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हरित क्रांति का विकास कृषि और खाद्य सुरक्षा भारत की मुख्य समस्या है। भारत एक कृषि से सुसज्जित प्रधान देश है। कृषि उत्पादन मानसून पर निर्भर करता है। मानसून कम या नहीं होने पर खाद्यान्न का उत्पादन नहीं हो पाता जिससे किसानों को काफी नुकसान होता है। भारत में हरित क्रांति के जनक एमएस स्वामी नाथन को कहा जाता है। स्वामीनाथन का जन्म 7 अगस्त, 1925 को हुआ था वे 1943 के बंगाल के अकाल को देखकर इतने परेशान हुए कि उन्होंने जंतु विज्ञान की पढ़ाई को छोड़कर कृषि विज्ञान को चुना, ताकि वे देश की खाद्य सुरक्षा में योगदान दे पाएं। हरित क्रांति से देश के कृषि क्षेत्र में बहुत सारे परिवर्तन हुये हैं। फसलों के उत्पादन में बड़े पैमाने पर वृद्धि हुई है जिससे देष खाद्यान्नों की दृष्टि से आत्मनिर्भर हुआ है। हरित क्रांति से कृषि क्षेत्र में अनेक उपलब्धियां प्राप्त हुई हैं। हरित क्रांति के असर को उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, पंजाब, हरियाणा और तेलंगाना के लहलहाते खेतों में देखा जा सकता है।
हरित क्रांति एक प्रमुख पहल है जो अधिक उपज देने वाली किस्मों के बीज, कीटनाशक, उर्वरक, सिंचाई और मशीनीकरण जैसी नई तकनीकों के माध्यम से भारत में खाद्य फसलों, विशेष रूप से गेहूँ एवं चावल के उत्पादन और गुणवत्ता को बढ़ाना। देश को खाद्य सुरक्षा की समस्या से काफी हद तक निजात दिलाई और देश को एक खाद्यान्न आयातक देश से खाद्यान्न निर्यातक देश में बदल दिया।
देश की जनसंख्या वृद्धि खाद्य उत्पादन की तुलना में बहुत तीव्र गति से बढ़ रही थी। विश्व में भारत दूसरा देश है जिसने हरित क्रांति को लागू किया है। तीव्र गति से बढ़ती जनसंख्या ने खाद्यान उत्पादन बढ़ाने के लिये तत्काल और कठोर कार्रवाई करने की आवश्यकता पर बल दिया जो हरित क्रांति के रूप में उभरकर सामने आई। भारतीय कृषि अधिक उपज देने वाले बीज की किस्मों, ट्रैक्टर, सिंचाई सुविधाओं, कीटनाशकों और उर्वरकों के उपयोग जैसे आधुनिक तरीकों एवं प्रौद्योगिकियों को अपनाने के कारण एक औद्योगिक प्रणाली में हुआ।
देश के कृषि उत्पादन जैसे गेहूं, बाजरा, मक्का, ज्वार व चावल की उपज में अधिक वृद्धि हुई है। देश आत्मनिर्भर हो गया। हरित क्रांति से पुरानी कृषि पद्धतियों को किसान छोड़कर नई पद्धति अपना रहे हैं। अधिक उपज और उत्तम बीज वाली किस्मों का चुनाव करते हैं। इसके अंतर्गत पौधों का संरक्षण किया गया है। खरपतवार कीटाशानी दवाओं का इस्तेमाल करके उत्पादन में वृद्धि लाई गई है। पहले देष में खाद्य फसलों की कमी थी लेकिन वर्तमान समय में हरित क्रांति से जनसंख्या वृद्धि होने के साथ-साथ उत्पादन में भी वृद्धि हुई है। इस तकनीकि से सिंचाई सुविधाओं में तेजी देखी गई। सिंचाई की नई तकनीकि जैसे- ड्रिप सिंचाई स्प्रिंकलर फव्वारा आदि विधियों द्वारा सिंचाई की जाती है जिससे समय की बचत और पैदावार में वृद्धि होती है। वर्तमान समय में मिट्टी का परीक्षण प्रयोगशालाओं में करके फसलों को रोपित किया जाता है। इससे भूमि की उर्वरा शक्ति का पता लगाकर किसानों को मिट्टी के अनुसार रासायनिक खादों और बीजों का प्रयोग करने की सलाह दी जाती है।
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हरित क्रांति में मशीनीकरण का किसानों पर प्रभाव: हरित क्रांति में मशीनों का प्रभाव आधुनिक रूप से देखा जा सकता है। मशीनों की नई-नई तकनीकों ने किसानों को लाभ के साथ-साथ नुकसान भी पहुंचाया है। मशीनों के द्वारा फसल समय में कट जाती है जिससे समय की भी बचत होती है और मेहनत कम करनी पड़ती है। खर्च भी कम होता है। छोटे किसान को मषीनों का खरीद पाना संभव नहीं है साथ ही तेजी से बढ़ते मशीनीकरण के कारण कई इलाकों में बेरोजगारी बड़ी है। मशीनों के लिये बहुत कम लोगों की जरूरत होती है। जैसे ट्रैक्टर के आने से कृषि कार्य में लोगों की भागीदारी कम हो गई। लोगों का गांव से शहर की ओर पलायन होने लगा जिससे बेरोजगारी दर बड़ी और किसान आत्महत्या तक करने के लिये मजबूर हो गये।
निष्कर्ष: वर्तमान समय में, भारतीय कृषि खाद्य उत्पादन के क्षेत्र में महत्वपूर्ण परिवर्तनों का सामना कर रही है और उन्हें बढ़ावा देने की आवश्यकता है। हरित क्रांति ने भारतीय कृषि को एक नई दिशा में ले जाया है जिससे खाद्यान उत्पादन में वृद्धि हुई है और देश आत्मनिर्भर हो गया है। हरित क्रांति के परिणामस्वरूप किसानों के पास नई तकनीकियों का उपयोग करने का अवसर है जो कृषि उत्पादन में वृद्धि को बढ़ावा देती हैं। इसके अलावा हरित क्रांति के अन्य लाभों में भूमि की उर्वरा शक्ति के साथ-साथ पर्यावरण के साथ भी बेहतर संबंधों का निर्माण होता है। इससे सिंचाई सुविधाओं में वृद्धि होती है और खरपतवार कीटाशानी दवाओं का प्रयोग करके उत्पादन में वृद्धि होती है। इस प्रकार हरित क्रांति ने देश के कृषि क्षेत्र में विशेष रूप से उत्पादकता में वृद्धि के लिए कई सफलताएं प्राप्त की हैं।