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भारत, जिसे अपनी कृषि प्रणाली के लिए विश्वभर में प्रसिद्धता मिली है, वहाँ के छोटे किसानों के लिए भी बड़े चुनौतियों का सामना कर रहा है। आने वाले दशकों में भारतीय कृषि और छोटे किसानों का भविष्य कैसा होगा, इस पर नीति, विनियमन, और किसान प्राधिकृति का क्या योगदान होगा, इस पर ध्यान केंद्रित होना चाहिए। किसानों को शिक्षा और प्रशिक्षण- सबसे पहले, किसानों को नवीनतम तकनीकों और बेहतर प्रथाओं की जानकारी देने के लिए सरकार को उन्हें शिक्षा और प्रशिक्षण के लिए सुविधाएं प्रदान करनी चाहिए। कृषि बीमा की प्रोत्साहना-किसानों को अपने फसलों की सुरक्षा के लिए कृषि बीमा की ओर प्रोत्साहित करना चाहिए। सरकार को इसमें और बेहतरीन योजनाएं लागू करनी चाहिए जिससे किसानों को होने वाली हानियों से बचाया जा सके। सुरक्षित और स्वस्थ खाद्य सुरक्षा- स्वस्थ और सुरक्षित खाद्य सुरक्षा के लिए, सरकार को उच्च गुणवत्ता वाले बीजों के प्रबंधन, जल संरक्षण, और शक्तिशाली कृषि तंत्र की विकसित करने की जरूरत है। कृषि क्षेत्र में सुधार करने के लिए नीति और विनियमन की महत्वपूर्ण भूमिका है। सरकार को छोटे किसानों की स्थिति को सुधारने, उन्हें नए तकनीकों से अवगत कराने, और उन्हें बेहतर मार्गदर्शन प्रदान करने के लिए नीतियों को समझने की आवश्यकता है।
किसान प्राधिकृति एक महत्वपूर्ण घटक है जो किसानों की आवश्यकताओं और मुद्दों को सरकार तक पहुंचाने में मदद कर सकती है। इसमें किसानों के अधिकारों की रक्षा करने, उन्हें शिक्षित बनाने, और उन्हें सामूहिक रूप से सशक्त करने का मुद्दा शामिल है। किसानों को नवाचारिक और स्वयंसहाय तंत्रों के साथ मिलकर काम करने के लिए सरकार को प्रोत्साहन देना चाहिए ताकि वे अपनी उत्पादन को बढ़ा सकें और बेहतरीन मार्गदर्शन प्राप्त कर सकें। सरकार को एक ऐसे ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म को बनाने के लिए प्रेरित करना चाहिए जिससे किसान अपनी खेती से जुड़ी सभी जानकारी, नए तकनीक, और विपणियों की जानकारी प्राप्त कर सकें। भविष्य में भारतीय कृषि और छोटे किसानों के लिए सफलता की कुंजी नीति, विनियमन, और किसान प्राधिकृति की दृष्टि में है। सरकार को इस समय से ही एक सकारात्मक मार्गदर्शन की दिशा में कदम उठाना चाहिए ताकि छोटे किसान समृद्धि की ऊंचाइयों को छू सकें और भारतीय कृषि एक सुस्त और सुरक्षित भविष्य की दिशा में बढ़ सके।
सशक्त नीति और किसान प्राधिकृति का सामरिक योगदान भारतीय कृषि और छोटे किसानों का भविष्य हमारे राष्ट्र के आर्थिक विकास की एक महत्वपूर्ण चुनौती है। इस दिशा में एक सशक्त नीति और किसान प्राधिकृति का योगदान आवश्यक है। भारतीय कृषि और छोटे किसानों का भविष्य: समृद्धि और सुरक्षा की दिशा में भारतीय कृषि और छोटे किसानों का भविष्य राष्ट्र के आर्थिक विकास की महक से जुड़ा हुआ है। यह सेक्टर हमारे देश के अर्थनीति के स्तंभों में से एक है, और इसका सबसे बड़ा हिस्सा छोटे किसानों के हवाले हैं। समृद्धि और सुरक्षा की दृष्टि से, हमें छोटे किसानों को समर्थन प्रदान करने और उन्हें नए तकनीकी उनोवेशन से लाभान्वित करने के लिए नवाचारी नीतियों की आवश्यकता है। सरकार को इस समय से ही एक बेहतरीन मार्गदर्शन की दिशा में कदम उठाना चाहिए ताकि छोटे किसान समृद्धि की ऊंचाइयों को छू सकें और भारतीय कृषि एक सुस्त और सुरक्षित भविष्य की दिशा में बढ़ सके।
छोटे किसानों को नए तकनीकी उनोवेशन से अवगत कराना और उन्हें इसे अपनाने के लिए प्रेरित करना आवश्यक है। उन्हें बेहतर कृषि तकनीकों तक पहुंचाने और उनकी क्षमताओं को बढ़ावा देने के लिए नीतियों की आवश्यकता है ताकि उनका उत्पादन बढ़ सके और वे आत्मनिर्भर बन सकें। समृद्धि और सुरक्षा की दिशा में, यह हम सभी का दायित्व है कि हम समृद्धि की ऊंचाइयों को छूने में मदद करें और एक सुस्त और सुरक्षित भविष्य की दिशा में कदम उठाएं। भारत में कृषि का भविष्य एक गहरे परिवर्तन की दिशा में है और इसमें नीतियों, विनियमन, और किसान समृद्धि का महत्वपूर्ण योगदान होगा। आधुनिक तकनीक, विज्ञान, और उनोवेशन के साथ संबद्ध, अद्यतित और उच्च उत्पादक्षमता वाली खेती की दिशा में कदम रखना अत्यंत आवश्यक है।
बाजार के जोखिमों में बाजार की अनुपस्थिति, कम मूल्य मिलना, उच्च लेन-देन लागत, और बाजारी अधिशेष के छोटे आकार के कारण कम और अस्थायी किसान आय की ओर अभिगमन शामिल हैं, जिससे उत्पादकों की आय कम और अस्थायी हो जाती है। किसान ने यदि कुशलता से उत्पादन किया है लेकिन उसे अच्छे से बेचा नहीं जा रहा है, तो कहानी हार जाती है। यद्यपि, बिहार में ज्यादा किसान आत्महत्या नहीं करते हैं, यहां तुलना में, पंजाब की तरह। इसलिए, बहुत मात्रा में सुरक्षा (एमएसपी) या बहुत कम की आधारित तकलीफें, दोनों तरीके से भारत में छोटे किसानों के बीच दुःख है। छोटे किसानों के बीच व्यापक रूप से हो रहे असमर्थन के कारण भी भारत में छोटे किसानों की तंगी यह बढ़ाती है, जिसमें सूची में कई उत्पादन जोखिम जैसे सुखा, बाढ़, सामग्री के उचित उपयोग की कमी, विस्तार की कमी, फसल की असफलता, इत्यादि शामिल हैं।
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