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खेतों में नरवाई न जलाएं, अपनाएं वैज्ञानिक प्रबंधन के उपाय, कृषि विभाग की किसानों से अपील

नरवाई जलाने के नुकसान
नरवाई जलाने के नुकसान

किसान कल्याण तथा कृषि विकास विभाग ने जिले के किसानों से खेतों में नरवाई (पराली) न जलाने की अपील की है। विभाग ने किसानों को जागरूक करते हुए बताया है कि नरवाई जलाने से मिट्टी की उर्वरता घटती है, लाभकारी सूक्ष्म जीव नष्ट हो जाते हैं और पर्यावरण पर भी गंभीर दुष्प्रभाव पड़ता है।

नरवाई जलाने के नुकसान Disadvantages of stubble burning:

विभाग के अनुसार नरवाई जलाने से मिट्टी में पोषक तत्वों को बनाए रखने वाले सूक्ष्म जीवाणु व लाभकारी कीट मर जाते हैं, जिससे भूमि की उपजाऊ क्षमता में कमी आती है। इससे न केवल उत्पादन पर असर पड़ता है बल्कि खेतों की मेढ़ों पर लगे हरे-भरे पेड़ भी झुलस जाते हैं। इसके अलावा आग की चपेट में आने से पशु-पक्षियों को नुकसान पहुंचता है और वायु में हानिकारक गैसों का उत्सर्जन होता है, जिससे वायुप्रदूषण और पर्यावरणीय क्षति होती है।

पशुओं के लिए भी हानिकारक Also harmful to animals:

ज्यादातर किसान फसल कटाई के बाद खेत में बची पराली को जला देते हैं, जबकि अन्य राज्यों में इसका उपयोग पशु चारे के विकल्प के रूप में किया जाता है। पराली जलाने से पशुओं को पर्याप्त चारा नहीं मिल पाता और वे पॉलीथिन जैसी हानिकारक वस्तुएं खा लेते हैं, जिससे उनका जीवन संकट में पड़ जाता है। वहीं, यही नरवाई कुछ माह बाद दोगुनी कीमत में बेची जा सकती है, जिससे किसानों को अतिरिक्त आमदनी हो सकती है। इसका उपयोग पैकिंग, घरेलू ईंधन और जैविक खाद बनाने में भी किया जा सकता है।

आगजनी व जल संकट का खतरा: नरवाई जलाने से खेतों में आग लगने की घटनाएं आम हैं, जो कई बार बेकाबू होकर आसपास की संपत्ति को भी नुकसान पहुंचाती हैं। गर्मी के मौसम में जल संकट गहराने का एक कारण भी यह है क्योंकि आग लगने से मिट्टी की जलधारण क्षमता कम हो जाती है।

वैज्ञानिक उपायों से करें नरवाई प्रबंधन:

कृषि विभाग ने किसानों को नरवाई जलाने के बजाय उसे वैज्ञानिक ढंग से प्रबंधित करने की सलाह दी है। विभाग ने बताया कि रोटावेटर जैसे यंत्रों की मदद से नरवाई को मिट्टी में मिलाया जा सकता है। इससे फसल अवशेष सड़कर जैविक खाद में बदल जाते हैं और मिट्टी की उर्वरा शक्ति बढ़ती है। साथ ही, स्ट्रॉ रीपर (भूसा बनाने की मशीन) का उपयोग कर पराली से पशुओं के लिए चारा तैयार किया जा सकता है। अधिक भूसा होने पर इसे गौशालाओं में दान देना भी एक बेहतर विकल्प है। इसके अलावा, नरवाई का उपयोग भू-नाडेप, वर्मी कम्पोस्ट जैसी जैविक खाद बनाने में भी किया जा सकता है।

आधुनिक यंत्रों से करें अगली फसल की बुआई: विभाग ने जीरो टिलेज सीड ड्रिल, सुपर सीडर या हैप्पी सीडर जैसे यंत्रों का प्रयोग कर अगली फसल की बुआई करने की सलाह दी है। इन यंत्रों से बुआई करने पर न केवल लागत में कमी आती है, बल्कि खेत में पहले से मौजूद नमी का भी बेहतर उपयोग हो पाता है।

किसानों से अपील: कृषि विभाग ने अंत में सभी किसानों से अपील की है कि वे पराली न जलाएं और वैज्ञानिक सलाह के अनुसार नरवाई का समुचित प्रबंधन करें, जिससे खेतों की उर्वरता बनी रहे और पर्यावरण की रक्षा भी सुनिश्चित हो सके।

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