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Protect Goat from Diseases in Hindi: रसीला चारा खाती है बकरी तो हो सकती हैं कई बीमारियां, जानें बचाव के तरीके

रसीला चारा खाती है बकरी तो हो सकती हैं कई बीमारियां
रसीला चारा खाती है बकरी तो हो सकती हैं कई बीमारियां

इस समय देश में बड़ी संख्या में किसान पशुपालन भिंकर रहे हैं। गाय, भैंस, बकरी जैसे मवेशी के अलावा मछली पालन और मुर्गीपालन जैसा व्यवसाय भी अधिक तेजी से बढ़ रहा है। बकरी पालन के काम को कम पूंजी और कम जगह में भी आसानी से किया जा सकता है। बकरी को सीमांत और भूमिहीन किसानों द्वारा दूध और मांस के लिए पाला जाता है। इसके अलावा बकरी की खाल, बाल और रेशे का भी व्यावसायिक महत्व है। बकरी पालन शुरू करने से पहले यह जरूरी है कि किसान को बकरी पालन से जुड़ी सारी जानकारी हो। बकरियों के आहार का खास ध्यान रखने की जरूरत होती है। खासकर अगर बकरी लगातार गीला या रसीला चारा खाए तो वो कुछ बीमारियों की चपेट में आ सकती है।

क्या खिलाएं किसान What Should Farmers Feed:

विशेषज्ञों के मुताबिक बकरियों, गाय, और भैंस को हरा चारा खिलाना काफी उपयोगी होता है। विशेषज्ञों के अनुसार हरे चारे में प्रोटीन, खनिज, लवण और विटामिन प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। बकरियों द्वारा खाया जाने वाला हरा चारा कई रूपों में उपलब्ध है। जैसे कई प्रकार की घास, पेड़-पौधों की पत्तियां, फलियां, पत्तेदार सब्जियां, बरसीम और चरी आदि। यदि अच्छा चारागाह, झाड़ियां और पौष्टिक हरा चारा उपलब्ध हो तो दाना मिश्रण देना आवश्यक नहीं है। 

अनाज का मिश्रण है बेहद लाभकारी:

बकरियों को अनाज का मिश्रण देना काफी लाभकारी होता है। अनाज मिश्रण, प्रजनन काल के दौरान नर को 200 ग्राम, गर्भवती बकरियों को 200 ग्राम (अंतिम 60 दिन) और एक ली. प्रतिदिन दूध देने वाली बकरियों को 250 ग्राम अनाज का मिश्रण देना चाहिए। अनाज मिश्रण बनाने के लिए स्थानीय उपलब्धता के आधार पर कोई भी सस्ता अनाज 50-60 प्रतिशत, दालें 20 प्रतिशत, खली 25 प्रतिशत, गेहूं की भूसी या चावल की भूसी 10 प्रतिशत, खनिज मिश्रण 2 प्रतिशत और साधारण नमक 1 प्रतिशत तैयार करें। 

ऐसा करने से बचें:

किसानों को बकरियों का आहार धीरे-धीरे बदलना चाहिए। बरसीम, लूसर्न, लोबिया जैसे रसीले चारे अधिक मात्रा में न खिलाएं, इससे बकरियों को अफरा रोग हो सकता है। सुबह-सुबह जब घास पर ओस हो और जल जमाव हो उस क्षेत्रों में बकरियों को चरने के लिए न भेजें, इससे एंडोपरैसाइट्स का प्रकोप हो सकता है।

अफरा रोग और इससे बचाव का तरीका: अफरा रोग के होने पर अगर पशुओं का समय पर उपचार न किया जाए तो पशुओं की मृत्यु भी हो सकती है। इस रोग में जब पशु अधिक गीला हरा चारा खाते हैं तो उनके पेट में दूषित गैसें- कार्बन-डाइऑक्साइड, हाइड्रोजन-सल्फाइड, नाइट्रोजन और अमोनिया आदि जमा हो जाती हैं और उनका पेट फूल जाता है, जिसके कारण पशु अधिक बेचैन हो जाता है। इस रोग को अफ़रा या अफारा कहा जाता है। पशु को अफरा रोग की स्तिथि में टिंचर हींग 15 मि.ली, स्पिरिट अमोनिया एरोमैटिक्स 15 मिली, तेल तारपीन 40 मिलीलीटर और अलसी का तेल 500 मि.ली एकसाथ मिलाकर पिलाना चाहिए।

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