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देश के कई हिस्सों में इन दिनों कड़ाके की ठंड पड़ रही है। पंजाब, राजस्थान, उत्तर प्रदेश समेत कई राज्यों में शीतलहर के साथ-साथ पाला भी गिर रहा है। इस समय फसलों में झुलसा रोग लगने की भी आशंका बढ़ जाती है। बदलते ठंड के मौसम में आलू-टमाटर, सरसो, मटर समेत सभी सब्जियों वाली फसलों और रबी तथा खरीफ की फसलों में रोग ओर कीट लगने की आषंका बढ़ जाती है। शीत लहर और ठंडी हवाओं के साथ ही दलहन और तिलहन वाली फसलों में झुलसा और पाला पड़ने की संभावना बढ़ जाती है शीत लहर और पाले का फसलों और फलदार वृक्षों की उत्पादकता पर सीधा प्रभाव पड़ता है। ऐसे में में किसान कुछ बातों का ध्यान रखकर नुकसान से बच सकते हैं। पाले के प्रभाव से पौधों की पत्तियाँ एवं फूल झुलसने लगते हैं जिससे फसल प्रभावित होती है।
कुछ फसलें बहुत अधिक तापमान या पाला सहन नहीं कर पाती हैं, जिससे उनके खराब होने का खतरा रहता है। पाले से सबसे ज्यादा नुकसान मटर, सरसों, धनिया के साथ मिर्च और बैंगन की फसल को होता है ठंड के कारण सब्जियों के पौधे काले पड़ जाते हैं। लेकिन कुछ उपायों से किसान ठंड के कारण अपनी फसल को खराब होने से बचा सकते हैं। यदि पाले के समय फसल की देखभाल न की जाए तो उस पर आने वाले फल या फूल झड़ सकते हैं। यदि शीत लहर हवा के रूप में चलती रहती है तो इससे कोई नुकसान नहीं होता है, लेकिन यदि हवा रुक जाती है तो पाला पड़ता है, जो फसलों के लिए अधिक हानिकारक होता है। कृषि विशेषज्ञ इन दिनों किसानों के लिए उपयोगी सलाह जारी कर रहे हैं। इन्हें अपनाकर काफी हद तक फसल को ठंड की मार से बचाया जा सकता है।
दलहनी फसलों की बात करें तो चना, मटर, मसूर में जीवाणु झुलसा रोग, उकठा रोग, चने में फली छेदक कीट अंडे दे रहे होंगे, सरसों की बात करें तो माहू है सफेद मक्खी है, थ्रिप्स का प्रकोप तेजी से बढ़ेगा नर्सरी के पौधों और सब्जियों की फसलों को बोरियों, पॉलीथिन या पुआल से ढक दें।
मटर की खेती करके किसान अधिक मुनाफा कमा सकते हैं। सर्दियों के मौसम में ताजी हरी मटर काफी पसंद की जाती है। किसान मटर की खेती करके बड़ा मुनाफा भी कमा सकते हैं क्योंकि मटर की मांग पूरे साल रहती है। किसानों में भी इसे लेकर काफी उत्सुकता रहती है। यह कम समय में ज्यादा पैदावार देती है। इसके साथ ही यह खेत की उर्वरा शक्ति भी बढ़ाने में मददगार होती है। उगने वाली मटर की अच्छी किस्म है, पीबी-89 और दूसरा है आर्केल।
कैसे पहचानें झुलसा रोग: ठंड इस सीजन में फसलों पर कीट और अन्य रोग लगने का खतरा बना रहता है। इस मौसम में फसलों को झुलसा रोग से काफी नुकसान होता है। दिसंबर से जनवरी के अंत तक होने वाले झुलसा रोग के कारण पत्तियों के किनारे और सिरे झुलसना शुरू हो जाते हैं। इससे पूरी फसल बर्बाद होने लगती है। झुलता रोग से सबसे ज़्यादा खतरा आलू और टमाटर जैसी फसलों को होता है।
जरुरत पडऩे पर खेत की सिंचाई करें: पाले की संभावना को ध्यान में रखते हुए जरुरत पडऩे पर खेत की सिंचाई कर दें। इससे मिट्टी का तापमान कम नहीं होता है। सरसों, गेहूँ, चावल, आलू, मटर जैसी फसलों को पाले से बचाने के लिए सल्फ्यूरिक अम्ल (गंधक का तेजाब) के छिडक़ाव से रासायनिक सक्रियता बढ़ती है तथा पाले से बचाव के अलावा पौधे को लौह तत्व भी प्राप्त होता है। फसलों की सुरक्षा के लिए शहतूत, शीशम, बबूल, खेजड़ी और जामुन आदि जैसे वायु अवरोधक वृक्षों को खेत की मेड़ों पर लगाना चाहिए, जो फसल को पाले और शीत लहरों से बचाते हैं। पाले के दिनों में मिट्टी की जुताई या जुताई नहीं करें, क्योंकि ऐसा करने से मिट्टी का तापमान कम हो जाता है। फसल बचाने के लिए सबसे जरुरी है कि प्रतिदिन खेती की निगरानी की जाए। अगर पौधे के पत्ते में रोग दिखाई दें, तुरंत उन्हें उखाडक़र जमीन में दबा दें। खेत में ज्यादा नमी होने पर सब्जियों वाली फसलों में खासकर नुकसान हो सकता है। कई रोग लग सकते हैं। अगर कोहरा है, बादल छाए हैं, बारिश की आशंका है तो कीटनाशक छिडक़ाव से भी परहेज करें। अगर फसल में फूल आ गए गए हैं तो किसी प्रकार के रासायनिक कीटनाशक के प्रयोग से बचें।
झुलसा रोग से फसलों का बचाव: फसलों का झुलसा रोग से बचाव करने के लिए उन पर नीम ऑयल का छिड़काव करने की सलाह दी जाती है। इसके साथ ही कंडे की राख का प्रयोग करना भी फायदेमंद हो सकता है। फसलों को झुलसा रोग से बचाने के लिए, केमिकल भी इस्तेमाल कर सकते हैं। डाईमेथोएट 30 प्रतिशत मिथाइल 25 प्रतिशत और क्लोरपाइरीफास 20 प्रतिशत को 750 लीटर पानी में घोल लें और प्रति हेक्टेयर की दर से खेतों में स्प्रे करें। आलू और टमाटर को झुलसा रोग से बचाने के लिए उनकी लगातार निगरानी करनी चाहिए। झुलसा रोग के लक्षण दिखने पर कार्बंडिजम 1.0 ग्राम प्रति लीटर पानी या डाईथेन-एम-45 2.0 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें। इस मौसम में प्याज की समय से बोई गई फसल में थ्रिप्स के हमले को लेकर भी सजग रहना होगा। प्याज में परपल ब्लोस रोग की निगरानी भा करनी चाहिए। रोग के लक्षण पाए जाने पर डाएथेन-एम-45 @ 3 ग्रा./ली. पानी किसी चिपकने वाले पदार्थ जैसे टीपोल आदि (1 ग्रा. प्रति एक लीटर घोल) में मिलाकर छिड़काव करें. अगर मटर की ज्यादा पैदावार चाहते हैं तो फसल पर 2 प्रतिशत यूरिया के घोल का छिड़काव करें। क्यारियों के किनारों पर हवा को रोकने के लिए बाड़ को हवा की दिशा में बांधकर फसल को पाला एवं शीत लहर से बचाया जा सकता है। ठंड के इस मौसम में बंदगोभी, फूलगोभी, गांठगोभी आदि की रोपाई मेड़ों पर कर सकते हैं।
पाला से फसलों का बचाव: पाला पडऩे की संभावना होने पर किसान भाइयों को सलाह दी जाती है फसलों में सिंचाई रात्रि के दूसरे तथा तीसरे पहर में नहीं करें। पाला की आशंका होने पर फसलों तथा उद्यान की फसलों में घुलनशील गंधक 80 प्रतिशत डब्ल्यू पी का दो से ढाई ग्राम मात्रा को प्रति लीटर की दर से पानी में घोल बनाकर डेढ़ से दो सौ लीटर पानी में घोलकर फसलों के ऊपर प्रति एकड़ की दर से छिडक़ाव करें। इससे दो से ढाई डिग्री सेंटीग्रेड तक तापमान बढऩे से काफी हद तक पाला से बचाया जा सकता है। प्रत्येक अवस्था में पानी की मात्रा प्रति एकड़ डेढ़ से दो सौ लीटर अवश्य रखें। पाला से सबसे अधिक नुकसान नर्सरी में होता है। इसलिए रात्रि के समय नर्सरी में लगे पौधों को प्लास्टिक की चादर से ढक करके बचाया जा सकता है। जिन किसान भाइयों ने 1 से 2 वर्ष के फलदार पौधों का अपने खेतों में वृक्षारोपण किया हो उन्हें बचाने के लिए पुआल, घास-फूस आदि से अथवा प्लास्टिक की सहायता से ढककर बचायें।