देश में अब तक कुल 24.84 करोड़ सॉयल हेल्थ कार्ड (SHC) जारी किए जा चुके हैं। सॉयल हेल्थ कार्ड के माध्यम से किसानों को उनकी भूमि की pH, विद्युत चालकता (Electrical Conductivity), उपलब्ध नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटाश, सल्फर और सूक्ष्म पोषक तत्वों (जिंक, कॉपर, आयरन, मैंगनीज और बोरॉन) सहित जैविक कार्बन (Organic Carbon) की स्थिति की जानकारी दी जाती है।
किसानों को समन्वित पोषक तत्व प्रबंधन (Integrated Nutrient Management - INM) की सलाह दी जाती है, जिससे उन्हें रासायनिक उर्वरकों के संतुलित उपयोग, जैविक खाद एवं जैव उर्वरकों के समावेश के बारे में मार्गदर्शन प्राप्त होता है। इससे मिट्टी में जैविक कार्बन की मात्रा बढ़ाने, पोषक तत्वों की कमी को पूरा करने और मिट्टी की उर्वरता बनाए रखने में सहायता मिलती है।
किसानों को SHC की सिफारिशों को समझाने और अपनाने के लिए बड़े स्तर पर प्रदर्शन, प्रशिक्षण और मेलों का आयोजन किया गया है। अब तक 7 लाख से अधिक प्रदर्शन, 93,781 किसान प्रशिक्षण कार्यक्रम, और 7,425 किसान मेले आयोजित किए गए हैं, जिनका उद्देश्य उर्वरकों के संतुलित उपयोग से मिट्टी की गुणवत्ता सुधारना है।
कृषि प्रौद्योगिकी प्रबंधन एजेंसी (ATMA) और कृषि विज्ञान केंद्र (KVKs) के माध्यम से भी किसानों को आवश्यक परामर्श दिया जा रहा है। 70,002 कृषी सखियों को विशेष रूप से प्रशिक्षित किया गया है ताकि वे किसानों को सॉयल हेल्थ कार्ड की जानकारी और अन्य कृषि संबंधी विषयों में मार्गदर्शन प्रदान कर सकें।
सरकार परंपरागत कृषि विकास योजना (PKVY) के तहत जैविक खेती को प्रोत्साहित कर रही है। इस योजना के तहत जैविक किसानों को उत्पादन से लेकर प्रसंस्करण, प्रमाणन और विपणन तक सम्पूर्ण सहायता प्रदान की जाती है। योजना का मुख्य उद्देश्य संगठित समूहों में जैविक खेती को बढ़ावा देना है, जहां छोटे और सीमांत किसानों को प्राथमिकता दी जाती है ताकि मजबूत आपूर्ति श्रृंखला विकसित की जा सके। किसानों को ऑन-फार्म और ऑफ-फार्म जैविक इनपुट के लिए वित्तीय सहायता भी दी जाती है, जिससे कृषि में स्थिरता और टिकाऊपन को बढ़ावा मिलता है।
मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने के लिये सरकारी पहल: मिट्टी की उर्वरता बनाए रखने और जैविक कार्बन की कमी को दूर करने के लिए सरकार द्वारा सॉयल हेल्थ कार्ड योजना, जैविक खेती को प्रोत्साहन, पोषक तत्व प्रबंधन और किसानों को प्रशिक्षण जैसी कई महत्वपूर्ण पहलें की जा रही हैं। ये प्रयास मिट्टी की गुणवत्ता सुधारने, टिकाऊ खेती को बढ़ावा देने और किसानों की आय में वृद्धि करने में सहायक सिद्ध हो रहे हैं।
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