किसान कल्याण एवं कृषि विकास विभाग ने जिले के किसानों को ग्रीष्मकालीन मूंग फसल में पैराक्वाट और ग्लाइफोसेट (सफाया) जैसे शाकनाशियों का उपयोग न करने की सख्त सलाह दी है। विभाग के उप संचालक ने बताया कि ग्लाइफोसेट एक शक्तिशाली शाकनाशी है, जिसका प्रयोग मुख्य रूप से सकरी और चौड़ी पत्तियों वाले पौधों को नष्ट करने के लिए किया जाता है। हालांकि, यह न केवल पर्यावरण के लिए हानिकारक है बल्कि मानव स्वास्थ्य और अन्य जीवों पर भी गंभीर दुष्प्रभाव डालता है।
कृषि विकास विभाग द्वारा कहा गया कि प्रदेश में लगभग 14.39 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में तीसरी फसल के रूप में ग्रीष्मकालीन मूंग की खेती हो रही है, जिससे 20.29 लाख मीट्रिक टन उत्पादन और 1410 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की औसत उत्पादकता प्राप्त हो रही है। यह फसल मुख्य रूप से नर्मदापुरम, जबलपुर और भोपाल संभाग में की जाती है।
विभाग के अनुसार, सीहोर जिले के कई किसान हार्वेस्टर से कटाई करवाने के लिए मूंग फसल को जल्दी सुखाने हेतु पैराक्वाट और ग्लाइफोसेट का अत्यधिक छिड़काव कर रहे हैं। यह रसायन मानव स्वास्थ्य, पशु-पक्षियों और मछलियों के तंत्रिका तंत्र को नुकसान पहुंचाते हैं।
ग्लाइफोसेट पौधों की वृद्धि के लिए आवश्यक अमीनो एसिड के उत्पादन को बाधित कर देता है, जिससे फसल नष्ट हो जाती है।
यह मिट्टी और जलस्रोतों में लंबे समय तक बना रहता है, जिससे लाभदायक सूक्ष्मजीवों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
इसके उपयोग से पाचन, श्वसन और तंत्रिका तंत्र संबंधी समस्याएं हो सकती हैं।
यह आंखों, त्वचा, नाक और गले में जलन पैदा कर सकता है, जिससे अस्थमा जैसी बीमारियां उत्पन्न हो सकती हैं।
यदि गलती से निगल लिया जाए, तो यह गले में जलन, दर्द और मितली का कारण बन सकता है।
किसान कल्याण एवं कृषि विकास मंत्री श्री कंषाना ने कहा कि ग्रीष्मकालीन मूंग की खेती से किसानों की आय में वृद्धि हुई है, लेकिन इसमें कीटनाशक और खरपतवारनाशक दवाओं का अधिक उपयोग देखा जा रहा है। इससे मानव स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। कृषि विभाग ने किसानों से अपील की है कि वे मूंग फसल में पैराक्वाट और ग्लाइफोसेट का उपयोग बिल्कुल न करें और कीटनाशकों का छिड़काव भी न्यूनतम रखें। यह न केवल मानव स्वास्थ्य को सुरक्षित रखेगा बल्कि मिट्टी की गुणवत्ता और जैव विविधता के संरक्षण में भी मदद करेगा।