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बिहार में केले के तने से तैयार जैविक खाद बना किसानों की कमाई का जरिया

बिहार में केले के तने से तैयार जैविक खाद बना किसानों की कमाई का जरिया
बिहार में केले के तने से तैयार जैविक खाद बना किसानों की कमाई का जरिया

केले की खेती करने वाले किसान इसके फल के साथ तना से जैविक खाद बनाकर इसका उपयोग खेती के लिए तो कर ही रहे हैं, इस खाद की बिक्री कर  अतिरिक्त आय भी प्राप्त कर रहे हैं। खाद के प्रयोग में अच्छी सफलता मिलने के बाद बिहार के समस्तीपुर स्थित डॉ. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा इसके प्रति किसानों को जागरूक कर प्रशिक्षण भी दे रहा है। इसके लिए मशीन भी लगाई गई है। करीब 250 किसानों को प्रशिक्षण दिया जा चुका है। भारत में उत्पादित 90 प्रतिशत से अधिक केले का घरेलू स्तर पर ताजे फल के रूप में सेवन किया जाता है। एक अनुमान के मुताबिक केले में प्रसंस्करण केवल 2.50 प्रतिशत ही होता है। 

विश्वविद्यालय के मुताबिक, बिहार में लगभग चार लाख लोग केले की खेती, कटाई, हैंडलिंग और परिवहन पर अपना जीवन-यापन कर रहे हैं। लगभग 70-80 मीट्रिक टन प्रति हेक्टेयर केले के घौद (बंच) की कटाई के बाद केले के आभासी तने को खेत के बाहर फेंक दिया जाता था।  केला उत्पादक किसानों के सामने सबसे बड़ी चुनौती केले के आभासी तने के इस विशाल बायोमास को मूल्य वर्धित उत्पादों में बदलना है। डॉ. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्विद्यालय ने वित्त पोषित परियोजना के अंतर्गत एक कार्यदल बना कर पिछले साल कार्य करना प्रारंभ किया और इसके सफल परिणाम सामने आए।  विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. पीएस पांडेय बताते हैं कि इसके बहुत लाभ हुए हैं। केले के तने का प्रसंस्करण कर उससे विभिन्न तरह के मूल्यवर्धित उत्पाद बनाने के भी अनुसंधान कार्य से लोगों को लाभ हुआ। फेंके हुए तने से रेशा निकालकर उससे मैट, हैट, बैग, टोकरी, कैलेंडर आदि उपयोगी सामान बनाए जा रहे हैं। 
केले के बेकार फेंके जाने वाले तने को कुछ दिन बाद प्रायः किसान जला देते हैं। केला उत्पादक किसान केले की कटाई के बाद तने से वर्मी कंपोस्ट खाद, रेशा निकालकर तथा उससे उपयोगी सामान बनाकर केले के तने से सैप यानी पेय पदार्थ बनाकर अच्छी कमाई कर रहे हैं।

इस परियोजना के प्रधान अन्वेषक डॉ. एसके सिंह बताते हैं कि अनुसंधान के तहत केले के थंब से लगभग 50 टन वर्मी कंपोस्ट तैयार की गई। किसानों को लगातार प्रशिक्षण दिया जा रहा है।  किसानों का कहना है कि पहले केला के फल के अलावा कुछ प्राप्त नहीं होता था। कुछ धार्मिक कार्यों में तने की मांग होती थी, लेकिन आज तने की बराबर मांग हो रही है।
 

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