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Peanut Cultivation: मूंगफली की खेती कैसे करें, जाने बुआई का सही समय और खाद प्रबंधन

मूंगफली की खेती कैसे करें
मूंगफली की खेती कैसे करें

मूंगफली का भारतीय कृषि में महत्वपूर्ण स्थान है। मूंगफली का खाद्य फसल के रूप में ही नहीं बल्कि भारतीय बाजार में भी इसके तेल की मांग बहुत ज्यादा है। इसलिये इसे किसानों का काजू भी कहा जाता है। मूंगफली तिलहन की खेती दोनों मौसमों में 4500 हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र में की जा रही है। मूंगफल का तेल 45 से 55 प्रतिशत, प्रोटीन 28 से 30 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेठ 20-25 प्रतिशत, विटामिन बी, विटामिन-सी, कैल्शियम, मैग्नेशियम, फॉस्फोरस, जिंक, पोटाश जैसे खनिज तत्व प्रचुर मात्रा में पाये जाते है। ख़रीफ़ मूंगफली की उत्पादकता लगभग 1300 किलोग्राम/हेक्टेयर है। मध्यप्रदेश पंजाब राजस्थान और गुजरात राज्यों में मूंगफली की खेती विशेष रूप से की जाती है। मूंगफली का उत्पादन भारत में तमिलनाडु कर्नाटक आन्ध्र प्रदेश और गुजरात राज्यों में ज्यादा उत्पादित की जाती है। मूंगफली उत्पादन में विश्व का भारत में सबसे ज्यादा उत्पादन किया जाता है। 

मूंगफली की जानकारी Peanut information:

मूंगफली भारत में तिलहन फसल के रूप में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है, जो सोयाबीन के बाद उत्पादन में दूसरे स्थान पर है। विश्व स्तर पर चीन मूंगफली उत्पादन में अग्रणी है भारत दूसरे स्थान पर है। 2023-24 में भारत की ख़रीफ़ मूंगफली की फसल में पिछले वर्ष के 85.62 लाख टन से घटकर 78.29 लाख टन होने का संकेत देता है। 2023 में मूंगफली के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) बढ़कर ₹6377 प्रति क्विंटल हो गया। राजस्थान में मूंगफली 3.47 लाख हेक्टेयर के क्षेत्र में उत्पादन किया गया जिसका कुल उत्पादन लगभग 6.81 लाख टन के आसपास रहा। मूंगफली में प्रोटीन की मात्रा 25-30 प्रतिशत पाई जाती है। इसके दाने मिट्टी के अन्दर पाए जाते हैं। किसान मूंगफली की खेती करके अच्छी पैदावार तथा अच्छा मुनाफा भी कमा सकते हैं।

मूंगफली की खेती कैसे करें How to Peanuts Cultivation:

खेत को 25-30 सेमी की गहराई तक बारीक जुताई करने के लिए क्रॉस जुताई करनी चाहिए। मई के महीने में खेत की एक जुताई मिट्टी पलटनें वाले हल से करके 2-3 बार हैरो चलावें जिससे मिट्टी भुरभुरी हो जाये। इसके बाद पाटा चलाकर खेत को समतल करें। मिट्टी में नमी बनाए रखने और मिट्टी की उर्वता में करना चाहिए। बारानी क्षेत्रों में गहरी जुताई फायदेमंद होती है इससे मिट्टी में उपस्थित रोगज़नों का बेहतर प्रबंधन होता है और रेतीली और बलुई दोमट मिट्टी में पोषक तत्वों की उपलब्धता बढ़ती है, चावल के डंठल को इकट्ठा करने और हटाने के बाद मिट्टी की जुताई करते ही सबसे अच्छा मिट्टी की जुताई करना है। खेत की आखिरी तैयारी के समय 2.5 क्विंटल प्रति हैक्टेयर की दर से जिप्सम का उपयोग करना चाहिए।

जाने मूंगफली की बुआई का सही समय:

मूंगफली की खेती भारत में दो अलग-अलग मौसमों में होती है - खरीफ (जून-जुलाई से सितंबर-अक्टूबर) और रबी (अक्टूबर-नवंबर से जनवरी-फरवरी)। मूंगफली की खेती गर्म और आर्द्र जलवायु में उपयुक्त है। इसकी कटाई शुष्क मौसम में दौरान होती है।

मूंगफली की बुआई कैसे करें How to Sow Peanuts:

मूंगफली की बुआई मानसून की शुरुआती खरीफ में जून-जुलाई के पहले पखवाड़े के बीच की जाती है।  जनवरी में शेष नमी की स्थिति में मूंगफली की बुआई करने से फसल को नमी की कमी का सामना करना पड़ता है, जिसके कारण पौधे खराब हो जाते हैं।  जहाँ भी सिंचाई स्रोत की सुविधा उपलब्ध है, वहाँ फसल जनवरी से फरवरी तक बोई जा सकती है।  बीज दर किस्म और दूरी पर निर्भर करती है। स्पैनिश (खड़ी) किस्म के लिए सबसे सामान्य दूरी 30x10 सेमी है।   लगभग 3.33 लाख पौधे/हेक्टेयर की पौध संख्या प्राप्त करने के लिए बीज की आवश्यकता 100-110 किलोग्राम दाने/हेक्टेयर है। फैलने वाली किस्मों में, सबसे सामान्य अंतर 45 x10 सेमी है जिसके लिए 2.22 लाख पौधों / हेक्टेयर की आबादी प्राप्त करने के लिए 95-100 किलोग्राम गिरी / हेक्टेयर की आवश्यकता होती है। बीजों को राइजोबियम से उपचारित करना आवश्यक है। एक हेक्टेयर के लिए आवश्यक बीज के साथ लगभग 375-500 ग्राम राइजोबियम कल्चर को चावल के पेस्ट या किसी अन्य चिपचिपे पदार्थ से मिलाया जा सकता है ताकि बीज पर एक समान कोटिंग हो सके। बुआई 3-4 सेमी गहरी और अच्छी तरह से मिट्टी से ढककर करनी चाहिए।

मूंगफली के लिये जलवायु तथा मिट्टी: मूंगफली के लिये 600 से 1500 मिलीमीटर वर्षा वाले क्षेत्रों में उगाई जाती हैं। गहरी व अच्छी निकास वाली भूमि और उच्च उर्वरता मूँगफली के उत्पादन के लिए आदर्श हैं। मूंगफली की खेती विभिन्न प्रकार की मृदाओं में की जा सकती है इसकी अच्छी पैदावार के लिए जल निकास वाली कैल्शियम एवं जैव पदार्थो से युक्त बलुई दोमट मृदा उत्तम होती है। मृदा का पीएच मान 6.0 से 8.0 उपयुक्त रहता है। 

भारत में मूंगफली की प्रमुख किस्में: भारत में मूंगफली की विभिन्न किस्में पाई जाती हैं, जिनमें रनर, जावा या स्पैनिश, रेड नट और अन्य शामिल हैं। देश में खेती की जाने वाली प्रमुख किस्में कादिरी-2, कादिरी-3, बीजी-1, बीजी-2, गैग-10, कुबेर, पीजी-1, टी-28, टी-64, चंद्रा, चित्रा हैं। , कोसल, प्रकाश, अंबर, 'जी-20', 'जीजे-11', 'कैदी-55', जीजीयूजी-10, जीजी-11, जीजी-12, जीजी-20, जेएल-24, टीजी 26, टीजी 37ए, टीएजी 24 और जेबी 24 आदि। इन किस्मों को उनकी विशिष्ट विशेषताओं के लिए पहचाना जाता है, जिनमें रोगों के प्रति प्रतिरोधक क्षमता।

खरपतवार प्रबंधन: खरपतवार बुआई के 45 दिन बाद तक फसल को ज्यादा नुकसान पहुंचाते हैं खरपतवार नियंत्रण मूंगफली की पैदावार को प्रभावित करने वाली एक गंभीर बाधा है। खरपतवार से बचने के लिए बुआई के 20-25 दिन बाद खरपतवार हटा देना चाहिए। खरपतवार की वृद्धि को खत्म करने के लिए मूंगफली के साथ बार-बार अंतरसंवर्धन एक प्रभावी तरीका है। खरपतवारों के प्रभावी और किफायती नियंत्रण के लिए बुआई के 30-45 दिनों के बाद दो अंतरसंस्कृतियों के साथ 1.0 किलोग्राम एआई/हेक्टेयर की दर से पेंडीमेथालिन के अंकुरण से पहले उपयोग जैसे शाकनाशी की सिफारिश की गई है।

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जल प्रबंधन: मूंगफली की फसल को मिट्टी के प्रकार के आधार पर लगभग 600-700 मिमी पानी की आवश्यकता होती है।  नमी की कमी के दौरान सिंचाई करने से फली की उपज 30-35% तक बढ़ सकती है। मूंगफली के पौधों को अधिक सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है, क्योकि इसकी फसल बारिश के मौसम के समीप ही की जाती है।  बारिश के मौसम के पश्चात् 20 दिन के अंतराल में पौधों को पानी की जरूरत होती है। जब मूंगफली के पौधों में फूल और फलियां बनने लगे उस दौरान खेत में नमी की मात्रा बनाये रखने की आवश्यकता होती है। इससे पैदावार अच्छी प्राप्त होती है।

खाद एवं उर्वरक प्रबंधन:

  1. मिट्टी परीक्षण के आधार पर मूंगफली के लिए खाद एवं उर्वरकों की मात्रा सुनिश्चित करना चाहिए। मूंगफली की अच्छी फसल के लिये 5 टन अच्छी तरह सड़ी गोबर की खाद प्रति हैक्टर डालनी चाहिए। उर्वरक के रूप में 20:60:20 कि.ग्रा./है. नाइट्रोजन, फॉस्फोरस व पोटाश का प्रयोग आधार खाद के रूप में करना चाहिए। मूंगफली के लिये 5 टन गोबर की खाद के साथ 20:60:20 कि.ग्रा./हैक्टर नत्रजन,फॉस्फोरस व पोटाश के साथ 25 कि.ग्रा./हैक्टर जिंक सल्फेट का प्रयोग करना चाहिए।
  2. पछेती पत्ती धब्बा यह रोग निचली पत्ती की सतह पर गोलाकार और गहरे रंग के धब्बे देखे जाते हैं।  पत्ती के धब्बे के समान अंडाकार से लम्बे घाव भी डंठलों, तने और खूंटियों पर बनते हैं। प्रबंध - संक्रमित पौधे के मलबे, स्वयंसेवी पौधों और खरपतवार को हटा दें और नष्ट कर दें। रोपण के 15 दिनों के अंतराल पर दो से तीन बार कार्बेन्डाजिम (0.05%)/मैन्कोजेब (0.2%) का छिड़काव करें।
  3. ताज का सड़ना अंकुर के संक्रमित क्षेत्र पानी और हल्के भूरे रंग के हो जाते हैं और जल्द ही काले कवक बीजाणुओं से ढक जाते हैं। पौधों के तने पर मिट्टी की सतह के ठीक नीचे विकसित हो सकते हैं और फिर शाखाओं के साथ ऊपर की ओर फैल सकते हैं। प्रबंध- पौधे के मलबे को नष्ट करें तथा चना एवं गेहूं के साथ फसल का चक्रण करें। नीम की खली या अरंडी की खली 500 किग्रा/हेक्टेयर की दर से डालें।
  4. तना सड़न पौधे शाखाओं का पीला पड़ना और मुरझाना जाता है साथ ही फलियों और जड़ों का संक्रमण या तो स्वतंत्र रूप से या तने के संक्रमण के साथ होता है। प्रबंध - सभी फसल अवशेषों को दफनाने के लिए गहरी जुताई करें। बीजों को कार्बेन्डाजाइन/कैप्टान 4 ग्राम/किग्रा की दर से प्रयोग करें।

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मूंगफली की कटाई: मूंगफली जब सभी फलियों का 75-80% हिस्सा पूरी तरह पक जाए तब कटाई करनी चाहिए। पत्तियों का पीला पड़ना, पत्तियों पर धब्बे पड़ना, पुरानी पत्तियों का गिरना, खोल के अंदर गहरे भूरे रंग का हो तब कटाई करें। बीज के लिए रखी जाने वाली फसल के एक हिस्से को तब तक अच्छी तरह से सुखाना चाहिए जब तक कि नमी की मात्रा 7-8% तक कम न हो जाए और उसे पॉलिथीन से बने बोरों में संग्रहित किया जाना चाहिए।

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