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अदरक प्रमुख फसलों में से एक है जो मसालों के रूप में उपयोग किया जाता है। भारत विश्व में सबसे बड़ा उत्पादक, निर्यातक और उपभोक्ता देश है। भारत में इसकी खेती असम, उड़ीसा, मेघालय, गुजरात और अरूणाचल प्रदेश में की जाती है। भारत में कुल 65 प्रतिशत अदरक का उत्पादन किया जाता है। औषधीय गुणों की दृष्टि से इसके अनेक लाभ हैं। इसका स्वाद तीखा होता है और इसमें एंटी-इफ्लेमट्री एवं एंटी-आक्सिडेंट गुण पाया जाता है। अदरक की खेती बड़े पैमाने पर करके किसान अधिक लाभ कमा सकते हैं।
अदरक की फसल शुष्क एवं गर्म तापमान में सबसे अच्छी विकसित होती है। इसके लिये जलवायु में नमी नहीं होनी चाहिए। 1000-1800 मिमी. वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्रों में इसकी खेती अच्छी उपज के साथ की जा सकती हैं। अदरक की खेती के लिए रेतीली दोमट मिट्टी और पानी की पर्याप्त निकासी होनी चाहिए। अदरक की फसल के लिये उपर्युक्त तापमान 20 से 32 डिग्री सेल्सीयस होना चाहिए। इसके लिये मिट्टी की पी.एच. मात्रा लगभग 6 से 6.5 होना चाहिए।
अदरक की बुवाई का सही समय अप्रैल से मई में करना चाहिए। जून में भी इसकी बुवाई की जा सकती है, 15 जून के बाद इसकी बुवाई करने पर कंद सड़ने लगते हैं।
खेत की तैयारी: अदरक की खेती नर्सरी बेड बनाकर की जाती है। खेत की बुवाई के लिये 3-4 बार मिट्टी पलटने वाले हल से जुताई कर मिट्टी को अच्छी तरह भुरभुरी बना लें। बेड के बीच में 1 मीटर चैडे और 15 सेमी. ऊंची मेड बना लें। मेडों के बीच 60 सेमी. की दूरी रखनी चाहिए। खेत में गोबर खाद व कंपोस्ट बैक्टीरिया का इस्तेमाल करें।
अदरक की बुवाई तीन विधियों द्वारा की जा सकती है
आई.आई.एस.आर. महिमा - इसकी अनुमानित पैदावार 23.2 टन प्रति हेक्टेयर है, और यह 200 दिन में तैयार हो जाती है।
नर्सरी की तैयारी और फसल चक्र: अदरक के पौधों को पौधशाला में एक माह अंकुरण के लिये रखा जाता है। अदरक की नर्सरी तैयार करने के लिए बीजों या कन्दों को गोबर की सड़ी खाद और रेत (50:50) के मिश्रण से तैयार बीज शैया पर फैलाकर उसी मिश्रण से ढक देना चाहिए और सुबह-शाम पानी का छिड़काव करते रहना चाहिए। अदरक में फसल चक्र अपनाना चाहिए। अदरक के साथ टैपिओका, रागी, धान गिंगेली, मक्का और अन्य सब्जियाँ उगाई जा सकती हैं।
अदरक की खेती में खाद एवं उर्वरक: खेत की तैयारी के समय सड़ी गोबर की खाद या कंपोस्ट 25-30 टन प्रति हेक्टेयर भूमि में मिला देना चाहिए। बुवाई के समय नीम की खली 2 टन प्रति हेक्टेयर मिलाने से कंद बडे और उपज अच्छी होती है। नाइट्रोजन 150 किग्रा., फास्फोरस 100 किग्रा. और पोटाश 120 किग्रा. प्रति हेक्टेयर देना चाहिए। पोटाश की आधी मात्रा बुवाई से पहले मिट्टी में मिला देना चाहिए। शेष बची पोटाश को 90 दिनों के बाद नाइट्रोजन के साथ मिला दें। खेत की निराई-गुड़ाई करके खरपतवार नष्ट कर देना चाहिए।
अदरक की सिंचाई विधि: अदरक बरसात वाली फसल है इसलिए इसकी सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है अक्टूबर-नवम्बर माह में सिंचाई करना आवश्यक है क्योंकि इस माह में अदरक का गांठ बनना तथा उसका विकास होना शुरू हो जाता है। 1000-1800 मि.मी. वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्रों में इसकी खेती अच्छी पैदावार के साथ की जा सकती है। इसकी खुदाई के एक माह पूर्व सूखे मौसम की आवश्यकता होती है।
अदरक की खुदाई: अदरक की खुदाई लगभग 8-9 माह तक करना चाहिए। खुदाई मे देरी करने पर बीज की गुणवत्ता और भण्डारण क्षमता में कमी आ जाती है। बहुत शुष्क और नमी वाले वातावरण में खुदाई करने पर उपज को क्षति पहुँचती है ऐसे समय में खुदाई नहीं करना चाहिए। खुदाई करने के बाद प्रकंदों तथा पत्तियों में लगी हुई मिट्टी को साफ कर देना चाहिए।
अदरक खाने के फायदे:
फसल चिकित्सा रोग निवारण:
उपज और भंडारण: उन्नत किस्मों के प्रयोग एवं अच्छे प्रबंधन द्वारा औसत उपज 300 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक प्राप्त की सकती है। अदरक को खेत में 3-4 सप्ताह तक अधिक छोड़ना पड़ता है जिससे कन्दों की ऊपरी पक जाये और मोटी हो जाये। भण्डारण करने के लिये जब अदरक कडी, कम कडवाहट और कम रेशे वाली हो, ये अवस्था परिपक्व होने से पहले आती है अगर परिपक्व अवस्था के बाद कन्दों को भूमि में पडा रहने दे तो उसमें तेल की मात्रा और तीखापन कम हो जायेगा तथा रेशों की अधिकता हो जायेगी।