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किसान इस समय भारत देश के ज्यादातर राज्यों में रबी की फसलो की कटाई की जा चुकी है। गेहूं की कटाई के बाद खेत खाली पडे रहते हैं इस समय अपनी मिट्टी की उपजाऊ क्षमता बढ़ा सकते है। इसका लाभ किसानों को आने वाली अगली फसल में मिलेगा। इससे फसल की बेहतर उपज और खेत की उपजाऊ क्षमता भी बनी रहेगी।
अधिकतर किसान अपनी भूमि में फसल की कटाई करके उसके अवशेषों को जला देते हैं,जिससे मिट्टी की उर्वरा शक्ति कम होती है और फसल अवशेष जलाने से वायु प्रदूषण भी फैलता है। इन फसल के अवशेषों को सही तरीके से इस्तेमाल किया जाए तो खेती के लिए बहुत अच्छी खाद तैयार हो सकती है जो फसल की पैदावार बढ़ाने के साथ ही मिट्टी की उपजाऊ क्षमता भी बढ़ाने में सहायक होगी। आइए जानते है की मिट्टी को कैसे उपजाऊ बनाएं..
मिट्टी को उपजाऊ बनाने के लिए भारत के कृषि विभाग द्वारा किसानो को सलाह दी जा रही है, की किसान रबी फसलों की कटाई के बाद शेष बची हुई फसल अवशेषों को मिट्टी में दबाकर उसकी खाद बनाई जा सकती है। हरी खाद बनाने के लिए अपने खेत में ढैचा की खेती कर सकते हैं, जब ढैंचा अच्छी तरह से पाक जाये तब कल्टी वेटर से हरी खाद बना दे। किसान गेहूं की पराली को रोटावेटर की सहायता से खेत की मिट्टी में मिलाकर देसी खाद बना सकते हैं। इससे फसलों की पैदावार में बढ़ावा होने के साथ मिट्टी की उपजाऊ क्षमता भी बढ़ेगी।
मूंग की हरी खाद बनाने के लिये मूंग की कटाई करने के बाद जो पत्ते और डंठल बचते हैं उन्हें खेत में ही दबा दिया जाता है। मूंग की फसल 60 से 70 दिन यानी कम समय में तैयार हो जाती है। मूंग की तुड़ाई के बाद इसके हरे पौधों को मिट्टी पलटने वाले हल से खेत में दबा दिया जाता है। मिट्टी में इसके डंठल जल्दी ही सड़ जाती हैं और अगली फसल के लिए खाद का काम करते हैं। इसी तरह मुंग की हरी खाद तैयार हो जाती है।
किसान खाली खेत में बुवाई करके हरी खाद और बीज प्राप्त कर सकते हैं। ढैंचा के हरे पौधों का उपयोग करके हरी खाद बनाई जा सकती है। ढैंचा एक दलहनी फसल है और भूमि के स्वास्थ्य के लिए काफी लाभकारी मानी जाती है। इससे मिट्टी की उर्वरा । ढैंचा की खेती के लिए कृषि विभाग से किसान भाईयों को 80% सब्सिडी भी दी जाती है।