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मीठे बांस के विकसित पौधों का उत्पादन बिहार के जिला भागलपुर में स्थित प्लांट टिष्यू कल्चर लैब में सफलता के साथ किया गया है। इस परियोजना से किसानों को नई आय का स्रोत प्राप्त होने की संभावना है। मीठे बांस की खेती व्यावसायिक दृष्टि से किये जा रहे हैं और इससे किसानों की कमाई में वृद्धि होने की संभावना है। अब इससे ग्रीमीण आर्थिकी को समृद्ध करने हेतु नई संभावनाओं का आगमन होगा। वर्तमान समय में इस बांस की मांग अधिक है आज विष्व में कई देशों में इससे खाद्य उत्पाद भी बनाए जाते हैं। इसके साथ ही इस प्रजाति का उपयोग दवाइयां बनाने में भी किया जा रहा है। बांस की खेती न केवल खाद्य उत्पादों के लिए एक उत्कृष्ट स्रोत प्रदान करती है, बल्कि इससे विभिन्न दवाइयाँ भी बनाई जा सकती हैं। इससे ग्रीन इकोनॉमी के प्रति हमारी प्रतिबद्धता को बढ़ावा मिलता है, क्योंकि बांस के पौधों से निकलने वाले उपयुक्त अर्क का उपयोग चिकित्सा में किया जा सकता है।
बांस की इस विशेष प्रजाति की खेती एक सुगंधित और आर्थिक विकल्प के रूप में सामने आ रही है, जो किसी भी मौसम व सभी प्रकार की मृदा में सुचारू रूप से हो सकती है। इस प्रजाति की विशेषता यह है कि इसके पौधे एनटीपीसी से निकले राख के ढेर पर भी उगा जा सकते हैं, जिससे खेती करने में और भी सुविधाएं बढ़ जाती हैं। यह विभिन्न जलवायु और भूमि स्थितियों में भी बढ़िया उपज कर सकती है। इस सुषमा वैराइटी की बांस की खेती से आर्थिकी में सुधार होगी, बल्कि यह किसानों को सामाजिक और आर्थिक दृष्टि से भी सशक्त बनाएगी। इससे ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार की अधिक संभावना होगी और स्थानीय समुदायों को भी विकसित होने का अवसर मिलेगा।
बांस जो एक अद्भुत और पर्यावरण के लिए सही विकल्प है, न केवल निर्माण क्षेत्र में उपयोगी है बल्कि इसका व्यापक उपयोग खाद्य उत्पादों और दवाइयों में भी किया जा सकता है। खाद्य प्रसंस्करण इकाई के माध्यम से बांस के इन पौधों से विभिन्न प्रकार के खाद्य उत्पाद तैयार किये जा सकेंगे। इनका उपयोग चीन, तईवान, सिंगापुर, फिलीपींस आदि देशों में बड़े स्तर पर चिप्स, अचार, कटलेट जैसे उत्पाद तैयार करने में किया जाता है। अब भारत में भी इसका उपयोग व्यावसायिक तौर पर हो सकेगा। ये उत्पाद उच्च गुणवत्ता और पौष्टिकता के साथ होते हैं और उन्हें विभिन्न देशों में बड़े पैमाने पर आसानी से पहुँचाया जा सकता है। बांस के पौधों से निकलने वाले अर्क को दवाइयों में उपयोग किया जा सकता है, जिसमें कैंसर रोधी गुण होते हैं। इसके अलावा, बांस के तेल का उपयोग भी विभिन्न चिकित्सा उद्दीपनाओं में हो सकता है। इससे विशेष रूप से माइग्रेन दर्द को ठीक करने और कान के दर्द को कम करने में मदद हो सकती है। इस प्रकार बांस का उपयोग खाद्य और चिकित्सा क्षेत्र में एक सकारात्मक दिशा में बढ़ते विकल्पों के रूप में किया जा सकता है, जिससे यह एक सुस्त, सुरक्षित और प्रदूषणमुक्त उत्पाद बनता है।
बांस के पौधे कार्बन डाइऑक्साइड को अच्छी तरह से अवशोषित कर कार्बनिक पदार्थ बनाते हैं। ये पदार्थ मृदा में मिलकर मृदा की उर्वराशक्ति भी बढ़ाते हैं। बांस की सहायता से बायो, एथेनॉल, बायो सीएनजी एवं बायोगैस उत्पादन, पर भी शोध प्रगति पर है। भारत बांस की 135 से अधिक व्यावसायिक प्रजातियां पाई जाती हैं और इनका औद्योगिक उपयोग भी है। बांस की खेती से पेपर इंडस्ट्री, फर्नीचर सहित अन्य उद्योगों को काफी बढ़ावा मिलता है। निकट भविष्य में बांस को प्लास्टिक का सबसे बड़ा विकल्प माना जा रहा है। बांस की खेती,जो किसानों की आय को बढ़ाने के साथ-साथ पर्यावरण के प्रति जिम्मेदारी को भी ध्यान में रखती है,बड़ी उपज और नए अवसरों का स्रोत है। इस पौधे की खास विशेषता यह है कि इसके पौधे न केवल कार्बन डाइऑक्साइड को अवषोषित करने में सक्षम हैं,बल्कि इससे उत्पन्न होने वाले कार्बनिक पदार्थ भी मृदा में मिलकर मृदा की ऊर्जा स्तर को बढ़ाते हैं। बांस के पौधों से निकले राख के ढेर से निकलने वाले बायो सीएनजी गैस और एथेनाल के उत्पादन पर भी शोध प्रगति पर है। इस प्रकार,बांस की खेती न केवल किसानों को सतत आय प्रदान करती है बल्कि अधिक से अधिक उद्यमिता और विकास की स्थिति में समर्थन करती है। आने वाले समय में बांस को प्लास्टिक के बड़े विकल्प के रूप में देखा जा रहा है,जिससे प्रदूषण को कम करने में भी मदद हो सकती है।