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सुरजना को सेजन सहजन या मुनगा भी कहते हैं जो हर वर्ष सब्जी देने वाला पेड़ है। इसमें विटामिन ए, सी, बी 2 राइबोफ्लेविन प्रोटीन, तथा औषाधीय गुणों से भरपूर है। इसमें आयरन, कैल्शियम, मैग्नीशियम, जिंक और फास्फोरस आदि पाया जाता है। सुरजना की फलियां आकार में लंबी होती हैं। यह सभी प्रकार की मिट्टी तथा कम वर्षा में भी उगाया जा सकता है। अफ्रीकन देशों में सुरजना के पौधे को माताओं का सबसे अच्छे दोस्त के रूप में माना जाता है। भारत में सुरजना तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक मध्यप्रदेश और आंध्र प्रदेश में उगाई जाती है। यह तेजी से वृद्धि करने वाला सूखे से प्रभावित नहीं होने वाला पौधा है।
सेंजन या सुरजना औषधीय गुणों से भरपूर है। यह अलग-अलग रोगों के रोकथाम के लिये इसका उपयोग किया जाता है। इसमें अधिक मात्र में मल्टीविटामिन्स 50 तरह के एंटीआक्सिीडेंट गुण और 20 प्रकार के एमीनो एसिड्स पाये जाते हैं। इनकी पत्तियों को पशुओं को खिलाया जाता है जिससे गाय, भैंस, बकरियों में दूध का उत्पादन ज्यादा होता है। श्रीलंका, फिलीपीन्स, मलेशिया, मैक्सिको आदि देशों में इसका उपयोग बहुत ज्यादा किया जाता है। यह हर वर्ष फली देने वाला पौधा है जिसका उपयोग सांभर में ज्यादातर किया जाता है। इसकी फलियां फूल तथा तनो का अनेक पोष्टिक भोजन के रूप में खाया जाता है।
सुरजना का बीज सभी प्रकार की मृदाओं में आसानी से उगाया जा सकता है। इसके पौधे अच्छे अंकुरण के लिए ताजा बीजों का उपयोग करें और बीजों की बुवाई से पहले उन्हें दो दिन तक पानी में भिगोकर रख देना चाहिए। सुरजना पौधे की छोटी नर्सरी तैयार करके बालू और खेत की मृदा को जैविक खाद के साथ मिलाकर एक पॉलिथीन के बैग में भर लेना चाहिए। बैग में 2 से 3 इंच की गहराई पर बीजों का रोपण करके दस दिन तक छोड देना चाहिए। इन बड़ी थैलियों में समय-समय पर सिंचाई की व्यवस्था करना चाहिए और बीज अंकुरण शुरू होने के बाद कम से कम 30 दिन तक पॉलिथीन की थैलियों में ही पानी देना चाहिए। खेत में 2 फीट गहरा और 2-3 फीट चौड़ा गड्ढा खोदकर थैली में से छोटी पौधों को निकाल कर रोपण कर सकते है। छह महीनों के बाद इस पौधे से फलियां प्राप्त होने लगती है और इन फलियों को तोड़कर सब्जी मंडी में बेचा जा सकता है या फिर स्वयं के सब्जी के रूप में उपयोग किया जा सकता है।
सुरजना या सहजन के पौधे के लिये उष्ण कटिबंधीय तथा शुष्क जलवायु उपयुक्त होती है। 28-30 डिग्री सेल्सियस तापमान इसकी खेती के लिये सबसे अच्छा होता है। अधिक सर्द तथा अधिक तापमान में सहजन की उपज कम होती है। 40 डिग्री सेल्सियस से अधिक तापमान में सहजन के फूल झड़ने लगते हैं। सुरजना की खेती सभी तरह की मिट्टी में की जा सकती है। बलुई दोमट मिट्टी सहजन की खेती के लिये सबसे उपयुक्त माना जाता है। इसके लिये मिट्टी का पी.एच. मान 6.5 से 7.5 के बीच होना चाहिए।
सुरजना के पौधे की रोपाई कटिंग विधि द्वारा नर्सरी तैयार किया जाता है। इसमें 40-45 सेंटीमीटर लंबी कलम तैयार करके गढ्ढा तैयार करते हैं इसके बाद उन गढ्ढों में सड़ी गोबर की खाद डालें और उसमें पानी डालें इसके बाद कलम को गढ्ढे में डालकर ऊपर से मिट्टी ढ़क दें। पौधे से पौधे की दूरी 3 से 4 मीटर होनी चाहिए और प्रतिदिन हल्की सिंचाई करते रहें। सहजन की रोपाई जुलाई से सितम्बर माह के बीच की जाती है।
सुरजना की किस्में: कोयंबटूर-1 कोयबंटूर-2 पी.के.एम.-1 प्रमुख है। इन किस्मों के पेड़ 5-6 मीटर ऊंचे 100 से 110 दिन अंदर फूल आने लग जाते हैं। इन पेड़ों से 4 से 5 साल तक फल प्राप्त किया जा सकता है।
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सुरजना पौधे का महत्व: यह पौधा स्वास्थ्य के लिए बहुत ही लाभदायक है और इसकी पत्तियां जड़ों का उपयोग कई बीमारियों के इलाज के लिए किया जाता है। प्रकार की मृदाओं में उगाया जा सकने वाला यह पौधा। धूप पड़ने वाले क्षेत्रों में इस पौधे की खेती सर्वाधिक की जा सकती है। इसकी फलियों से कई प्रकार का तेल निकाला जा सकता है और इस तेल से कई आयुर्वेदिक दवाइयां तैयार की जाती है। कम पानी वाले क्षेत्रों में भी उगाया जा सकता है। इसके अलावा एक प्राकृतिक खाद और पोषक आहार के रूप में भी उपयोग में लाया जाता है। एक सहजन के पौधे से 300 से अधिक रोगों का इलाज किया जा सकता है। पौधे की पत्तियों और तने में पाए जाने वाले पोषक तत्व विटामिन और कैल्शियम, आयरन और पोटेशियम जैसे खनिजो की कमी को भी पूरा करता है। इसके अलावा इसकी पत्तियों में प्रोटीन की भी प्रचुर मात्रा पाई जाती है। इस पौधे की जड़ का इस्तेमाल रक्तशोधक बनाने के लिए किया जा रहा है। यह हृदय की बीमारियों से ग्रसित रोगियों के लिए आयुर्वेदिक दवाइयां तैयार की जाती है।
सुरजना का उपयोग: