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Haldi Ki Kheti: हल्दी की खेती से किसानों को तेजी से हो रहा लाखों का फायदा

हल्दी की खेती
हल्दी की खेती

भारत दुनिया में हल्दी का सबसे बड़ा उत्पादक देश है। भारत हल्दी का एक प्रमुख उत्पादक और निर्यातक देश है। हल्दी का उपयोग मसाला और दवा के रूप में किया जाता है। भारत में आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, उड़ीसा, कर्नाटक, पश्चिम बंगाल, गुजरात, मेघालय, महाराष्ट्र, असम राज्य में हल्दी की खेती की जाती है। हल्दी उत्पादन का 38 % क्षेत्र और 58.5% उत्पादन अकेले आंध्र प्रदेश से प्राप्त होता है। दुनिया का 60% हल्दी एक्सपोर्ट भारत से किया जाता है। हल्दी का भारतीय किचन में भी एक प्रमुख स्थान है।

हल्दी की खेती के लिए जलवायु, मिट्टी तथा तापमान:

हल्दी को समुद्र तल से 1500 मीटर की ऊंचाई तक उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में उगाई जाती है। 1500 mm या उससे अधिक की वार्षिक के साथ 25-35oC की तापमान पर समुद्र तल से वर्षा आधारित या सिंचित परिस्थितियों में हल्दी की खेती की जा सकती है। हल्दी को सभी प्रकार की मिट्टी पर उगाया जा सकता है, लेकिन यह 6.0-7.5  पीएच मान होना चाहिए, साथ ही अच्छी जल निकासी वाली रेतीली या चिकनी दोमट मिट्टी में सबसे अच्छी उपज देती है। 

हल्दी की खेती के लिए भूमि कैसे तैयार करें:

मौसम की शुरुआती अवस्था में हल्दी की बुवाई करने के लिए भूमि को तैयार कर लेना चाहिए। बुवाई से पूर्व 3 से 4 गहरी जुताई करें। फिर भूमि की अच्छी तरह से जुताई करके मिट्टी में मिला दें। हल्दी की खेती करने लिए भूमि की तैयारी करते समय क्यारी की ऊंचाई 12-15 सेंटीमीटर और चौड़ाई 1 मीटर रखनी चाहिए। प्रकंद या हल्दी के बीज बोते समय दो प्रकंदों के बीच 8 से.मी. की दूरी होनी चाहिए। बेड एक दूसरे से 45 सेंटीमीटर की दूरी पर होने चाहिए। 

हल्दी की प्रमुख किस्में:

  1. सुगंधम : हल्दी की यह किस्म लगभग 210 दिन में तैयार हो जाती है। इस किस्म के कंद के आकार लंबे और हल्की और पीले रंग के होते हैं। आमतौर पर प्रति एकड़ जमीन से करीबन 80 से 100 क्विंटल हल्दी प्राप्त होती है।

  2. सोरमा : इसके कंद अंदर से नारंगी रंग के होते हैं। प्रति एकड़ लगभग 80 से 90 क्विंटल फसल प्राप्त होती है। इस किस्म को खुदाई के लिए तैयार होने में 210 दिन लगता है।
  3. आर एच 5 : करीब 80 से 100 सेंटीमीटर ऊंचे पौधों वाली यह किस्म 210 से 220 दिन में तैयार हो जाती है। प्रति एकड़ भूमि से 200 से 220 क्विंटल हल्दी की उपज होती है।

इन किस्मों के अलावा भी हल्दी की कई उन्नत किस्में हैं, जिनमे सगुना, कोयंबटूर, कृष्णा, आर. एच 9/90, बी.एस.आर 1, पंत पीतम्भ आदि किस्में शामिल हैं। यदि आप अधिक उपज देने वाली, रोग प्रतिरोधी हल्दी किस्मों की तलाश कर रहे हैं, तो प्रतिभा किस्म एक अच्छा विकल्प है, इसे भारतीय मसाला अनुसंधान संस्थान द्वारा चयन किया गया है। 

हल्दी के बीज की बुवाई कब और कैसे करें:
हल्दी की बुआई मई-जून के दौरान की जाती है। हल्दी के बीजों को अक्सर नम पुआल के नीचे रखा जाता है और बुवाई से पहले अंकुरित होने के लिए छोड़ दिया जाता है। देश हल्दी में रोपण का समय आमतौर पर प्री-मानसून वर्षा के ठीक बाद होता है। हल्दी की खेती केरल में अप्रैल, महाराष्ट्र, कर्नाटक के कुछ क्षत्रों में मई के आसपास है।

हल्दी की खेती के लिए बीज: हल्दी की अधिक बढ़वार के लिए बहुत अधिक खाद की आवश्यकता होती है। इसमें राइजोम को सड़ी हुई गोबर की खाद से ढक दिया जाता है और फिर बुवाई की जाती है। इन्हें ट्राइकोडर्मा मिश्रित खाद से भी ढका जा सकता है। नीम की खली का चूर्ण मिट्टी में मिलाकर बुवाई के लिए तैयार किए गए गड्ढों में लगाया जाता है। एक एकड़ भूमि में रोपण के लिए लगभग 800-1000 कि.ग्रा. राइजोम की आवश्यकता होती है। 

हल्दी के पौधों के लिए खाद: हल्दी के पौधे को कीट और रोगों से बचाने के लिए जैविक खेती में गोबर की खाद को बेसल खुराक के रूप में दे सकते हैं। गैर-जैविक खेती में पोटाश और फॉस्फोरस के मिश्रण का उपयोग बेसल खुराक के रूप में किया जाता है। रोपण के लगभग 115 दिनों के बाद, 120 कि.ग्रा. नाइट्रोजन का प्रयोग करें।

हल्दी की फसल में लगने वाले कीट और प्रबंधन:

  1. कंद मक्खी : यह मक्खियां हल्दी के विकसित होने के समय उसे खा कर बरबाद कर देती हैं। प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 10 किलो फोरट 10 जी के दानों का प्रयोग कर के इनसे निजात पाया जा सकता है।
  2. तना भेदक : इस कीट से हल्दी की फसल को सबसे ज्यादा नुकसान होता है। इसका नियंत्रण 0.05 प्रतिशत डाइमिथोएट या फास्फोमिडान का छिड़काव करने से किया जा सकता है।
  3. कंद सड़न : इस रोग के होने पर पौधों के ऊपरी भागों पर धब्बे हो जाते हैं और कुछ दिन बाद पौधे सूख जाते हैं। इस रोग से बचने के लिए प्रभावित क्षेत्रों की खुदाई कर बौर्डियोक्स मिश्रण या डाईथेन एम - 45 डालना चाहिए।

हल्दी की कटाई: अच्छी तरह से प्रबंधित हल्दी की फसल 8 से 9 महीनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। किस्म और बुवाई के समय के आधार पर फसल आमतौर पर जनवरी-मार्च के दौरान काटाई की जाती है। पकने के बाद पत्तियाँ सूख जाती हैं और हल्के भूरे से पीले रंग की हो जाती हैं।

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