वेद में लौकी को उपचार के रुप में इस्तेमाल किया जाता है। लौकी का इस्तेमाल सब्जी के अलावा रायता और हलवा जैसी चीजों को बनाने में भी किया जाता हैं। इसकी पत्तिया, तने व गूदे से अनेक प्रकार की औषधियां बनायी जाती है। किसान इस खरीफ सीजन में लौकी की आसान तरीके से खेती कर अच्छा उत्पादन और मुनाफा दोनों ले सकते हैं। इस सब्जी की मांग बाजार में हर समय बड़े स्तर पर रहती है।
लौकी की खेती वर्ष में 3 बार की जाती है। इसकी पहली किस्म की बुवाई गर्मियों में जनवरी से मार्च में की जाती है और दूसरी मई-जून में तथा तीसरी किस्म की बुवाई सितम्बर-अक्टूबर में की की जाती है। लौकी 60 से 65 दिन में फल देने लगती है। 120-130 दिन तक फल देती रहती है। चार माह की फसल है।
कोयंबटूर-1, अर्का बहार, पूसा समर, प्रोलिफिक राउड, पंजाब गोल्ड, नरेन्द्र रशमी, पूसा सरेरा, पूसा हाइबिड, काशी, गंगा,काशी कुण्डल (वीआरबीओजी-16), पंजाब बहार, वीएनआर हरूना हाइब्रिड, पूसा नवीन, अर्का गंगा, काशी गंगा
जलवायु और मृदा: लौकी की खेती के लिये गर्म व आर्द्र जलवायु की आवश्यकता होती है। इसे विभिन्न प्रकार की मृदाओं में उगाया जा सकता है। इसकी खेती के लिये हल्की दोमट मिट्टी सर्वोत्तम होती है। कुछ अम्लीय मिट्टी में भी इसकी खेती की जा सकती है। लौकी एक गर्मी उगाई जाने वाले मौसम की आवश्यकता होती है जिसमें तापमान 18-30°C के बीच हो।
मिट्टी की जांच के बाद ही खाद एवं उर्वरक का प्रयोग करना चाहिए। बुवाई के समय जुताई से पहले 100-150 क्विंटल गोबर की सड़ी खाद मिट्टी में मिला देना चाहिए। अच्छी पैदावार के लिये 1 क्विंटल नीम की खली भी मिलाना लाभकारी है। जब फसल खड़ी हो जाये तब 30-35 किलो नाइट्रोजन,20 किलो फास्फोरस 15-20 किलो पोटाश प्रति हेक्टेयर मिट्टी में मिला देना है। नाइट्रोजन की आधी मात्रा ही मिट्टी में मिला देनी है। लौकी के पौधे में फूल आते समय 19:19:19 एनपीके खादों का मिश्रण करके 2 किलो खाद का मिश्रण पानी में घोलकर छिड़काव करें इससे लौकी के पौधे में फल और फूल नहीं गिरेंगे और अच्छी पैदावार भी होगी।
गेहूँ की फसल कटने के बाद खेत को अच्छे से 2-3 बार ट्रेक्टर से जुताई करें और अच्छे से निड़ाई-गुड़ाई करें। फिर खेत को कुछ समय के लिये खुला छोड़ दें, इसके बाद फिर से गहरी निड़ाई-गुड़ाई करें ताकि उसमें जो खरपतवार जमीन के गहराई में जाए और फसल को नुकसान ना हो। मिट्टी पलटाउ ट्रेक्टर से जुताई करवा दें। इसके बाद खेत में बेड बनाकर मल्चिंग करना है, प्लास्टिक या जैविक तरीका धान की पराली से भी बेड की मल्चिंग कर सकते हैं। इसके बाद सीधे पौध रोपण भी कर सकते हैं, या अगेती फसल में प्रो-ट्रे में तैयार किये गये बेड में पौधे को लगा दें। पौधे से पौधे की दूरी 5-6 फिट तथा लाइन से लाइन की दूरी 10 फिट होनी चाहिये। साधारण तकनीकि में मलचिंग का इस्तेमाल जरूर करें। वर्टिकल विधि में लौकी के पौधे को खड़ा करने के लिये बांस या कोई लकड़ी या नेट भी लगा सकते हैं, जिससे पौधे की नाल नेट के ऊपर चढ़ने लगे। इसका फाय यह है कि पौधे में अच्छी धूप लगती है और हवा क्रास हो सकती है इससे फल की पैदावार अच्छी होती है। तीसरी विधि मचान विधि है, जिसमें छत की तरह पौधों को उगाया जाता है।
लौकी के पौधे की सिंचाई: बोने के बाद तुरंत पहली सिंचाई दी जानी चाहिए। फसल को नियमित सिंचाई की आवश्यकता होती है। गर्मियों के मौसम में फसल को 4-5 दिनों के अंतराल पर सिंचाई की जानी चाहिए, बरसाती मौसम में बारिश के दौरान कम सिंचाई की जानी चाहिए। सप्ताह में एक बार सिंचाई करते रहना चाहिए।
कटाई, देखभाल और बाजार: मौसम और प्रजाति के आधार पर बुवाई के करीब 60-70 दिनों में ही फसल काटने के लिए तैयार हो जाती है। केवल नरम और मध्यम आकार के फलों को तोडना चाहिए, जो अभी भी नरम और चमकदार रंग में हैं। शीर्ष के मौसम में, हर 3 या 4 दिन में कटाई की जानी चाहिए। असामान्य और बीमार पौधों को हटा देना चाहिए। फल बीज को काटने के समय पर हरा धुंधला हो जाता है। कटाई किए गए फलों को सुखाया जाता है और बीज निकाला जाता है। और बीज को पैक किया जाता है। इसकी खेती कम खर्च में अच्छी पैदावार देने वाली खेती हैं। लौकी की खेती एक एकड़ में लगभग 15 से 20 हजार की लागत आती है और एक एकड़ में लगभग 70 से 80 क्विंटल लौकी की पैदावार हो सकती है। बाजारों में अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं।
लौकी के फायदे Benefits of bottle gourd:
कीट और कीट प्रबंधन:
कीट प्रबंधन Pest Management: