केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री श्री अमित शाह ने भोपाल में आयोजित राज्य स्तरीय सहकारिता सम्मेलन के दौरान कहा कि मोदी सरकार ने तीन नए बहु-राज्यीय सहकारी संस्थानों की स्थापना की है जो आने वाले वर्षों में किसानों की आय और भागीदारी को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाएंगे। सम्मेलन में NDDB और MPCDF के बीच समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर किए गए, जिससे मध्यप्रदेश के हर गांव में सहकारी डेयरी के विस्तार की दिशा में कदम उठाया गया है। इससे दूध उत्पादन और प्रसंस्करण क्षमता में वृद्धि होगी और किसानों की आमदनी भी बढ़ेगी।
श्री शाह ने बताया कि किसानों की उपज को वैश्विक बाजार तक पहुँचाने के लिए नेशनल कोऑपरेटिव एक्सपोर्ट लिमिटेड (NCEL), जैविक उत्पादों के लिए बेहतर मूल्य दिलाने हेतु नेशनल कोऑपरेटिव ऑर्गेनिक लिमिटेड (NCOL) तथा देशी और गैर-हाइब्रिड बीजों के संरक्षण व संवर्धन के लिए भारतीय बीज सहकारी समिति लिमिटेड (BBSSL) की स्थापना की गई है।
ये संस्थान बनेंगे अमूल से भी बड़े: श्री शाह ने विश्वास जताया कि आने वाले 20 वर्षों में NCEL और NCOL जैसे संस्थान अमूल से भी बड़े बनेंगे। इन संस्थानों के ज़रिए किसानों को उनकी उपज का उचित मूल्य, निर्यात का मंच और लाभ सीधे उनके बैंक खातों में पहुंचेगा।
सहकारिता मंत्री ने बताया कि त्रिभुवन सहकारी विश्वविद्यालय की स्थापना की गई है जहां सहकारी क्षेत्र में कार्यरत प्रोफेशनल्स को प्रशिक्षण दिया जाएगा। इसमें अकाउंटेंट, डेयरी इंजीनियर, पशु चिकित्सक और कृषि वैज्ञानिकों को सहकारिता आधारित कौशल प्रदान किया जाएगा।
श्री शाह ने बताया कि नेशनल डेयरी डेवलपमेंट बोर्ड (NDDB) और मध्यप्रदेश कोऑपरेटिव डेयरी फेडरेशन (MPCDF) के बीच एक समझौता हुआ है, जिससे राज्य में सहकारी डेयरी समितियों के विस्तार का मार्ग प्रशस्त हुआ है। अभी राज्य में प्रतिदिन 5.5 करोड़ लीटर दूध का उत्पादन होता है, जो देश के कुल उत्पादन का 9% है, लेकिन इसमें सहकारी डेयरियों की भागीदारी मात्र 1% से भी कम है। उन्होंने कहा कि हमारा उद्देश्य है कि हर गांव का किसान सहकारी डेयरी से जुड़े और दूध से पनीर, दही, मट्ठा, छाछ जैसे उत्पाद बनाकर बेचे, ताकि अधिक लाभ मिले।
83% गांवों में डेयरी विस्तार का लक्ष्य: मंत्री ने बताया कि अभी केवल 17% गांवों में दूध संग्रहण व्यवस्था है, लेकिन आज हुए एमओयू से यह संभावना बनी है कि 83% गांवों तक सहकारी डेयरी प्रणाली का विस्तार होगा। अगले 5 वर्षों में 50% गांवों में प्राथमिक दुग्ध उत्पादक समितियों की स्थापना का लक्ष्य रखा गया है, जिससे दूध प्रसंस्करण क्षमता में कई गुना वृद्धि होगी और किसानों की समृद्धि सुनिश्चित होगी।