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Cucumber Cultivation in Hindi: पालीहाउस में खीरे की खेती से किसान कर सकते हैं अच्छी कमाई, जानें तरीका

खीरे की खेती
खीरे की खेती

पालीहाउस की खेती एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें बिना मौसम की सब्जियां कम से कम नुकसान पर उगाई जा सकती हैं। यह एक तरह की संरक्षित प्रणाली है। इससे किसान अच्छा मुनाफा भी कमा सकते हैं। इसमें खेती करने के लिए वातावरण को अनुकूल बनाया जाता है, इसके बाद सब्जी उगाई जाती है। पालीहाउस संरक्षित, फ्रेमयुक्त संरचना होती है जो कम सघनता वाले पालीथीन या पारदर्शी प्लास्टिक व कीटरोधी नेट से ढके होते हैं। उच्च मूल्य की फसलों को पालीहाउस में मनचाहा वातावरण उपलब्ध कराने से अधिक आमदनी होती है। पालीहाउस में पूरे वर्ष खीरे की खेती की जाती है। इसमें फसल के लिये सूक्ष्म जलवायु का नियंत्रण आवष्यक है। पालीहाउस में सामान्यतः दिन का तापमान रात्रि के तापमान से 5-7 डिग्री सें ग्रे. अधिक होता है। कार्बन डाईआक्साइड की मात्रा 350 पी.पी.एम. से अधिक हो तो उत्पादकता बढ़ जाती है। पालीहाउस में वायु की आर्द्रता 80 प्रतिशत से अधिक हो तो फफूँदी द्वारा कीट फल जाते हैं। पौधे को संरक्षित करने के लिये 90 प्रतिशत नमी एवं आर्द्रता सामान्यतः 60-80 प्रतिशत तक होनी चाहिए। पालीहाउस में जलवायु नियंत्रण को संतुलित रखने के लिए बहुत अधिक ऊर्जा की आवष्यकता होती है। 

खीरे का उपयोग Uses of Cucumber:

खीरे की खेती विश्व के उष्ण तथा उपोष्ण क्षेत्रों में आसानी से की जा सकती है। इसका उपयोग सलाद, अचार, रायता के रूप में किया जाता है। इसके बीज का प्रयोग आयुर्वेदिक दवाओं एवं बीजों से प्राप्त तेल शरीर एवं मस्तिष्क के लिए उपयोगी होता है। खीरे का फल ठंडा होने के कारण इसका उपयोग पीलिया, कब्ज आदि बीमारियों में किया जाता है। 

खीरे की खेती के लिये जलवायु और तापमान:

खीरा गर्म की फसल है। इसकी वृद्धि के लिये 27-35 डिग्री सें.ग्रे. तापमान की आवश्यकता होती है। यह अधिक ठण्ड एवं पाले के प्रति संवेदनयशील होता है एवं अधिक तापमान एवं आर्द्रता होने से इसमें पाउडरी मिल्ड्यू रोग उत्पन्न होता है। खीरे के लिये उपयुक्त तापमान 15-40 डिग्री सेल्सियस तापमान की आवश्यकता होती है। खीरे की वृद्धि के लिये नमी 90 प्रतिशत होनी चाहिए।

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पालीहाऊस में कैसे करें पौधे तैयार:

पौधे को तैयार करने के लिये 50 छिद्रों वाले ट्रे का इस्तेमाज करते हैं, जिसमें एक-एक बीज सभी छिद्रों में बोते हैं। ट्रे में भरने हेतु मिश्रण कोकोपीट, परलाइट एवं वर्मीकम्पोस्ट का इस्तेमाल करते हैं और फिर सभी छिद्रों में एक-एक बीज की बुवाई करते हैं। बीज बोने के उपरान्त 3-4 दिन के अन्दर अंकुरण हो जाता है एवं पौधे 20-25 दिनों में रोपण हेतु तैयार हो जाते  हैं। पालीथीन फिल्म का प्रयोग लाभप्रद होता है क्योंकि इससे खरपतवार का कुप्रभाव फसल के ऊपर नहीं पड़ता एवं नमी लम्बे समय तक बनी रहती है।

खीरे के लिये खाद उर्वरक एवं सिचाईं:

कम्पोस्ट या गोबर की खाद 10-15 किलो प्रति वर्ग मीटर की दर से बीज बोने के 3-4 सप्ताह पहले भूमि तैयार करते समय मिट्टी में अच्छी तरह मिला देते हैं। इसके अलावा 7 ग्राम नाइट्रोजन  4 ग्राम फास्फोरस एवं 5  ग्राम पोटाश प्रति वर्ग मीटर की दर से मिलाते हैं।
खीरा की सिंचाई ड्रिप एवं स्प्रिंकलर के माध्यम से करते हैं। पौधों को प्रति दिन 2-3 लीटर पानी प्रति पौधा देते हैं। खीरे में नमी 90 प्रतिशत होनी चाहिये इसलिए स्प्रिंकलर द्वारा दिन में दो से तीन बार पानी का छिड़काव करना चाहिए। सिंचाई के साथ उर्वरक फर्टिगेशन प्रणाली द्वारा दिये जाते हैं। 10-12 दिन के अन्तराल पर घुलनशील 19:19:19 एन.पी.के. देना चाहिए।

खीरे के पौधे का रोपण तथा किस्म: खीरा के लिये एक मीटर चैड़े एवं 15 सेंमी. ऊँचाई वाली कयारी बनाते हैं। उसके उपरान्त उस पर ड्रिप लाइन एवं मल्चिंग बिछाते हैं। मल्चिंग बिछाने के उपरान्त 75x75 सेंमी. की दूरी पर छेद काटकर एक-एक पौधे की बुआई करते हैं। बुवाई के बाद पौधे की सिंचाई हजारे की सहायता से करते हैं जब तक पौधा सही ढंग से स्थापित न हो जाये। प्रजाति- चइना, प्वाईनसेट, लौंग गीन, सुपर ग्रीन, स्ट्रेट-8 ,बालम खीरा, पूना खीरा, पुसा संयोग, पारथोनोकारपिक प्रजाति।

तुड़ाई और उपज: पौधे लगाने के 35-40 दिन के बाद फल तोड़ने हेतु तैयार हो जाते हैं। फलों की तुड़ाई 3-4 दिनों के अंतराल पर करना चाहिए। फलों की तुड़ाई के उपरान्त इन्हें प्लास्टिक की कैरेट में रखकर बाजार में भेजा जाता है। पालीहाउस में खीरे की उपज 250-300 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है।

 

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