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Makhana Cultivation in Hindi: किसानों के लिये सुनहरा अवसर मखाना की खेती से कमाएं अच्छा मुनाफा, ऐसे करें खेती होगी बंपर पैदावार

मखाना की खेती से कमाएं अच्छा मुनाफा ऐसे करें खेती होगी बंपर पैदावार
मखाना की खेती से कमाएं अच्छा मुनाफा ऐसे करें खेती होगी बंपर पैदावार

मखाना एक ऐसा जलीय पौधा है, जिसमें गरीब किसानों को जीविकोपार्जन में सहयोग होता है। मखाना को काला हीरा भी कहा जाता है। यह एक नकदी फसल है तथा भारत के पूर्वी क्षेत्र के मछुआरा समुदाय के लोगों के लिए जहाँ कृषि बहुत ही कठिन एवं जोखिम भरा कार्य है। मखाना का विस्तार भारत के उत्तर-पूर्वी क्षेत्र तथा जम्मू एवं कश्मीर में हुआ है। मखाना की खेती उत्तर-पूर्वी क्षेत्र एवं पूर्वी क्षेत्र के मौसमी जल क्षेत्रों के लिए एक अवसर प्रदान करती है। मछली और सिंघाड़ा के साथ मखाना की खेती पूर्वी क्षेत्र के लिए व्यवहार्य कृषि प्रणाली है। किसानों को उथले जल में मखाना की खेती से अधिकाधिक लाभ पाने का अवसर प्रदान करती है। मखाने के साथ सिंघाड़ा, धान, गेहूँ, बरसीम और अन्य फसलों को उगाया जा सकता है। भारत में बिहार ही एक मात्र ऐसा राज्य है जो मखाना का व्यवसायिक रूप से उगाया जाता है। मखाना के कुल उत्पादन का करीब 88 प्रतिशत हिस्सा दरभंगा, मधुबनी, पूर्णिया एवं कटिहार जिले से आता है। इसकी खेती 13,000 हेक्टेयर भूमि में की जाती है।

मखाना की खेती के लिये जलवायु तथा तापमान Climate and temperature for Makhana cultivation:

मखान की खेती उष्ण एवं उपोष्ण जलवायु का पौधा है। यह वर्षभर रहने वाले जल जैसे तालाब, गोखुर झील, कीचड़ तथा गड्ढे में उगता है। इसके विकास के लिये 20 डिग्री सें. से 35 डिग्री से. तापमान उपयुक्त है तथा 100  सेमी. से 250 सेमी. वार्षिक वर्षा का होना अति आवष्यक है। मखाना की खेती हजारों गरीब किसानों खासकर बिहार एवं मणिपुर के किसानों की जीविका है। इसे पाप्ड के रूप में बाजार में बेचा जाता है।

मखाना की खेती के लिये बुवाई तथा रोपाई Sowing and transplanting for Makhana cultivation:

मखाना की खेती जल जमाव वाले क्षेत्र मे जिसकी गहराई 4 से 6 फीट हो या फिर खेतों में अन्य फसलों की भाँति इसकी खेती होती है। इसमें 30 से 90 किलोग्राम स्वस्थ मखाना के बीज को  तालाब में दिसम्बर के महीने हाथों से छींटते हैं। बीज को लगाने 35 से 40 दिन बाद पानी के अंद बीज का उगना शुरू हो जाता है तथा फरवरी के अंत या मार्च के शुरू में मखाना के पौधे जल की ऊपरी सतह पर निकल आते हैं। 

स्वस्थ्य पौधे की रोपाई मार्च से अप्रैल के माह में कतार से कतार एवं पौधे से पौधे की दूरी 1.20 मी. से 1.25 मी. पर की जाती है। रोपाई के दो महीने के बाद चमकीले बैंगनी रंग का फूल निकलना शुरू हो जाता है। मखाना के सभी भाग कँटीले प्रकृति के होते हैं। मखाना के फल परी तरह पकने के बाद फल फटना शुरू हो जाते हैं। फसल कटाई के 2 से 3 माह बाद जल में शेष बचे एक तिहाई बीज जो इकठ्ठा करते समय छूट जाते हैं दूसरी फसलल के लिये अंकुरित होना शुरू कर देते हैं।

मखाना के लिये तालाब तथा खेत की तैयारी Preparation of pond and field for Makhana:

मखाने को तालाब में बीज बोने की आवश्यकता नहीं होती है क्योंकि पूर्व वर्ष के तालाब में बचे बीज आगामी वर्ष के लिये बीज काम करते हैं। खेती विधि में मखाना के बीज को सीधे खेतों में बोया जाता है या तो धान की फसल की भाँति तैयार पौधे को रोपना होता है। मखाना की खेती 1 फीट तक पानी से भरे कृषि भूमि में की जाती है। एक खेत में मखाना के साथ-साथ धान एवं अन्य फसलों को उगाया जा सकता है। मखाना के पौधों को सर्वप्रथम नर्सनी तैयार की जाती है। खेत की 2 से 3 गहरी जुताई के बाद ट्रैक्टर या देशी हल की सहायता से पाटा देकर खेत को मखाना की खेती के लिये तैयार करते हैं। इसकी खेती फरवरी के प्रथम सप्ताह से अप्रैल के दूसरे सप्ताह तक पूरी कर लेनी चाहिए। रोपाई से पूर्व खेत के चारों ओर 2 फीट ऊँचा बाँध बनाकर लगभग 1 फीट पानी भर देना चाहिए।

खाद्य उर्वरक तथा नर्सरी की तैयारी Food fertilizers and nursery preparations:

खेतें में मखाना की पैदावार के लिये खाद एवं उर्वरकों का प्रयोग अति आवश्यक है। मखाना की फसल में औसतन नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश क्रमश 100:60:40 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की आवश्यकता होती है। मखाने की खेती के लिये चिकनी-दोमट मिट्टी बहुत उपयुक्त मानी जाती है। खेत को मखाने की खेती के लिये दो से तीन गहरी जुताई आवश्य कर लेनी चाहिए। खेत को समतल करके दो फीट ऊँचा बाँध खेत के चारों तरफ बनाना चाहिए। इसके बाद 1-5 फीट पानी डालकर मखाना के बीज की दिसम्बर माह में बुवाई करनी चाहिए। एक हेक्टेयर क्षेत्र में मखाने की बुवाई के लिये लगभग 500 मी2 क्षेत्र में नर्सरी तैयार करना चाहिए। इसके लिए 20 किलो मखाना के स्वस्थ बीज को पानी से भरे तैयार खेत में छींट देना चाहिए। 

मखाना की कटाई तथा भण्डारण: मखाना की खेती में तालाब में बीजों को जमा करना होता है और यह सिलसिला अगस्त से अक्टूबर महाने तक चलता है। बीजों को सुबह 6 से 11 तक पारम्परिक तरीके से इकठ्ठा करना होता है। करीब 4 से 5 लोग तालाब से बीज को इकठ्ठा करते हैं। तालाब में बांस के डंडे की सहायता से बांध दिया जाता है। इससे पूरा बीज सही ढंग से साफ हो जाता है तथा गंदगी दूर हो जाती है। बीज को फिर से बेलनाकार कंटेनर से जमीन की सतह पर बीज को रगड़ने के लिये रौल किया जाता है जिससे बीज चिकना हो जाता है। फिर बीज को रगड़कर धोया जाता है। फिर इसे गनी बैग में रखा जाता है।

मखाना को आसानी से साधारण अवस्था में लम्बे समय तक भण्डारण किया जा सकता है। परंतु इसके बडे ढेर की वजह से यह ज्यादा जगह लेता है। अतः मखाना के सम्पूर्ण उत्पाद को मुख्यतः थोक व्यापारी को बेचा जाता है। थोक व्यापारी मखाना का भण्डारण कर लेते हैं ताकि उसे फसल की कटाइ्र के कुछ दिन बाद बेचने पर ज्यादा लाभ मिल सके। बाजार में लावा मखाना को 150 से 200 रूपये प्रति किलोग्राम के भाव में बेचा जाता है और उत्तम क्वालिटी का मखाना 250 से 300  रूपये प्रति किलोग्राम के भाव से बेचा जाता है, जिससे किसान अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं।

मखाना के पौधे में लगने वाले कीट तथा नियंत्रण:

  1. एफिड- यह कीट पौधे की पत्तियों को नुकसान पहुँचाते हैं। जबकि केसवर्म एवं जड़ भेदक क्रमश फूल एवं जड़ को नुकसान पहुँचाते हैं। नियंत्रण के लिये 0.3 प्रतिशत नीम तेल के घोल का छिड़काव करना चाहिए। भेदक से बचाव के लिये 25 किलोग्राम नीम की खली को प्रारम्भ में खेत की तैयारी करते वक्त डालना चाहिए।
  2. झुलसा रोग- मखाना के पौधे में यह रोग एक बहुत ही नुकसानदायक फफूँदीजनक रोग है। इसे उत्पन्न करने वाला आर्गेनिज्म को अल्टरनेरिया टिनुईस कहते हैं। पत्तियों के ऊपरी सतह पर गहरे भूरे या काले रंग का गोलाकार मृत क्षेत्र बन जाता है। इससे बचाव के लिये कापर आक्सिक्लोराइड, डाइथेर्न Z-78 का डाइथेन M-45 0.3 प्रतिशत घोल का प्रन्द्रह दिन के अंतराल पर दो से तीन बार छिड़कना चाहिए।

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