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गाजर का जड़ वाली सब्जियों में प्रमुख स्थान है। इसे संपूर्ण भारत में उगाया जाता है। गाजर में विटामिन ए’’ अधिक मात्रा में पाया जाता है। गाजर रबी तथा सर्दियों में मैदानी भागों में उगाई जाने वाली फसल है। पश्चिमी राजस्थान के शुष्क भागों खासकर जोधपुर व इसके आस-पास के सिंचित क्षेत्रों में इसकी खेती काफी लाभकारी है और इस वजह से इसकी व्यापक स्तर पर खेती की जा रही है। गाजर को स्थानीय बाजारों में ही नहीं बल्कि अहमदाबाद, जयपुर, मुम्बई, बैंगलोर, आदि प्रमुख शहरों में अधिक मूल्य अर्जित कर किसानों को लाभ पहुँचा रही है।
गाजर को विभिन्न प्रकार की भूमि में उगाया जा सकता हैं। लेकिन, अच्छी उपज के लिए उचित जल निकास वाली भुर-भुरी दोमट भूमि सर्वोत्तम रहती है। लेकिन रेतीली दोमट भूमि अधिक उपयुक्त रहती है। भारी मिट्टी में इसकी जड़ों का आकार व रंग अच्छा नहीं बन पाता। भूमि की लगभग 1 फुट की गहराई तक अच्छी तरह से जुताई करनी चाहिए। इसके लिए सर्वोत्तम पी.एच. 6.5 या इसके आसपास माना गया है। प्रथम जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करने के बाद 2-3 बार कल्टीवेटर चलाकर खेत को समतल कर लें। गाजर एक ठण्डी जलवायु की फसल है।
पहली सिंचाई बीच बोने के तुरन्त बाद करें, तदुपरान्त 4-5 दिन बाद दूसरी हल्की सिंचाई करनी चाहिए। बाद में 10-15 दिन के अंतर में सिंचाई करनी चाहिए। गोबर की खाद या कम्पोस्ट नत्रजन 75 किलो प्रति हेक्टेयर आवश्यक है। गोबर की खाद, स्फुर तथा पोटाश भूमि की तैयारी के समय तथा नत्रजन बुवाई के 15 तथा 30 दिनों बाद देना चाहिए।
गाजर की उपलब्धता बनाए रखने के लिये अधिक तापमान सहन करने में सक्षम एषियाई गाजर की उन्नतशील किस्मों का चयन आवष्यक है। पूसा केसर, पूसा मेघाली, पूसा रूधिरा, स्लैक्षन 21, स्लैक्षन 233, सुपर रेड, आदि एशियाई गाजर की प्रमुख उन्नतशील किस्में हैं।
गाजर की खेती उसकी जातियों के ऊपर निर्भर करती हैं। मध्य अगस्त से नवम्बर तक का समय इसकी बुवाई के लिए उपयुक्त रहता है। गाजर बाजार में अक्टूबर-नवम्बर से शुरू होकर लगभग फरवरी-मार्च तक लगातार बनी रहती है। गाजर के लिये बीज की मात्रा बुवाई के समय, भूमि के प्रकार, बीज की गुणवत्ता, आदि पर निर्भर करती है। प्रति हेक्टेयर 5 से 8 कि.ग्रा. तक हो सकती है। हल्की क्षारीय भूमि में तथा बुवाई पश्चात पपड़ी बनने की दषा में सघन बुवाई करने की वजह से बीज की मात्रा बढ़ जाती है। भारी मिट्टी में बुवाई मेड़ों पर जबकि रेतीली में समतल क्यारियों में करनी चाहिए। बुवाई क्यारियों में 1-2 से.मी. गहराई पर 30-40 से.मी. की दूरी पर बनी पंक्तियों में करनी चाहिए। बीज को 12-24 घंटे तक पानी में भिगोने के पश्चात छाया में सुखाकर बुवाई करने से बीज आसानी से व जल्दी उगते हैं।
इसकी ताजी जड़ों का उपयोग सलाद, ताजा रस, हलवा तथा सब्जी बनाने के अलावा अचार, मुरब्बा, जैम, सूप आदि में किया जाता है। इसकी जड़ों का लाल रंग बीटा कैरोटीन की वजह से होता है, जो एक उत्तम एण्टीआक्सीडेण्ट है तथा गाजर की इसका सर्वोत्तम स्रोत है। गाजर औषधीय गुणों का भण्डार है। यह आँखों की अच्छी दृष्टि तथा शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बनाए रखने में मदद करती है, साथ ही रक्त के शुद्धिकरण व शरीर में क्षारीयता तथा अम्लीयता को संतुलित रखती है। गाजर पोषक तत्वों से भरपूर पौधों जिनमें प्रोटीन, खनिज लवण तथा विटामिन्स अच्छी मात्रा में पाये जाते हैं। इसका उपयों पशुओं के लिये हरे चारे के रूप में किया जाता है, इस प्रकार इसके उत्पादन से गाजर के साथ-साथ हरा चारा भी मिल जाता है।
उपज और लाभ Yield and Profit: कम लागत में अधिक आय देने के साथ-साथ कम समय में तैयार होने वाली फसल है। गाजर के अधिक उत्पादन हेतु इसकी उन्नत उत्पादन तकनीकें अपनाकर किसान भाई इसकी खेती को और लाभकारी बना सकते हैं। गाजर की औसत उपज लगभग 220 से 225 किवंटल प्रति हेक्टेयर होती है। जो कि किस्मों के उपर निर्भर करती है।
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कीट नियंत्रण Pest Control: