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इसके फल पौधों की जड़ो में पाए जाते है। इसके अलावा प्याज को कई जगहों पर कांदा नाम से भी पुकारते है इसमें कई तरह के पोषक तत्व पाए जाते है, जिस वजह से प्याज का सेवन करना शरीर के लिए लाभकारी होता है, प्याज मुख्य रूप से रेडिएशन को कम करता है। प्याज एक महत्वपूर्ण सब्जी एवं मसाला फसल है इसमें प्रोटीन एवं कुछ बिटामिन भी अल्प मात्रा में रहते है प्याज में बहुत से औसधीय गुण पाये जाते है। प्याज का सूप, अचार एवं सलाद के रूप में उपयोग किया जाता है। मध्य प्रदेश भारत का सबसे बड़ा प्याज उत्पादक प्रदेश है। घरेलू उपलब्धता में सुधार लाने और प्याज की बढ़ती कीमतों को स्थिर करने के उद्देश्य से एक अभूतपूर्व कदम में, सरकार ने कीमतों में वृद्धि को रोकने और घरेलू बाजार में आपूर्ति में कई सुधार किए हैं। प्याज भारत के लिए एक प्रमुख निर्यात वस्तु है, और दुनिया भर के देशों में प्याज निर्यात करने वाली व्यापारिक संस्थाओं द्वारा पर्याप्त राजस्व उत्पन्न होता है।
प्याज के पौधे के लिए गर्म एवं नम जलवायु उपयुक्त होती है तथा यह फसल रबी की फसल है लेकिन खरीफ के मौसम में भी इसकी खेती करके उचित लाभ कमाया जा सकता है। यह फसल बीजों के अंकुरण के लिये उचित तापमान 20 डिग्री से.ग्रे. से 25 डिग्री से.ग्रे. उपयुक्त है। बीजोर्पण के दौरान पानी की कमी नहीं होनी चाहिए तथा सिंचाई हल्की एवं जल्दी-जल्दी देना चाहिए। इस फसल अधिक पैदावार के लिए जल निकासी वाली मिट्टी अपनाऐें। प्याज की फसल को उन्नत या अधिक पैदावार के लिए प्याज के पौधों में मिट्टी चढ़ाई जानी चाहिए। इसके उपरान्त 2 से 3 जुताई कल्टीवेटर या हैरा से करें, प्रत्येक जुताई के पश्चात् पाटा अवश्य लगाऐं जिससे नमी सुरक्षित रहें तथा साथ ही मिट्टी भुरभुररी हो जाऐ। खेत में गोबर की खाद और कंपोस्ट बैक्टीरिया का उपयोग करें, खेत में सिंचाई के लिये ड्रिप या स्प्रिंकलर का प्रयोग करें।
इसके लिये 20 से 25 टन गोबर या कम्पोस्ट खाद के साथ पोटाश का 80-100 किलो प्रति हेक्टर में मिलाना चाहिए, जिससे भूमि की उर्वरा शक्ति में बढोत्तरी होती है। कम्पोस्ट खाद को खेत की शुरूआती जुताई के समय भूमि में मिला देना चाहिए। बीजों को हमेशा पंक्तियों में बोना चाहिए। खरीफ मौसम की फसल के लिए 5-7 सेमी. लाइन से लाइन की दूरी रखते हैं। इसके पश्चात् क्यारियों पर कम्पोस्ट, सूखी घास की पलवार(मल्चिंग) बिछा देते हैं जिससे भूमि में नमी संरक्षण हो सकें। सिंचाई पहले फब्बारें से करना चाहिए। पौधों को अधिक वर्षा से बचाने के लिए पौधशाला या रोपणी को पॉलिटेनल में उगाना उपयुक्त होगा। खेत की प्रथम जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करना चाहिए। इसके उपरान्त 2 से 3 जुताई कल्टीवेटर या हैरा से करें साथ ही मिट्टी भुर-भुरी हो जाए।
खरीफ मौसम में उगाई जाने वाली प्याज की फसल को जब मानसून चला जाता हैं उस समय सिंचाईयाँ आवश्यकतानुसार करना चाहिए। इस बात का ध्यान रखा जाऐ कि शल्ककन्द निर्माण के समय पानी की कमी नहीं होना चाहिए क्योंकि यह प्याज फसल की क्रान्तिक अवस्था होती हैं क्योंकि इस अवस्था में पानी की कमी के कारण उपज में भारी कमी हो जाती हैं, जबकि अधिक मात्रा में पानी बैंगनी धब्बा(पर्पिल ब्लाच) रोग को आमंत्रित करता हैं। काफी लम्बे समय तक खेत को सूखा नहीं रखना चाहिए अन्यथा शल्ककंद फट जाऐगें एवं फसल जल्दी आ जाऐगी, परिणामस्वरूप उत्पादन कम प्राप्त होगा। अतः आवश्यकतानुसार 8-10 दिन के अंतराल से हल्की सिंचाई करना चाहिए।
प्याज की खेती के लिये भूमि की तैयारी: गहरी जुताई करें, और 1 से 2 बार मिट्टी को पलट ले जिससे मिट्टी भुरभुरी हो जाये। जुताई के बाद मिट्टी को समतल करें तथा क्यारियां बनायें। प्याज की अधिक उपज के लिये मिट्टी को मिश्रण के साथ दो सप्ताह तक खुला रखें ताकि यह इसका अपघटन हो सके।
प्याज की प्रमुख किस्में Major Varieties of Onion:
प्याज की फसल 4 से 5 माह में कटने के लिये तैयार हो जाती है। समय से पूर्व खुदाई ना करें जब प्याज का कंद अपना आकार पूरा कर ले व पत्तियां सूखकर पीली पड़ने लगे तब खुदाई करें। खरीफ प्याज की प्रति हेक्टेयर उपज 250-300 क्विंटल तक मिल जाती हैं। किसान भाई एक वर्ष में 3 से 4 लाख तक की अच्छी कमाई कर सकते है।
प्याज की फसल में लगने वाले रोग, बचाव: