अनार एक महत्वपूर्ण फलदार फसल है, जो अपने स्वाद, पोषण और औषधीय गुणों के कारण दुनियाभर में लोकप्रिय है। यदि आप अनार की खेती करने की सोच रहे हैं, तो यह जानकारी आपके लिए उपयोगी होगी। इसमें हम भूमि चयन, जलवायु, अनार की प्रजातियाँ, रोपण, खाद, सिंचाई, कीट नियंत्रण और तुड़ाई से जुड़ी सभी आवश्यक जानकारियाँ दे रहे हैं।
भूमि चयन: अनार की खेती विभिन्न प्रकार की मिट्टियों में की जा सकती है, लेकिन बलुई दोमट मिट्टी इसके लिए सबसे उपयुक्त मानी जाती है। मिट्टी का pH स्तर 6.5 से 7.5 के बीच होना चाहिए। उचित जल निकासी वाली भूमि का चयन करना जरूरी है, क्योंकि जलभराव से पौधों की जड़ें सड़ सकती हैं।
जलवायु: अनार एक शुष्क और अर्ध-शुष्क जलवायु में अच्छी तरह बढ़ता है। इसके लिए 25°C से 35°C तापमान आदर्श होता है। यह फसल अधिक सर्दी और अधिक गर्मी, दोनों को सहन कर सकती है, लेकिन 4°C से कम तापमान और 40°C से अधिक तापमान फसल के लिए नुकसानदायक हो सकता है।
पौधों का रोपण: पौधों को रोपने से पहले 50-60 सेंटीमीटर गहरा और चौड़ा गड्ढा खोदें। पौधों के बीच 4-5 मीटर की दूरी रखें। रोपाई के तुरंत बाद हल्की सिंचाई करें। स्वस्थ पौधों के लिए गड्ढे में जैविक खाद डालें।
अनार की फसल में अच्छी पैदावार के लिए जैविक खाद और उर्वरकों का संतुलित प्रयोग जरूरी है। इसमें आपको गोबर की खाद 25-30 किग्रा प्रति पौधा, नीम खली 2-3 किग्रा प्रति पौधा, सुपर फॉस्फेट 200-300 ग्राम प्रति पौधा और पोटाश 150-200 ग्राम प्रति पौधा डालें। इसके अलावा, फूल आने से पहले मैग्नीशियम, सल्फर और माइक्रोन्यूट्रिएंट्स का छिड़काव करें।
सिंचाई प्रबंधन:
कीट एवं रोग प्रबंधन:
उपाय: नीम का अर्क या जैविक कीटनाशकों का उपयोग करें।
प्रमुख रोग:
उपाय: कॉपर ऑक्सीक्लोराइड का छिड़काव करें।
उपज और तुड़ाई: अनार के पौधे 3-4 साल में फल देना शुरू कर देते हैं। फल 5-6 महीने में पककर तैयार हो जाते हैं। एक पौधा 20-25 साल तक फल देता है। प्रति पौधा 8-10 किलो तक उपज मिल सकती है। फल तुड़ाई के लिए सेक्युटियर (Secateurs) का उपयोग करें ताकि शाखाओं को नुकसान न हो।
अनार की खेती से लाभ (Benefits of Pomegranate Farming):
अनार की खेती यदि वैज्ञानिक तरीके से की जाए, तो यह बेहद लाभकारी और टिकाऊ व्यवसाय साबित हो सकती है। सही मिट्टी, जलवायु, खाद प्रबंधन और कीट नियंत्रण तकनीकों को अपनाकर किसान बेहतर उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं। आधुनिक कृषि तकनीकों का उपयोग करके किसान अपनी आमदनी को कई गुना बढ़ा सकते हैं।