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भारत सरकार और भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) ने जलवायु परिवर्तन के बढ़ते प्रभावों से निपटने के लिए कृषि को मजबूत बनाने और किसानों की क्षमता बढ़ाने की कई योजनाएँ शुरू की हैं। नेशनल इनोवेशन इन क्लाइमेट रेजिलिएंट एग्रीकल्चर (NICRA) के तहत ICAR फसल, पशुधन, मछली पालन और बागवानी पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव का अध्ययन कर रहा है और मौसम प्रतिरोधी तकनीकें विकसित कर रहा है। ये तकनीकें सूखा, बाढ़, गर्मी की लहरों और पाला जैसे चरम मौसम से निपटने में मदद करती हैं।
पिछले एक दशक में, ICAR ने 2,593 फसल किस्में विकसित की हैं, जिनमें से 2,177 किस्में जैविक और अजैविक तनावों को सहन करने में सक्षम हैं। ये किस्में विशेष रूप से ग्रामीण किसानों के लिए बनाई गई हैं, ताकि वे जलवायु परिवर्तन के बावजूद अपनी उपज बनाए रख सकें।
जिले स्तर पर समाधान: IPCC प्रोटोकॉल के तहत किए गए मूल्यांकन में 310 जिलों को जलवायु के प्रति संवेदनशील पाया गया है, जिनमें 109 जिले "बहुत उच्च" और 201 "उच्च" श्रेणी में हैं। इन जिलों के लिए जिला कृषि आकस्मिक योजनाएँ (DACPs) तैयार की गई हैं, जो क्षेत्रीय मौसम के आधार पर फसलें और कृषि प्रबंधन के सुझाव देती हैं।
151 जलवायु संवेदनशील जिलों के 448 गाँवों में जलवायु सहनशील तकनीकों को लागू किया गया है। इन गाँवों में जल संरक्षण, मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन और फसल विविधीकरण जैसी तकनीकें किसानों के लिए आदर्श उदाहरण पेश करती हैं।
टिकाऊ कृषि के लिए योजनाएँ:
सरकार ने राष्ट्रीय सतत कृषि मिशन (NMSA) के तहत कई योजनाएँ शुरू की हैं:
पर ड्रॉप मोर क्रॉप (PDMC): सूखा प्रभावित क्षेत्रों के लिए माइक्रो इरिगेशन को बढ़ावा।
मौसम आधारित कृषि प्रबंधन: ग्रामीण कृषि मौसम सेवा (GKMS) के तहत IMD किसानों को साप्ताहिक मौसम पूर्वानुमान और कृषि सलाह उपलब्ध कराता है। इससे किसान मौसम के अनिश्चित प्रभावों से बचने के लिए बेहतर योजना बना सकते हैं।
ग्रामीण कृषि का भविष्य: ये पहलें किसानों को जलवायु परिवर्तन से लड़ने और उनकी आजीविका को सुरक्षित रखने में मदद करती हैं। सरकार की यह समग्र दृष्टि ग्रामीण क्षेत्रों को आत्मनिर्भर और समृद्ध बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।