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पराली प्रबंधन किसानों के लिए एक व्यापक समस्या है। पराली जलाने से रोकने के लिए राज्य सरकारों की तरफ से कई तरह के प्रयास किए जा रहे हैं। इसके लिये बायो-सीएनजी तकनीक का इस्तेमाल करके पराली जलाने से जुड़ी समस्याओं से निपटने में मदद करती है। साथ ही यह तकनीक ईंधन और जैविक उर्वरक के उत्पादन को संभव बनाती है। धान की कटाई और गेहूं की बुआई के बीच दौरान धान की पराली को इकट्ठा करना परेशानी और चुनौतियों वाला काम है।
पंजाब में गेहूं-चावल की व्यापक खेती का केंद्र है और यहां खेतों में पराली जलाने के मामलों में सबसे ऊपर है। साल 2022 नवंबर माह के शुरुआती दिनों में पंजाब के संगरूर जिले में पिछले कई सालों के मुकाबले आसमान साफ था। और इन दिनों बाधा बनने वाली धुंध वातावरण में छायी हुई है।
पंजाब किसान पर्यावरण प्रदूषण को कम करने के लिए फसल अवशेष प्रबंधन का आधुनिक तरीका अपना रहे हैं। यहां के किसान आधुनिक कृषि मशीनों का इस्तेमाल करके पराली का प्रबंधन कर रहे हैं।
बायो-सीएनजी या कम्प्रैस्ड बायोगैस का उत्पादन करने के उद्देश्य से यहां एक इनोवेशन शुरू हुआ। यह वह तकनीक है जो खेतों में बचे हुए पराली को मीथेन में बदलती है। यह धरती के नीचे से निकाली जाने वाली कम्प्रेस्ड नेचुरल गैस (सीएनजी) की जगह ले सकती है। भारत अपने कच्चे तेल की जरूरत का करीब 85% आयात करता है। पंजाब ऊर्जा विकास एजेंसी ने बताया कि पंजाब में 42 और सीबीजी संयंत्र लगाने की योजना बनाई गई है, इनसे सीबीजी का उत्पादन होगा। इस तकनीकि में सालाना 17 लाख टन पराली का इस्तेमाल किया जायेगा। पंजाब में हर साल लगभग 1.9 करोड़ टन पराली का उत्पादन होता है।
सीबीजी बायोगैस के रूप में इस्तेमाल करने का बेहतर तरीका है। इसका इस्तेमाल भारत के अलग-अलग फीडस्टॉक जैसे उपज के अवशेष, गाय के गोबर, गन्ना कारखानों से निकलने वाली मिट्टी व कचरे से बनाया जा सकता है।
सीबीजी बनाने के लिए कटाई के बाद पराली को सूखने के लिए खेत में फैला दिया जाता है। फिर इसे इकट्ठा करके गांठें बनाई जाती हैं। वर्बियो के संयंत्र प्रमुख पंकज जैन ने बताया कि पराली की गांठों को प्री-ट्रीटमेंट में डाला जाता है, जहां पराली को बारीक काटा जाता है और पानी तथा गाय के गोबर के साथ मिलाया जाता है। फिर इस मिश्रण को मुख्य डाइजेस्टर टैंक में डाला जाता है। उत्पादित बायोगैस को डाइजेस्टर के ऊपर एकत्र किया जाता है और गैस सफाई क्षेत्र तक पहुंचाया जाता है। 90-95% मीथेन में अपग्रेड की गई गैस को सिलेंडरों में कमप्रेस्ड किया जाता है। बचे हुए घोल का इस्तेमाल खाद के रूप में किया जा सकता है।
पंजाब के कृषि अधिकारियों द्वारा बताया गया कि जिन किसानों ने पराली नहीं जलाई है वे पराली को जलाए बिना उसे वापस मिट्टी में मिला रहे हैं। किसान सुपर स्ट्रा मैनेजमेंट सिस्टम (सुपर-एसएमएस) के लैस कंबाइन हार्वेस्टर का उपयोग कर सकते हैं। इससे पराली को मिट्टी में मिलाकर फसल की पैदावार में सुधार किया जा सकता है। इसके साथ ही कीटों के हमलों में भी कमी आई है। सुपर सीडर न केवल पर्यावरण के अनुकूल है बल्कि कई अन्य लाभ भी प्रदान करता है।