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Cumin Cultivation in Hindi, जीरे की खेती से होगी लाखों की कमाई, इस प्रकार से करें खेती

जीरे की खेती से होगी लाखों की कमाई, इस प्रकार से करें खेती
जीरे की खेती से होगी लाखों की कमाई, इस प्रकार से करें खेती

जीरा एक मुख्य रूप से मसाले वाली फसल है। देश का 80 प्रतिशत से अधिक जीरा गुजरात व राजस्थान राज्य में उगाया जाता है। देश का कुल उत्पादन का 28 प्रतिशत जीरे का उत्पादन राजस्थान में किया जाता है। 

जीरा की खेती कैसे करें How to do Cumin Cultivation:

सबसे पहले मिट्टी को पलटने वाले हल या कल्टीवेटर से मिट्टी को पलटवाकर कम से कम 15 दिनो तक धूप लग जाने दें और पकी हुई गोबर की खाद बिखेरकर रोटावेटर से मिट्टी को भुरभुरी करा लें और मिट्टी को समतल करने के लिये दो बोरी सिंगल फास्फेट को खेत में बिखेर देना चाहिए। अब खेत बुवाई के लिये तैयार हो गया। जीरे की बुवाई के समय तापमान 24 से 28 सेन्टीगे्रड होना चाहिए। इसकी खेती के लिये 20-25 डिग्री सेन्टीग्रेड तापमान उपयुक्त होता है। जीरे की बुवाई किसान ज्यादातर छिड़काव विधि द्वारा करते हैं लेकिन कल्टीवेटर की सहायता से 30 सेमी. के अंतराल पर पंक्तियों बनाकर बुवाई करना अच्छा होता है। 

जीरा के लिये मिट्टी Soil for Cumin:

जीरा की खेती उत्तम जल निकासी वाली मिट्टी काली दोमट, पीली मिट्टी, चिकनी दोमट मिट्टी और उपजाऊ युक्त जीवाश्म पदार्थ वाली मिट्टी पर इसकी खेती सर्वोत्तम उपयुक्त मानी जाती है। खेत में अच्छी जल निकासी की होनी चाहिए। 

जीरा की खेती के लिये उपयुक्त समय:

जीरा की खेती अक्टूबर-नवबंर में बुवाई का अच्छा समय है क्योंकि यह रबी की फसल है। दो तरीकों से इसे तैयार कर सकते हैं। बिजाई करके तथा नर्सरी तैयार करके उगाया सकते हैं। बीज से बीज की दूरी 15-20 सेमी. और कतार से कतार की दूरी 45-50 सेमी. रखनी चाहिए। 2-3 सेमी. मिट्टी की गहराई पर बुवाई करनी चाहिए।

जीरे की उन्नत किस्म Different Varieties of Cumin:

  1. जी सी 4 - जीरे की यह किस्म उखटा बीमारी के प्रति सहनशील होती है और इसके बीज बड़े आकार के होते हैं। इसकी औसत पैदावार 7-9 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है तथा 105-110 दिन में कटने के लिये तैयार हो जाती है। 

  2. आर जेड 19- इस किस्म में उखटा छछिया व झुलसा रोग कम लगता है। यह 120-125 दिन में कटने के लिये तैयार हो जाती है। इसकी औसत पैदावार 9-11 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है। 
  3. आर जेड 209 -इस किस्म में छछिया रोग कम लगता है तथा इसके दाने मोटे होते हैं। यह 120-125 दिन में कटने के लिये तैयार हो जाती है। इसकी औसत पैदावार 7-8 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है।

खाद व उर्वरक की मात्रा: जीरा की फसल के लिये खाद उर्वरकों की मात्रा भूमि जांच कराने के बाद देना चाहिए। जीरे की फसल के लिये बुवाई से पहले 5 टन गोबर या कम्पोस्ट खाद अन्तिम जुताई के समय खेत में अच्छे से मिला देना चाहिए। इसके पश्चात् बुवाई के समय 65 किलो डीएपी 9 किलो यूरिया 30 किलो म्यूरेट आफ पोटाश और 10 किलो जिंक सल्फेट प्रति हेक्टेयर की से मिलाकर खेत में देना चाहिए। बुवाई से 40-45 दिन बाद नाइट्रोजन 3 किलोग्राम सल्फर 3 किलोग्राम और बोरान 150 ग्राम मिलाकर जड़ों में डालना है। इसके बाद सिंचाई करना है। 

जीरे की सिंचाई Cumin irrigation:

जीरा की पहली सिंचाई बुवाई के समय ही कर देना चाहिए। दूसरी सिंचाई 7-8 दिनो के अंतराल पर आवष्यकतानुसार सिंचाई करते रहना चाहिए। इस प्रकार सिंचाई करने से फसलों का अंकुरण अच्छा होता है। आवष्यकता पडने पर 6-7 दिन बाद फिर हल्की सिंचाई करनी चाहिए। 20 दिन के अंतराल पर दाना बनने तक तीन और सिंचाई करना चाहिए। दाना पकने के समय जीरे के सिंचाई न करें अन्यथा बीज कम बनता है। फव्वारा विधि द्वारा सिंचाई करना चाहिए। 

खरपतवार नियंत्रण तथा फसल चक्र: जीरो की फसल पर खरपतवार का प्रकोप अधिक होता है क्योंकि शुरूआती अवस्था में जीरे की बढ़वार धीरे-धीरे होती है इस स्थिति में खरपतवार फैलने का खतरा ज्यादा होता है और फसल को नुकसान होता है। जीरे में खरपतवार नियंत्रण के लिये बुवाई के समय दो दिन बाद तक पेन्डीमैथालिन नामक खरपतवार का प्रयोग करना चाहिए। उसी खेत में बाजरे की बुवाई करनी है तो मिट्टी पलटने वाले हल से गहरी जुताई करें। एक ही खेत में तीन वर्षों तक लगातार जीरे की फसल नहीं लेनी चाहिए क्योंकि ऐसे में उखटा रोग का अधिक प्रकोप होता है। उचित फसल चक्र अपनाये। मूंग-जीरा-गेहूं-बाजरा-जीरा तीन वर्षीय फसल चक्र का प्रयोग करना चाहिए।

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कटाई एवं गहाई: जब पौधा भूरे रंग का हो जाये तब कटाई करनी चाहिए। उन्नत किस्मों के उपयोग से औसत उपज 6-8 क्विंटल बीज प्रति हेक्टेयर प्राप्त हो जाती है। जीरे की खेती से लगभग 35-40 हजार रूपये प्रति हेक्टेयर का खर्च आता है। मण्डियों में इसका अच्छा भाव मिलने पर अच्छा लाभ कमा सकते हैं।

कीट तथा प्रबंधन Pests and Management:

  1. उखटा रोग: इस रोग से पौधे मुरझा जाते हैं और आरम्भिक अवस्था में अधिक होता है किसी भी अवस्था में यह रोग फसल को नुकसान पहुंचा सकता है।
  2. प्रबंधन: इसकी रोकथाम के लिये ट्राईकोडर्मा की 4 ग्राम प्रति किलो या बाविस्टीन की 2 ग्राम प्रति किलो बीज दर से उपचारित करके बोना चाहिए। खेत में ग्रीष्म ऋतु में जुताई करे और एक ही खेत में लगातार जीरे की फसल नहीं उगानी चाहिए।
  3. दीमक रोग: यह रोग पौधों की जड़े काटकर फसल को बहुत ज्यादा नुकसान पहुंचाती है।
  4. प्रबंधन: इसकी रोकथाम के लिये अन्तिम जुताई पर क्लोरोपाइरीफास या क्यूनालफास की 20-25 किग्रा मात्रा प्रति हेक्टेयर के हिसाब से भुरकाव करना चाहिए।
  5. झुलसा रोग: इस रोग से पौधे का ऊपरी भाग झुक जाता है तथा पत्तियों व तनों पर भूरे धब्बे बन जाते हैं। ये रोग तेजी से फैलता है।
  6. प्रबंधन: रोग के प्रबंधन के लिये मेन्कोजेब की 2 ग्राम मात्रा को प्रति लीटर घोल मिलाकर छिडकाव करना चाहिए।

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