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देश भर के लाखों किसान इन दिनों खेती में तकनीक का इस्तेमाल कर रहे हैं। ये किसान इन तकनीक की मदद से खेती को बढ़ाने के साथ ही मुनाफा भी कमा रहे हैं। ऐसी ही एक विधि है मल्चिंग। इसके जरिए किसान काम सिंचाई करके भी अपनी फसलों के लिए बेहतर मिट्टी और खाद उपलब्ध करा सकते हैं। मल्चिंग तकनीक खरपतवार नियंत्रण और पौधों को लंबे समय तक सुरक्षित रखने में बेहद कारगर होती है। इसे पलवार या मल्च भी कहते हैं। किसान खेतों में इन्हें खरपतवारों और घास फूस का इस्तेमाल करके भी मल्चिंग कर सकते हैं। खरपतवार आपके पैसे को भी बचाएगा। आइए जानते हैं इसके बारे में...
किसानों के लिए घास और खरपतवार वाली मल्चिंग काफी फायदेमंद है। इस मल्चिंग का इस्तेमाल सभी फसलों में किया जा सकता है। इसके इस्तेमाल से फल और फसलों के पत्ते मुलायम और बेहतर होते हैं। घास-फूस और खरपतवार से बनाए गए मल्च से मिट्टी और फसलों को पोषक तत्व भी मिलते हैं। इसके अलावा घास-फूस और खरपतवार से मल्चिंग बनाने के लिए किसानों को प्रति हेक्टेयर 8 से 10 टन सूखी घास की जरूरत होती है।
फसलों में मल्चिंग करने के लिए किसानों को फसल अवशेष जैसे, मक्का, गेहूं, धान, पेड़ के पत्ते, भूसा और पुआल आदि का उपयोग करना चाहिए। दरअसल कई राज्यों के किसान अपने धान का पुआल और गेहूं के भूसे को जला या फेंक देते हैं। जबकि इस अवशेष का वह मल्चिंग में सफलतापूर्वक इस्तेमाल कर सकते हैं।
मल्च एक ऐसी प्रक्रिया है जिसका उपयोग मिट्टी में नमी बनाए रखने, खरपतवारों को दबाने, मिट्टी को ठंडा रखने और सर्दियों में पाले की समस्या से पौधों को सुरक्षित रखने के लिए मल्चिंग किया जाता है। इससे पौधों का विकास सुचारू रूप से होता है। यह विधि खरपतवार को रोकने में मदद करती है। साथ ही इससे खेत में नमी की मात्रा बनी रहती है।