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गेहूं, विश्व की सबसे महत्वपूर्ण खाद्यान्न है, जो आमतौर पर लोगों के भोजन में प्रमुख भूमिका निभाता है। भविष्य में वृद्धि के साथ गेहूं उत्पादन में बढ़ोतरी होनी चाहिए, क्योंकि 2050 तक वैश्विक जनसंख्या 9 बिलियन के अधिक होने की आंशिक संभावना है। इस समय ठंड और कोहरे से भरा हुआ है उत्तर भारत, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश में पारा काफी नीचे गया है, लेकिन यह मौसम गेहूं के लिए बहुत फायदेमंद हो सकता है। शीतलहर और ठंड के कारण गेहूं की फसल में वृद्धि हो सकती है। कृषि विशेषज्ञों के अनुसार, इससे गेहूं के दाने और पौधे पुष्ट होते हैं। कृषि विशेषज्ञों की मानें तो, इस बार देश में गेहूं का उत्पादन अच्छा होने की उम्मीद है। सरकार के अनुमान के अनुसार, लक्ष्य 114 मिलियन टन हो सकता है। गेहूं, भारत में मुख्य अनाजी फसल है। इसकी कुल क्षेत्रफल देशभर में लगभग 29.8 मिलियन हेक्टेयर है।
गेहूँ की फसल रबी की फसल है, इसके लिये नर्म जलवायु आवश्यक है। इस फसल के लिए आवश्यक रूप से धूप और पानी की अधिक मात्रा की आवश्यकता होती है। गेहूँ की फसल के लिए उपर्युक्त तापमान 20-25 डिग्री सेल्सियस आवश्यकता होती है। गेहूँ की फसल बढ़वार के लिए 27 डिग्री सेन्टीग्रेड से अधिक तापमान होने पर विपरीत प्रभाव पड़ता है, और पौधों की सुचारू रूप से बढवार नहीं हो पाती है क्योंकि तापमान अधिक होने से अधिक ऊर्जा की क्षति होती है जिसका फसल उत्पादन पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। बलुई दोमट या चिकनी मिट्टी गेहूँ की फसल के लिये सर्वाधिक उपयुक्त है। गेहूँ की फसल की अधिक पैदावार के लिए भूमि का पी.एच. मान 6 से 7 होना चाहिए।
उत्तर भारत में कई दिनों से पड़ रही सर्दी और शीतलहर की वजह से पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश सहित प्रमुख गेहूं उत्पादक राज्यों विशेषज्ञों ने भी इस बार अच्छी उपज की उम्मीद जताई है। कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि इस तेज ठंड के चलते गेहूं की फसल तेजी से बढ़ रही है। खास बात यह है कि फसल में पीले रतुआ रोग का असर भी नहीं दिख रहा है। कम तापमान रबी की फसल में गेहूं के लिए सबसे ज्यादा फायदेमंद होता है। क्योंकि अधिक सर्दी और शीतलहर के कारण गेहूं के दाने अधिक पुष्ट हो जाते हैं। गेहूं की फसल को प्रयाप्त मात्रा में धूप भी मिलती रहनी चाहिए। साथ ही उन्होंने सरसों और सब्जियां उगाने वाले किसानों को ठंड के मौसम के प्रभाव को कम करने के लिए हल्की सिंचाई करने की सलाह दी गई है। उम्मीद जताई गई है कि इस बार देश में गेहूं का उत्पादन, सरकार द्वारा अनुमानित लक्ष्य 114 मिलियन टन तक पहुंच जाएगा। गेहूं एक विशाल सामर्थ्य वाली फसल है जो अपनी विशेषता के कारण विभिन्न जलवायु शर्तों में उगाई जा सकती है। यह न केवल उष्णकटिबंधीय और उपउष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में बढ़ सकती है, बल्कि उत्तरी अक्षांश 60 डिग्री से भी ऊपर के ठंडे क्षेत्रों में भी। गहरे ठंड में भी गेहूं विकसित हो सकती है और वसंत में गर्मी के साथ वृद्धि कर सकती है। अच्छी उपज के लिए आवश्यकता है कि पूरे विकासनावधि के दौरान शीतल, नम मौसम बना रहे, जिसके बाद सूखा और गरमी बनी रहे ताकि अनाज सही रूप से पक सके।
गेहूं की सिंचाई में सूक्ष्म सिंचाई प्रणाली का इस्तेमाल करना अधिक महत्वपूर्ण। इससे पानी की बचत होती है और पैदावार में भी वृद्धि होती है। पानी बचाने और 'प्रति बूंद अधिक फसल' के आदर्श वाक्य को साकार करने के लिए सूक्ष्म सिंचाई प्रणाली महत्वपूर्ण है। ड्रिप सिंचाई की तकनीक खासकर बागवानी फसलों के लिए काफी कारगर है। गेहूं की खेती में भी ड्रिप सिंचाई का इस्तेमाल सफलतापूर्वक किया गया है। ड्रिप सिंचाई के इस्तेमाल से खेती की पारंपरिक प्रणाली की तुलना में चावल में 33 प्रतिशत और गेहूं में 23 प्रतिशत की बढ़ोतरी देखने को मिली है। माइक्रो, मिनी और पोर्टेबल स्प्रिंकलर सिंचाई में काफी मददगार हैं। इस तकनीक के माध्यम से सिंचाई करने पर बारिश के जैसी बूंदें फसल पर पड़ती हैं। ऐसे में इस फव्वारा सिंचाई भी कहते हैं। इस तकनीक या विधि में पानी को ट्यूबवेल, टंकी या तालाब से पाइपों के जरिए खेत तक ले जाते हैं और वहां पर उन पाइपों के ऊपर नोजल फिट कर दी जाती है। इन नोजल से होकर फसलों पर पानी बिलकुल बारिश के जैसा गिरता है। वहीं माइक्रो स्प्रिंकलर तकनीक से लीची की पॉली हाउस, शेडनेट हाउस की सिंचाई करनी चाहिए। मिनी स्प्रिंकलर से चाय, आलू, धान, गेहूं और सब्जी की सिंचाई करनी चाहिए, पोर्टेबल स्प्रिंकलर से दलहन और तिलहन फसलों की सिंचाई की जा सकती है। वहीं ड्रिप सिंचाई तकनीक के जरिए पानी पौधों की जड़ों में बूंद-बूंद करके लगाया जाता है। इस पद्धति में पानी की बर्बादी नहीं होती है और पैदावार भी बढ़ती है।
गेहूं की फसल में मौसम का प्रभाव: गेहूं की फसल में मौसम का बड़ा हाथ होता है। यह न केवल पौधों के विकास को प्रभावित करता है, बल्कि उपज की मात्रा और गुणवत्ता पर भी बहुत असर डालता है। गेहूं की खेती के लिए आदर्श जलवायु से तात्पर्य उचित वर्षा, सही तापमान और उचित उन्नत भूमि से है। मौसम के अनुकूल नहीं होने पर बीज का अंकुरण सही रूप से नहीं हो पाता, जिससे उच्च उपज प्राप्ति में कमी होती है। गेहूं की खेती में मौसम का असर खासकर फूलों के विकास में भी दिखाई देता है। अच्छे मौसम में फूल खूबसूरत और स्वस्थ होते हैं, जिससे फलों की सही उत्पत्ति होती है। गेहूं के लिए सही तापमान की आवश्यकता है। अधिक या कम तापमान में उपज पर नकारात्मक प्रभाव हो सकता है। शुष्क, उच्च गुणवत्ता वाली भूमि में गेहूं उगने के लिए उपयुक्त मौसम अत्यंत महत्वपूर्ण है।
रतुआ रोग: इस रोग को साधारण भाषा में रतुआ या रस्ट कहा जाता है जो फरवरी-अप्रैल में देखा जा सकता है। यह रोग पत्तियों, बालियों आदि को संक्रमित करती है। ज्यादा पोटाश या नाइट्रोजन युक्त उर्वरकों का प्रयोग रतुआ न करें।
दीमक रोग: इस कीट का प्रकोप मुख्य रूप से हल्की असिंचित, अर्धसिंचित बलुआ मिट्टी एवं असिंचित फसल पर व अधिक तापमान की अवस्था में अधिक होता है। यह गेहूं के पौधे को जड़ से खाकर तने के अंदर तक जाता रहता है। जिस क्षेत्र में दीमक की समस्या ज्यादातर देखी जाती है उन क्षेत्रों में क्लारोप्यरीफास 20 ई सी की 1 लीटर दवा का 8-10 किग्रा रेत या बजरी में मिलाकर प्रति एकड़ के हिसाब से छिड़काव करे।
लूज स्मट रोग: गेहूं के खेतो में जल्दी निकलने वाली बालियों पर एक काला पाउडर दानों पर बन जाता है। बालियों के स्थान पर रोगी बालियों के अण्डाशयों में काला पाउडर नजर आता है। रोगग्रस्त पौधों को खेत से बाहर निकालकर भूमि में गाड़ देना चाहिए। सोलर उपचार विधि को अपनाकर बीजों को संक्रमण रहित बनाया जाता है।