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Beetroot Cultivation in Hindi: आधुनिक तरीके से चुकंदर की खेती इससे किसान कमा सकते है अच्छा मुनाफा

चुकंदर की खेती
चुकंदर की खेती

चुकंदर, एक ऐसा फल है जिससे सारे साल भर हमारे रसोईघर में रंग भरता है। इसका सेवन न केवल हमारी सेहत के लिए फायदेमंद है, बल्कि इससे किसानों को भी एक नए और लाभकारी खेती का अवसर प्राप्त हो सकता है। इसे सब्जी के रूप में पकाकर, या बिना पकाए अपनी प्राकृतिक मीठास के साथ आनंद लिया जा सकता है। चुकंदर को 'मीठी सब्जी' भी कहा जाता है, क्योंकि इसका स्वाद खाने में हल्का मीठा होता है। इसके फल जमीन के नीचे होते हैं, और चुकंदर के पत्ते भी सब्जी के रूप में उपयोग किए जा सकते हैं। चुकंदर में विभिन्न प्रकार के पोषण तत्व होते हैं, जो मानव शरीर के लिए बहुत फायदेमंद होते हैं। चुकंदर का सेवन आमतौर से डॉक्टरों द्वारा भी सुझाया जाता है। इसे खून की कमी, अपच, कब्ज, एनीमिया, कैंसर, हृदय रोग, पित्ताशय विकार, बवासीर और गुर्दे के विकारों को दूर करने के लिए उपयोग करने की सलाह दी जाती है। चुकंदर को सलाद, जूस, और सब्जी के रूप में शामिल किया जा सकता है। इसकी बहुत अधिक मांग के कारण, किसान भाइयों के लिए चुकंदर की खेती एक लाभकारी विकल्प बन सकती है।

चुकंदर की खेती करके कमाएं अच्छा मुनाफा Earn Good Profits by Cultivating Sugar Beet:

चुकंदर एक मध्यम अवधि की फसल है, जो बेहद कम समय में किसानों को अच्छा मुनाफा देती है. चुकंदर की बिजाई (Beetroot Cultivation) के बाद यह फसल 120 दिनों में यानी 3 महीने में पककर तैयार हो जाती है। चुकंदर के पौधे अलग-अलग किस्मों के आधार पर प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 150 से 300 क्विंटल की पैदावार देते हैं। चुकंदर का बाजारी भाव किस्म और फल के हिसाब से 20 से 50 रूपए के मध्य होता है। किसान भाई एक हेक्टेयर के खेत में चुकंदर की फसल करके दो से तीन लाख की अच्छी कमाई कर सकते हैं। 
चुकंदर की खेती में समर्थन की नई तकनीकों का प्रयोग करना अब एक स्मार्ट खेती के लिए एक महत्वपूर्ण कदम बन चुका है। स्थानीय मौसम, मिट्टी की गुणवत्ता, और प्राकृतिक संघटन के आधार पर हमें सही समय पर बुआई करने की योजना बनानी चाहिए। चुकंदर के पौधे भूमि की सतह पर रहकर विकास करते हैं, जिस कारण उसकी जड़ें गहराई में खनिज पदार्थों को ग्रहण नहीं कर पाती हैं, इसलिए चुकंदर के खेत को तैयार करते वक्त अच्छे से उर्वरक की मात्रा देना चाहिए। जुते हुए खेत में 15 गाड़ी पुरानी गोबर की खाद को डालकर कल्टीवेटर के माध्यम से दो से तीन तिरछी जुताई कर खाद को मिट्टी में अच्छे से मिला देना चाहिए। खाद को मिट्टी में मिलाने के बाद खेत में पानी लगा कर पलेव कर देना चाहिए। खेत को 4 से 5 दिन के लिए ऐसे ही छोड़ देना चाहिए। जब खेत की मिट्टी ऊपर से सूखी दिखाई देने लगे तब रोटावेटर के माध्यम से सघन जुताई कर देनी चाहिए।

स्मार्ट तरीके से चुकंदर की खेती Smart Beet Farming:

  • बुआई विधि: चुकंदर की स्मार्ट बुआई के लिए खेत में गहरी जुताई करनी चाहिए और उसे कुछ समय के लिए खुला छोड़ देना चाहिए ताकि खेत की मिट्टी में धूप लग सके। चुकंदर के पौधे भूमि की सतह पर विकास करते हैं, जिससे उसकी जड़ें गहराई में खनिज पदार्थों को ग्रहण नहीं कर पाती हैं।
  • उर्वरक समर्थन: चुकंदर के खेत को तैयार करते वक्त उर्वरक की मात्रा अच्छे से देना चाहिए। जुते हुए खेत में गोबर की खाद को मिट्टी में अच्छे से मिला देना चाहिए।
  • स्मार्ट कल्टीवेशन: खाद को मिट्टी में मिलाने के बाद खेत में पानी लगा कर पलेव कर देना चाहिए। खेत को कुछ दिनों के लिए ऐसे ही छोड़ देना चाहिए ताकि खेत की मिट्टी धूप से सुखा सके। जब खेत की मिट्टी ऊपर से सूखी दिखाई देने लगे, तब रोटावेटर के माध्यम से सघन जुताई कर देनी चाहिए।
  • तकनीकी अध्ययन: नवीनतम खेती तकनीकों का अध्ययन करना और उन्हें अपनाना चुकंदर की बेहतर उत्पादकता के लिए महत्वपूर्ण है। उच्च गुणवत्ता वाले बीजों का चयन और सही खेती प्रणाली का उपयोग करना शामिल है।

चुकंदर की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु और तापमान: 

ठंडे प्रदेशों को चुकंदर की खेती के लिए उपयुक्त माना जाता है, और सर्दियों का मौसम इसके पौधों के विकास के लिए काफी अच्छा होता है। चुकंदर की फसल की अधिक बारिश की आवश्यकता नहीं होती, जिससे अधिक वर्षा इसकी पैदावार को प्रभावित कर सकती है। चुकंदर के पौधों को अंकुरित होने के लिए सामान्य तापमान की जरूरत है, और 20 डिग्री सेल्सियस को इसके विकास के लिए उपयुक्त माना जाता है। चुकंदर की खेती के लिए उपयुक्त मिटटी बलुई दोमट मिटटी है। इसकी खेती को जलभराव वाली भूमि में नहीं करना चाहिए, क्योंकि ऐसी स्थिति में फल सड़न जैसी समस्या उत्पन्न हो सकती है। चुकंदर के बीजों की रोपाई के लिए ठंडी जलवायु उचित मानी जाती है। इसके लिए बीजों की रोपाई को अक्टूबर और नवम्बर के महीनों में करना चाहिए। बीजों की रोपाई से पहले उन्हें उपचारित करना चाहिए, जिससे पौधों में लगने वाले रोगों का खतरा कम हो।

चुकंदर की उन्नत किस्में:

  1. एम. एस. एच. – 102 किस्म: इस किस्म के पौधों को तैयार होने में तीन महीने का समय लगता है। यह चुकंदर की अधिक पैदावार देने वाली किस्म है, जो प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 250 क्विंटल का उत्पादन करती है।
  2. क्रिमसन ग्लोब किस्म: चुकंदर की यह किस्म कम समय में अधिक पैदावार देने के लिए जानी जाती है। इसके फलों को तैयार होने में 70 से 80 दिन का समय लगता है। इसके पौधों के फलों का रंग बाहर और अंदर हल्का लाल होता है। यह प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 300 क्विंटल की पैदावार देती है। 

मॉनसून का चुकंदर पर प्रभाव: मॉनसून के अवधि में चुकंदर की खेती पर भी सीधा प्रभाव पड़ता है। ठंडे प्रदेशों को चुकंदर की खेती के लिए उपयुक्त माना जाता है, और सर्दियों का मौसम इसके पौधों के विकास के लिए काफी अच्छा होता है। चुकंदर की फसल की अधिक बारिश की आवश्यकता नहीं होती, जिससे अधिक वर्षा इसकी पैदावार को प्रभावित कर सकती है। उचित सिंचाई की आवश्यकता है, और बीज अंकुरण के बाद पानी की मात्रा को कम करना चाहिए। जलवायु में मॉनसून के प्रभाव को सही तरीके से सामायिक कर सकते हैं।  मॉनसून के प्रभाव का सही रूप से सामायिक और प्रबंधित करने से, चुकंदर की खेती में अच्छी पैदावार हो सकती है और किसानों को अच्छा लाभ प्रदान कर सकती है।

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