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धान की फसल विश्वस्तर के साथ-साथ भारत की सबसे महत्वपूर्ण मुख्य फसलों में से एक है। धान की अधिक उत्पादन के अनुकूलित वातावरण तथा उचित पोषण की जरूरत होती है। धान अपने विकास के दौरान कई चरणों से गुजरता है, जिसमें कल्ले फूटने का विशेष महत्व रखता है। धान के कल्ले फूटने (टिलरिंग) के चरण के विकास और फसल उत्पादकता बढ़ाने के लिए उचित उर्वरक प्रबंधन करना चाहिए।
धान कल्ले बनना वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा धान का पौधा मुख्य कलम के आधार से द्वितीयक अंकुर टिलर या कल्ले का विकास करता है। ये कल्ले वनस्पति अवस्था के दौरान निकलते हैं और उत्पादक पुष्प गुच्छों की अंतिम संख्या निर्धारित करने में भूमिका निभाते हैं, जो सीधे अनाज की उपज को बढ़ाते हैं। कल्ले फूटना धान के विकास के प्रारंभिक अवस्था में होता है, जो कि पर्यावरणीय परिस्थितियों के आधार पर, रोपाई या सीधी बुआई के बाद दो से पांचवें सप्ताह तक शुरू होता है।
धान की रोपाई के 25-50 दिन के दौरान धान की फसल में कल्ले निकलना शुरू हो जाते हैं। धान के पौधों को सबसे ज्यादा पोषण की जरूरत होती है। इस दौरान धान के खेत में एक एकड़ के हिसाब से 20 किलो नाइट्रोजन और 10 किलो जिंक का मिश्रण मिलाकर फसल पर छिड़काव करें। अजोला की खाद भी फसल में डाल सकते हैं।
जैविक खाद का प्रयोग: धान की फसल से अच्छी पैदावार लेने के लिये जैविक खाद का प्रयोग अधिक करना चाहिए। विशेषज्ञों की मानें तो धान एंजाइम गोल्ड का इस्तेमाल करके काफी फायदा दे सकते हैं। धान एंजाइम गोल्ड को समुद्री घास से निकाला जाता है जो धान की बढ़वार में मदद करता है। यह अजोला (Azolla) की तरह काम करता है, जिससे कीड़ों और रोगों के लगने की संभावना भी कम हो जाती है। इसके छिड़काव के लिये एंजाइम गोल्ड को एक लीटर पानी में मिलाकर घोल बनायें और एक हेक्टेयर खेत में इसकी 500 लीटर मात्रा का छिडकाव करें।
धान के कल्ले बनने का समय: शुरुआत में रोपाई से 20 – 40 दिन के समय में कल्ले बनना प्रारंभ हो जाते हैं और उनकी संख्या धीरे-धीरे बढ़ती है। फिर धान का पौधा सक्रिय कल्लों का विकास करता है, और बड़े पैमाने पर कल्लों का निर्माण होता है। कल्ले बनने के अंतिम अवस्था में, धान का पौधा नए कल्लों का उत्पादन बंद कर देता है और पुष्पगुच्छ की वृद्धि करने लगता है।
धान में चलाएं पाटा: धान की रोपाई के 20 दिन बाद पाटा चलाना चाहिए। ऐसा करने से धान की जड़ों में थोड़ा झटका लगता है और जो फसलें छोटी या हल्की होती हैं वह भी अंकुरित होकर बढ़ने लगती हैं। पाटा लगाने के दौरान खेत में पानी जरूर होना चाहिए। पाटा लगाने से धान की फसलों में लगने वाली सुंडी या कीड़े झड़कर पानी में गिर जाते हैं, जिससे फसलों को नुकसान नहीं पहुंच पाता है। पाटा उल्टी और सीधी दोनों ही दिशाओं में लगाना चाहिए।
खेत से पानी को बाहर निकालना: धान एक पानी वाली फसल है, रोपाई के 20-25 दिन बाद पानी निकाल देना चाहिए, लेकिन एकदम सूखा ना करें मिट्टी में नमा बनी रहे। ऐसा करने से धान की जड़ों पर सीधे धूप पड़ती है और फसल को भरपूर मात्रा में ऑक्सीजन मिल पाती है। इस दौरान निराई-गुड़ाई भी कर सकते हैं।
कल्ले निकलने की अवस्था के दौरान उर्वरक प्रबंधन धान की खेती का एक महत्वपूर्ण पहलू है। उर्वरकों का उचित प्रयोग न केवल कल्लों की संख्या को प्रभावित करता है।
धान की फसलों का बैक्टीरियल लीफ ब्लाइट से संरक्षण: क्टीरियल लीफ ब्लाइट एक प्रचलित बीमारी है जो आमतौर पर धान की फसल को प्रभावित करती है। इस बीमारी में कृषि उपज को काफी नुकसान पहुंचाने की क्षमता है।
लक्षण: बैक्टीरियल लीफ ब्लाइट धान की वृद्धि के विभिन्न चरणों में देखे जा सकते हैं। अंकुरों में, संक्रमित पत्तियाँ शुरू में पीली या भूसे के रंग की होकर मुरझा जाती हैं। पौधों में कल्ले निकलने से लेकर पुष्पगुच्छ बनने की अवधि के दौरान, पत्तियों पर हल्के हरे से भूरे-हरे रंग की पानी से लथपथ धारियाँ दिखाई देती हैं। ये धारियाँ आपस में मिलकर असमान किनारों वाले बड़े पीले घाव बनाती हैं। । बैक्टीरियल ब्लाइट का जैसे-जैसे संक्रमण बढ़ता है, पत्तियों से दूधिया जीवाणु रिसता हुआ दिखाई दे सकता है।
बैक्टीरियल लीफ ब्लाइट से बचाव: धान की ऐसी किस्मों का चयन करें जो बैक्टीरियल ब्लाइट के प्रति प्रतिरोधी हों, क्षति से बचने के लिए रोपाई के दौरान पौधों को सावधानी से संभालें। उचित क्षेत्र और नर्सरी जल निकासी सुनिश्चित करें। अनुकूल मौसम परिस्थितियों में अंतिम नाइट्रोजन प्रयोग के दौरान पोटाश की एक अतिरिक्त खुराक डालें। बैक्टीरिया के प्रसार को कम करने के लिए खरपतवार को साफ करें। रासायनिक नियंत्रण: कॉपर हाइड्रॉक्साइड 53.8% डीएफ, स्ट्रेप्टोमाइसिन सल्फेट 90.0% एसपी, टेट्रासाइक्लिन हाइड्रोक्लोराइड 10.0% एसपी का छिड़काव।
निष्कर्ष: धान का कल्ले बनना एक महत्वपूर्ण चरण है जो अंतिम अनाज की उपज निर्धारित करता है। धान की सफल खेती सुनिश्चित करने के लिए कल्लों के निर्माण को प्रभावित करने वाले कारकों, कल्लों के निकलने के चरणों और उचित उर्वरक प्रबंधन के महत्व को समझना महत्वपूर्ण है। उचित उर्वरक प्रबंधन स्वस्थ कल्लों के विकास को बढ़ावा देने, तनाव प्रतिरोध को बढ़ाने और उत्पादकता को अधिकतम करने के लिए महत्वपूर्ण है। धान के पौधों को आवश्यक पोषक तत्व प्रदान करके और अनुकूल पर्यावरणीय परिस्थितियों को बनाए रखकर, किसान कल्लों के उत्पादन को अधिकतम कर सकते हैं, जिससे धान की भरपूर फसल हो सकती है और दुनियाभर में लाखों लोगों के लिए खाद्य सुरक्षा में योगदान हो सकता है।