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जामुन का पेड एक बार लगाने के बाद लगभग 50 से 60 वर्षों तक फल देता है। जामुन का उत्पादन विश्व में भारत दूसरे स्थान पर है। जामुन को जमाली, ब्लैकबेरी, राजमन और काला जामुन नामों से भी जाना जाता है। महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु, असम और गुजरात राज्य में इसकी खेती सबसे ज्यादा की जाती है। इसका पौधा 25 से 30 फ़ीट ऊँचा होता है। लोग इसके फलो को खाने में अधिक पसंद करते है खाने के अलावा जामुन का उपयोग अनेक प्रकार की चीजों जेली, शरबत, जैम और शराब तथा अन्य चीजों को बनाने के लिए करते है।
जामुन का पौधा पौधों को ठंडे प्रदेशों के अलावा कही भी उगाया जा सकता है। जामुन के बीजों को शुरुआती समय में अंकुरित होने के लिए 20 से 25 डिग्री तापमान की आवश्यकता होती है तथा पौधे के विकास के लिए सामान्य तापमान की जरूरत होती है। इसके पौधों के लिए सर्दियों में गिरने वाला पाला हानिकारक होता है।
जामुन की खेती विभिन्न क्षेत्रों में जाती है। इसकी खेती के लिए उचित बीज या पौधे का चयन, उपयुक्त जलवायु और उचित भूमि के आधार पर की जाती है। इसकी खेती में समय- समय पर सिंचाई, उर्वरक की सही मात्रा और पोषण के साथ पौधों की विशेष देखभाल करनी होगी। खेती में सही तकनीक और व्यवस्थित प्रबंधन करके उचित मुनाफा कमाया जा सकता है। जामुन की खेती किसी भी उपजाऊ मिट्टी में की जा सकती है परंतु उचित जल निकासी वाली भूमि को जामुन की पैदावार के लिए सबसे उपयुक्त माना जाता है। कठोर भूमि में इसका विकास अच्छे से नही होता।
जामुन की खेती करने के लिए आपको सबसे पहले इसके पौधे तैयार कर लेने है। नर्सरी में भी इसके पौधे तैयार कर सकते है या फिर पौधे खरीद कर भी लगा सकते है। सबसे पहले खेत की अच्छी तरह से मिट्टी पलटने वाले हल से गहरी जुताई करें फिर जुताई के बाद, खेत में सडी गोबर की खाद को डालकर, रोटावेटर से पुनः जुताई करवायें। मिट्टी को समतल करके पौधों की रोपाई के लिए गड्डे तैयार करें और खेत में तैयार गड्डों के बीच लगभग 7-8 फीट की दूरी रखे, गड्डे लगभग 45 से 40 सेंटीमीटर गहरा होना चाहिए। पौधे रोपाई के तुरंत बाद ही आपको पहली सिंचाई करना चाहिये। इसके बाद निराई- गुड़ाई करना है।
जामुन की उन्नत खेती: गोमा प्रियंका, काथा, नरेंद्र 6, सी.आई.एस.एच.जे 37, सी.आई.एस.एच.जे 45, कोंकण भादोली, राजेंद्र 1, री जामुन
जामुन की खेती का समय: जामुन की खेती के लिये सही फरवरी से जुलाई से अगस्त के मौसम में की जा सकती है लेकिन वर्षा के मौसम में इसकी खेती करना सही होगा क्योंकि इसके पौधे अच्छे से वृद्धि करते है। पौधे रोपाई के लगभग 3 से 4 साल बाद, जामुन का पौधा उत्पादन के लिए तैयार हो जाता है।
जामुन की खेती में सिंचाई: जामुन के पेड़ को ज्यादा सिंचाई की जरूरत नही होती है लेकिन प्रारम्भ में इसके पौधों को सिंचाई की आवश्यकता होती है। इसके पौधों खेत में तैयार किया गए गड्डे में लगाने के तुरंत बाद पहली सिंचाई कर देना चाहिए। और सर्दी के मौसम में 8 से 10 दिनों के अंतराल में सिंचाई करे। गर्मी के मौसम में पौधों की 4 से 5 दिनों के अंतराल में सिंचाई करें।
काले जामुन की खेती: किसान जून से जुलाई माह में जामुन की खेती करते हैं। इसकी खेती में उचित मिट्टी, समय पर पानी खाद प्रबंधन, वातावरण का अवश्य ध्यान रखे। जामुन के पौधों को मजबूत बनाने के लिए आवश्यकतानुसार खाद देना भी जरुरी है। काले जामुन के पेड़ पर फल आने तक कई सारे रोग तथा कीट भी अटैक करते है, तब योग्य दवाई का छिड़काव करना चाहिए।
खाद व उर्वरक: इसके पौधों को खेत में लगाने से पहले तैयार किए गए प्रत्येक गड्डे में 10 से 12 किलोग्राम सड़ी गोबर की खाद मिट्टी में मिलाकर गड्डे में डाल दे। वर्मी कंपोस्ट खाद का भी इस्तेमाल कर सकते है। प्रत्येक पौधों में 100 ग्राम एनपीके की मात्रा को साल में 3 बार देना चाहिए, जब पौधा पूर्ण रूप से विकसित हो जाए।
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जामुन की खेती से लाभ व मुनाफा: बाजारों में जामुन की मांग बहुत अधिक रहती है, और अच्छा मुनाफा भी मिल जाता है। इसका उपयोग औषधीय दवाइयों में भी किया जाता है। इससे छोटे श्रमिकों को जामुन की तुड़ाई के समय रोजगार का अवसर मिलता है। जामुन के पौधे रोपाई के लगभग 3-4 वर्षो के बाद फल देने लगते हैं। 1 हेक्टेयर में लगभग 140 से 150 पौधों को लगाया जा सकता है। जिसकी लागत लगभग 1 लाख रुपए तक की हो सकती है। जामुन का बाजार में भाव लगभग 60 से 70 रुपए प्रति किलो बिकता है। सालभर में लगभग 9-10 लाख रुपए की कमाई कर सकते है।