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हरी मटर इन दिनों बाजार में अधिक मात्रा में आ रही है। इसका इस्तेमाल सब्जी से लेकर कई अन्य चीजों में किया जाता है। साथ ही इसकी मांग भी लगभग पूरे साल बनी रहती है। इसका रेट भी सर्दी के मौसम में 40 से 50 रुपये किलो रहता है। ऐसे में हरी मटर की खेती करने वाले किसानों को मुनाफा भी होता है। लेकिन कुछ ऐसे तरीके भी हैं जिनका इस्तेमाल करके किसान अपने मुनाफे और मटर की पैदावार को डबल कर सकते हैं। साथ ही इन तरीकों से मटर में लगने वाले रोगों से भी छुटकारा पा सकते हैं।
मटर की बुवाई करने के लिए सबसे अहम मिट्टी या भूमि का चुनाव होता है। किसान किसी भी तरह के खेत में मटर की बुवाई नहीं कर सकते हैं। मटर की खेती बलुई और दोमट मिट्टी में सबसे उपयुक्त मानी गई है। मटर की खेती से बेहतर पैदावार मिलती है। मिट्टी का पीएच मान 6-7.5 उपयुक्त है साथ ही किसानों को बुवाई करने से पहले खेत की अच्छी तरह से गहरी जुताई करनी चाहिए। इसके बाद पाटा चलाकर खेत को समतल कर दें। यदि मिट्टी में दीमक, तना मक्खी और लीफ माइनर का प्रकोप दिखाई देता है, तो खेती की अंतिम जुताई के समय फोरेट 10जी 10 से 12 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर छिड़काव करें। इससे फसल में रोग लगने की संभावना नहीं रहती है।
बुवाई करने से पहले किसानों को बीज की क्वालिटी और मात्रा पर भी ध्यान देना चाहिए। अगर अच्छी क्वालिटी के बीज खेत में नहीं डालेंगे, तो बेहतर उपज नहीं मिलेगी। अगर मटर की ऊंचाई वाली किस्म की बुवाई करना चाहते हैं, तो प्रति हेक्टेयर 70 से 80 किलो बीज खेत में डालें। वहीं, बौनी किस्म के लिए बीज की मात्रा 100 किलो रखें। साथ ही बीजों की बुवाई हमेशा कतार में ही करें।
कृषि विशेषज्ञों के अनुसार मटर की बुवाई से पहले बीजों का उपचार कर लेना चाहिए जिससे बीज अच्छी तरह से अंकुरित हो जायें। आप बीज जनित रोगों से बचाव के लिए फफूंदनाशक दवा थायरम + कार्बनडाजिम (2$1) 3 ग्राम प्रति किलो की दर से बीजों का उपचार कर सकते हैं। वहीं, रस चूसक कीटों से बचाव के लिए थायोमिथाक्जाम 3 ग्राम प्रति किलो की दर से बीजों का उपचार करें। जबकि, फसल का उत्पादन बढ़ाने के लिये बुवाई के समय खेत में पोटाश 60 किलो एवं सल्फर 20 किलो प्रति हेक्टेयर डालें।
पाला और शीतलहर से फसल को बचाने के लिए घुलनशील सल्फर 80 डब्लू पी 2ग्राम/लीटर + बोरोन 1 ग्राम/लीटर का घोल बनाकर तैयार कर लें। इसके बाद फसल के ऊपर इसका छिड़काव करें। इससे मटर की पौधे पर पाले और शीतलहर का असर कम पड़ता है।