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जैव ईंधन नीति के मुताबिक आने वाले दिनों में गन्ने से इथेनॉल का उत्पादन कम करने तथा मक्का का उत्पादन करने पर अधिक जोर दिया जाएगा। भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिक अशोक सिंह के अनुसार हाल के वर्षों में मक्के की मांग में भी काफी बढ़ोतरी हुई है। आने वाले दिनों में मक्के की मांग काफी बढ़ सकती है, क्योंकि इथेनॉल की वजह से मक्के की मांग पोल्ट्री उद्योग में भी बढ़ रही है। खाद्यान्नों में देश की यह तीसरी सर्वाधिक उगाने वाली फसल है। वर्ष 2022-23 में अनुमानित 34.6 मिलियन टन मक्के की पैदावार हुई थी, जबकि वर्ष 2021-22 में 33.7 मिलियन टन था। 2023-24 में मक्के उत्पादन मात्र 32.47 मिलियन टन ही उत्पादित हुआ है।
भारत में धान और गेहूं के बाद मक्के को महत्वपूर्ण व्यावसायिक फसल माना जाता है। देश की ऊर्जा सुरक्षा को मजबूती प्रदान करता है। मक्का का प्रयोग देश के ईंधन मिश्रण के अंतर्गत इथेनॉल निर्माण के लिए किया जा रहा है। मक्का की अधिक पैदावार देने वाली उन्नत किस्मों पर फोकस किया जाना चाहिए।
गन्ना, चावल और मक्का जैसे अनाजों से बायोफ्यूल को तैयार किया जाता है। वर्तमान में लगभग 25 प्रतिशत इथेनॉल गन्ने के रस से तैयार किया जाता है। इसकी उपज बढ़ाने के लिए मक्के को ज्यादा से ज्यादा न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदने पर काम किया जा रहा है। इससे किसानों की आय में इजाफा होगा।
सरकारी जैव ईंधन नीति के अनुसार आने वाले समय में गन्ने से इथेनॉल का उत्पादन कम करने तथा मक्का जैसे अनाज से उत्पादन करने पर जोर दिया जाएगा। भारत इथेनॉल उत्पादन को बढ़ावा देने और बाजार में स्वीटनर की पर्याप्त आपूर्ति करने के लिए चीनी को मक्के के उपयोग को बढ़ावा दिया जा रहा है। सरकार द्वारा मक्के की संघीय खरीद करने के साथ, किसानों ने अन्य फसलों से हटकर इसकी अधिक बुआई की गई है, जिससे इस वर्ष रबी सीजन में अनाज की बुआई लगभग 20 लाख हेक्टेयर से अधिक हो गई है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, पिछले वर्ष प्रमुख उत्पादक राज्यों - मध्य प्रदेश, कर्नाटक, बिहार, तेलंगाना, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र में मक्के का उत्पादन ज्यादा किया गया। भारत का लक्ष्य अगले पांच वर्षों में मक्के का उत्पादन 10 मिलियन टन तक बढ़ाना है क्योंकि इथेनॉल उत्पादन की मांग में बढ़ोत्तरी हो रही है।