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Dhan ki kheti: खेत में जल जमाव की स्थिति होने पर भी किसान कर सकते हैं धान की खेती, जानें वैज्ञानिकों का सुझाव khetivyapar पर

धान की खेती
धान की खेती

यदि आप धान की खेती कर रहे हैं और यदि आपके खेत में भी धान की सीजन में जल जमाव की समस्या आती है तो वैज्ञानिकों द्वारा बताए गए विधि को अपना सकते हैं। जल जमाव वाले खेत में भी धान की फसल लगाकर अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं।
केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक डॉ. रत्नेश कुमार झा ने बताया कि अक्सर किसानों को जल भराव की स्थिति का सामना करना पडता है। बरसात के सीजन में उनके खेत में एक मीटर या डेढ़ मीटर के बीच जल जमाव हो जाता है। ऐसे में किसानों को वहां खेती करने में परेशानी होती है, उन परेशानियों को दूर करने के लिए वैज्ञानिकों द्वारा सुझाव का पालन करके धान की अच्छी उपज कर सकते हैं। किसान भाई प्रति हेक्टेयर बीज दर  20 से 25 किलोग्राम के हिसाब से खेती कर सकते हैं।

जल जमाव की स्थिति:

वैज्ञानिकों ने बताया कि एक से डेढ़ मीटर के अंदर जल जमाव वाले खेतों में किसान भाई गेहूं कटने के ठीक बाद यानी मार्च से मई महीने के बीच धान की सीधी बुवाई कर लेनी चाहिए। अगर नर्सरी में बिचड़ा तैयार कर रोपनी करना चाहते हैं तो 10 जून से पहले कर लें। वैसे खेत के लिए सुधा, वैदेही ,जलमग्न,जलहरी किस्मों के बीजाई का चयन किसान कर कर सकते हैं। 

जल का प्रबंधन इस प्रकार करें:

खेतों में हल्की सिंचाई करके भूमि में नमी बनी रहना चाहिए। इससे पौधों की जड़ों में पर्याप्त वायु का संचार होता है। पौधों की जड़ें एवं कल्लों का अधिक विकास होता है। पोषक तत्वों की उपयोग क्षमता बढ़ जाती है। केवल बालियों के निकलने के समय तथा दाना भरते समय खेत में लगातार पर्याप्त नमी बनाये रखे।

कार्बनिक खाद का प्रयोग: आवश्यक पोषक तत्वों की पूर्ति सिर्फ रासायनिक उर्वरकों से न करके एक चौथाई तत्व कार्बनिक खाद सडी गोबर खाद, कम्पोस्ट, वर्मीकम्पोस्ट आदि डालने से लाभदायक होता है। 

इस प्रकार करें खरपतवार पर नियंत्रण:

बिचड़ों की जड़ के साथ डुठली पौधों को उखाड़कर उथली रोपाई करनी चाहिए। खेत में केवल कीचड़ हो, पानी नहीं लगा होना चाहिए। रोपाई के लिये पौधे से पौधे की दूरी 25 से०मी० × 25 से०मी० रखा जाता है। कोनोबीडर से 10-12 दिनों के अन्तराल पर 3-4 बार निकौनी करें। इससे खर-पतवार के खेत में सड़ने से पौधों को पोषक तत्वों की प्राप्ती होती है। जड़ों में हवा का पर्याप्त संचार होता है जिससे जड़ें स्वस्थ्य रहती है।

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