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किसानों को आर्थिक रूप से सशक्त करने के लिए और उन्हें नई तकनीक के इस्तेमाल के लिए प्रेरित करने के लिए सरकार की ओर से कई योजनाएं चलाई जा रही हैं। इससे फसलों का बेहतर उत्पादन भी हो रहा है। इसी क्रम में किसानों को विशेषज्ञ स्प्रिंकलर या ड्रिप स्प्रिंकलर तकनीक की मदद से खेतों की सिंचाई करने की सलाह देते हैं. इससे कम पानी का इस्तेमाल करके फसलों का बेहतर उत्पादन किया जा सकता है। साथ ही इससे किसानों को मुनाफा भी होगा. खासकर इस तकनीक से गेहूं और बागवानी फसलों की सिंचाई करना ज्यादा मुनाफे वाला सौदा है। आइए जानते हैं इस तकनीक के बारे में।
फसलों के बेहतर उत्पादन के लिए सरकार की ओर से किसानों के हित में कई योजनाएं चलाई जा रही हैं। इन्हीं में से एक है प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना। किसान इसके तहत स्प्रिंकलर व ड्रिप स्प्रिंकलर की खरीदारी करने पर भारी छूट पा सकते हैं। इसके लिए किसानों को मशीन लगाने के लिए सरकार की ओर से 90 प्रतिशत सब्सिडी भी मिलती है।
खेती में सबसे ज्यादा पानी का इस्तेमाल होता है। ऐसे में सरकार किसानों के जरिए पानी की बचत करना चाहती है। पानी बचाने और 'प्रति बूंद अधिक फसल' के आदर्श वाक्य को साकार करने के लिए सूक्ष्म सिंचाई प्रणाली महत्वपूर्ण है। ड्रिप सिंचाई की तकनीक खासकर बागवानी फसलों के लिए काफी कारगर है। गेहूं की खेती में भी ड्रिप सिंचाई का इस्तेमाल सफलतापूर्वक किया गया है। ड्रिप सिंचाई के इस्तेमाल से खेती की पारंपरिक प्रणाली की तुलना में चावल में 33 प्रतिशत और गेहूं में 23 प्रतिशत की बढ़ोतरी देखने को मिली है।
इन फसलों की हो सकती है सिंचाई: माइक्रो, मिनी और पोर्टेबल स्प्रिंकलर सिंचाई में काफी मददगार हैं। इस तकनीक के माध्यम से सिंचाई करने पर बारिश के जैसी बूंदें फसल पर पड़ती हैं। ऐसे में इस फव्वारा सिंचाई भी कहते हैं। इस तकनीक या विधि में पानी को ट्यूबवेल, टंकी या तालाब से पाइपों के जरिए खेत तक ले जाते हैं और वहां पर उन पाइपों के ऊपर नोजल फिट कर दी जाती है। इन नोजल से होकर फसलों पर पानी बिलकुल बारिश के जैसा गिरता है। वहीं माइक्रो स्प्रिंकलर तकनीक से लीची की पॉली हाउस, शेडनेट हाउस की सिंचाई करनी चाहिए। मिनी स्प्रिंकलर से चाय, आलू, धान, गेहूं और सब्जी की सिंचाई करनी चाहिए, पोर्टेबल स्प्रिंकलर से दलहन और तिलहन फसलों की सिंचाई की जा सकती है। वहीं ड्रिप सिंचाई तकनीक के जरिए पानी पौधों की जड़ों में बूंद-बूंद करके लगाया जाता है। इस पद्धति में पानी की बर्बादी नहीं होती है और पैदावार भी बढ़ती है।