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खेतों में फसल अवशेष जलाने के हानिकारक प्रभाव, किसान ऐसे करें फसल अवशेषों का प्रबंधन

खेतों में फसल अवशेष जलाने के हानिकारक प्रभाव
खेतों में फसल अवशेष जलाने के हानिकारक प्रभाव

फसलों की कटाई के बाद किसाह खेतों में शेष रह गये फसल अवशेषों को जला देते हैं जिससे पर्यावरण के लिए हानिकारक साथ ही खेतों को भी नुकसान होता है। किसान इन फसल अवशेषों का प्रबंधन कर इसे लाभदायक बना सकते हैं। कृषि विभाग की ओर से बताया गया है कि फसल कटाई के पश्चात इसका एक बहुत बड़ा हिस्सा अवशेष के रूप में अनुपयोगी रह जाता है। फसल अवशेषों की मात्रा लगभग 62 करोड़ टन है और इसका 50 प्रतिशत हिस्सा घरों एवं झोपड़ियों की छत निर्माण, पशु आहार एवं ईंधन के लिए उपयोग में लाया जाता है। 

फसल अवशेषों को जलाने से नुकसान:

फसल अवशेषों को जलाना न सिर्फ किसानों के लिये हानिकारक है बल्कि प्रकृति, पर्यावरण प्रदूषण भी होता है। मिट्टी की उर्वरा शक्ति नष्ट हो जाती है और भूमि की जल धारण क्षमता कम होती है व मिट्टी में कॉर्बन की मात्रा कम होती है। पशुओं के लिए भूसे की उपलब्धता में कमी आती है। 

सरकार द्वारा अवशेष जलाने पर जुर्माना:

इसके अलावा सरकार द्वारा फसल अवशेषों को जलाने पर जुर्माने का भी प्रावधान किया गया है। 05 मार्च 2017 को नोटिफिकेशन में फसल अवशेष जलाने पर दो एकड़ में कम से कम 2500 रुपये, दो एकड़ से अधिक के लिए 5000 हजार रुपए और पांच एकड़ से अधिक अवशेषों को जलाने पर करीब 15 हजार रुपये का जुर्माना लगाने का प्रावधान किया गया है।

फसल अवशेषों का प्रबंधन: 

विशेषज्ञों की सलाह है कि खेत में उपलब्ध फसल अवशेषों को जलाने की बजायें वापस भूमि में मिला दें। फसल अवशेष खेतों में सड़कर मृदा कार्बनिक पदार्थ की मात्रा में वृद्धि करते हैं जिससे कार्बनिक पदार्थ की मात्रा बढ़ने से मृदा सतह की कठोरता कम होती है। जल धारण क्षमता में वृद्धि होती है एवं मृदा पी.एच.में सुधार होता है। कृषि यंत्र से बनाये भूसे के डंठल को खेत में ही एम.बी. प्लाऊ से गहरी जुताई कर इसको मिट्टी में दबाये ताकि इससे खाद बन सके। इससे भूमि भुर-भुरी होती है, जिससे जुताई करने में आसानी होती है एवं वायु का संचार होता है।

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