विज्ञापन
चना फसल की बुवाई अक्टूबर के द्वितीय सप्ताह तक की जाती है। बुवाई के पश्चात् फसल में कई तरह के रोग लगने की संभावना बनी रहती है, जिससे फसल की उत्पादन क्षमता प्रभावित होती है। इन रोगों की समय पर रोकथाम करने से पैदावार में बढोतरी की जा सकती है। आइए जानते हैं चना में लगने वाले प्रमुख रोग और इनके रोकथाम के बारे में।
चना और गेहूं की फसल में गेहूं की अधिक मार होती है। इससे पैदावार काफी घट जाती है। दीमक पोलीफेगस कीट होता है और भूमि के अंदर अंकुरित पौधों को खा जाती है। यह की जमीन में सुरंग बनाकर पौधों की जड़ों को नष्ट कर देते हैं।
दीमक रोग के नियंत्रण के लिये खेत में गोबर की खाद का प्रयोग करना चाहिए।
नीम की खली 10 कुन्तल प्रति हे0 की दर से बुवाई से पूर्व खेत में मिलाना चाहिए।
भूमि शोधन हेतु विवेरिया बैसियाना 2.5 किग्रा/ प्रति हे0 की दर से 50-60 किग्रा. सडे गोबर के साथ मिलाकर 8-10 दिन के बाद खेत में प्रयोग करना चाहिए।
फसल में दीमक रोग का प्रकोप होने पर सिंचाई के पानी के साथ क्लोरपाइरीफास 20 प्रतिशत ई0सी0 2.5 ली0 प्रति हे0 की दर से प्रयोग करना चाहिए।
कटुआ या कटवर्म कीट अधिकतर क्षेत्रों में चना की फसल हानि पहुँचाता हैं। यह कीट विशेष रूप से उन क्षेत्रों में होता है जहां बुवाई के पूर्व बरसात का पानी भरा होता है। इस कीट का आक्रमण पौधे के बडे होने पर पौधे को काट देते हैं और पौधा मुरझा जाता है।
गर्मी में गहरी जुताई एवं समय से बुवाई करें और उचित फसल चक्र अपनायें।
खेत में जगह-जगह सूखी घास के ढेर रख देने से कटुआ कीट की सूडिया उनमें छिप जाती है, जिन्हे प्रातःकाल इकठ्ठा कर नष्ट कर देना चाहिए।
खेत की निगरानी करते रहना चाहिए।
एस्कोकाइटा पत्ती धब्बा रोग: एस्कोकाइटा ब्लाइट चने की गंभीर बीमारी है, जो की पत्तियों से लेकर बीजों तक प्रभावित करता है। यदि फसल में यह रोग लग जाता है तो 70 प्रतिशत तक उपज में कमी हो सकती है।
रोकथाम Prevention:
पानी का सही प्रबन्धन करना चाहिए खेत में अधिक जल भराव नहीं होना चाहिए।
खेत की निगरानी करते रहना चाहिए।
5 गंधपाश (फेरोमैन ट्रैप) प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करना चाहिए।
बैसिलस थूरिनजिएन्सिस 1.0 किग्रा0 प्रति हेक्टेयर की दर से लगभग 500 लीटर पानी में मिलाकर 15 दिन के अन्तराल पर छिडकाव करना चाहिए।
उकठा रोग: चना की फसल में यह रोग मृदा एवं बीज जनित बीमारी है, जो 10-15 प्रतिशत तक पैदावार को प्रभावित करता है। जिन स्थानों में ठण्ड अधिक एवं लम्बे समय तक पड़ती है, वहां इस रोग का प्रकोप कम होता है। चने में यह रोग फूल आने के समय तथा 25-30 डिग्री सेंटीग्रेट तापमान पर तीव्र गति से फैलती है।
रोकथाम:
बीज शोधन हेतु थीरम 75 प्रतिशत कार्बेण्डाजिम 50 प्रतिशत की दर से बीज शोधित कर बुवाई करना चाहिए।
ट्राइकोडरमा 4 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से बीजोपचार करके ही बुवाई करना चाहिए।
स्यूडोमोनास फ्लोरोसेन्स 0.5 प्रतिशत डब्लू0पी0 10 ग्राम प्रति किग्रा0 बीज की दर से उपचारित करके बोना चाहिए।