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मध्यप्रदेश में एमएसपी से अधिक गेहूं का मूल्य खुले बाजारों एवं मंडियों में बिक रहा है। ऐसे में किसान सरकारी क्रय केंद्र पर गेहूं नहीं बेच रहे, बल्कि खुले बाजार में अपनी उपज को बेचना पसंद कर रहे हैं, जिससे किसान अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं। वहीं सरकारी क्रय केंद्र में गेहूं की आवक कम होने से खरीदी भी कम हो रही है। बताया जा रहा है कि 15 मई तक करीब 80 लाख मीट्रिक टन गेहूं के लक्ष्य रखा था, जो सरकारी खरीद केंद्रों ने लगभग 42 लाख मीट्रिक टन उपज खरीदी थी। गेहूं की खरीद सरकारी केंद्रों पर 15 मार्च से शुरू होकर 20 मई तक रहेगी।
एक रिपोर्ट के मुताबिक किसानों का कहना है कि सरकारी केंद्रों पर अपनी उपज बेचते हैं तो उन्हें 10 से 15 दिन तक इंतजार करना पड़ता है किन्तु खुले बाजार में गेहूं बेचने पर उन्हें तुरंत ही पैसा मिल जाता है। इसलिये किसानों ने खुले बाजार में उपज को बेचने का विकल्प चुना है। इसके अलावा समितियों ने किसानों से किसान क्रेडिट कार्ड ऋण न होने पर भी गेहूं के बिक्री मूल्य से पैसा काट लिया है।
1 अप्रैल को गेहूं का स्टॉक करीबन 16.7 मिलियन टन था। केंद्र ने 2024-25 आरएमएस विपणन वर्ष में करीब 37.29 मिलियन मीट्रिक टन खरीदने का लक्ष्य रखा है। अधिकारियों का कहना है कि खरीद 31-32 मिलियन मीट्रिक टन संभावित है। अधिकांश राज्यों उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान, पंजाब और हरियाणा में गेहूं उत्पादक खरीद धीमी हो गई है।
पहले सरकार ने 2400 रुपये प्रति क्विंटल पर उपज खरीद रही है, जिसमें 2275 रुपये का एमएसपी और 125 रुपये का बोनस भी शामिल है। शादियों के सीजन में किसान गेहूं क्रय समितियों से भुगतान पाने के लिए ज्यादा देर तक इंतजार नहीं कर सकते थे। इसलिये किसान अपनी उपज खुले बाज़ार में बेचते थे। अनुमानित 60 फीसदी गेहूं खुले बाजार में बेचा गया।