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केले के उत्पादन के मामले में देश काफी आगे है। यहां हजारों किसान केले उत्पादन करते हैं। पूरे साल मांग रहने के कारण इसकी बिक्री भी ठीक होती है और किसानों की अच्छी कमाई हो जाती है। भारत में केले की सबसे अधिक उत्पादकता महाराष्ट्र राज्य में होती है। अन्य केला उत्पादक राज्य कर्नाटक, गुजरात, आंध्र प्रदेश और असम हैं। केले का इतना उत्पादन होने के साथ ही किसानों के सामने एक चुनौती यह भी होती है कि केले को कैसे बिना केमिकल के पकाया जाए। अमूमन किसान केमिकल के जरिए ही इसे पकाते हैं। इस खबर में हम जानेंगे कि कैसे किसान केले का अधिक उत्पादन कर सकते हैं और बिना केमिकल के केलों को पका सकते हैं।
किसान केले की पैदावार बढ़ाने के लिए 450 ग्राम यूरिया, 350 ग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश लेकर इसे 5 भागों में बांट लें। इसके बाद हर पौधे में इसे पांच बार डालें। जानकारों के मुताबिक पहली खुराक फरवरी में, दूसरी मार्च में, तीसरी जून में, चौथी जुलाई में और पांचवीं अगस्त में दी जानी चाहिए। वहीं केले की फसल से अच्छी उपज लेने के लिए जरूरी है कि हम केले कि उन्नत किस्मों का भी चयन करें। ताकि बेहतर उपज मिल सके। इनमें हरी छाल, हिल बनाना, पूवन (चीनी चंपा), अल्पान, कैम्पिरगंज, बत्तीसा, कोठिया, मुनथन, एच 2, एफ एच आई ए 1 आदि किस्में शामिल हैं।
विशेषज्ञों के अनुसार केले के पौधों के बीच 1.8x1.5 मीटर की दूरी रखी जाए तो एक एकड़ में लगभग 1452 पौधे लगते हैं। अगर पौधों के बीच 2 मीटर x 2.5 मीटर की दूरी रखी जाए तो एक एकड़ में लगभग 800 पौधे लगेंगे। वहीं, केले की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु गर्म और मध्यम होती है। अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में केले की खेती अच्छी होती है। जैविक दोमट, चिकनी दोमट मिट्टी, जिसमें जल निकास अच्छा हो, वो उपयुक्त मानी जाती है।
तुड़ाई के बाद बात आती है केले को पकाने की। ऐसे में केले को पकाने के लिए कंटेनर को एक बंद कमरे में रखा जाता है और केले के पत्तों से केलों को ढक दिया जाता है। एक कोने में आग जलाई जाती है और कमरे को मिट्टी से सील कर दिया जाता है। लगभग 48 से 72 घंटे में केला पककर तैयार हो जाता है।