भारत में फलों का राजा कहे जाने वाले आम की खेती पूरे देश में की जाती है और इसकी मांग न केवल भारत में बल्कि विदेशों में भी काफी अधिक है। विभिन्न राज्यों में आम की अलग-अलग किस्में पाई जाती हैं, जिससे किसानों को व्यापक पैमाने पर खेती करने और लाभ कमाने का अवसर मिलता है। वैज्ञानिक तरीकों से आम की खेती करने पर किसान कम समय में अधिक उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं। इस दिशा में भारत सरकार ने नेशनल मेंगो डाटाबेस तैयार किया है, जिससे किसानों को बेहतर खेती की जानकारी मिल सके।
आम की खेती के लिए जल धारण क्षमता वाली गहरी, बलुई दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त होती है। इसके अलावा, भूमि का पीएच मान 5.5 से 7.5 के बीच होना चाहिए, ताकि पौधे स्वस्थ रहें और अच्छा उत्पादन दें।
आम उष्णकटिबंधीय फल है, लेकिन इसे उपोष्ण क्षेत्रों में भी सफलतापूर्वक उगाया जा सकता है। 25-27 डिग्री सेल्सियस तापमान इसकी खेती के लिए आदर्श माना जाता है। मानसून के दौरान 125 सेमी वर्षा आम की फसल के लिए अनुकूल होती है।
आम के पौधों को सामान्यत: 10×10 मीटर की दूरी पर लगाया जाता है, जबकि सघन बागवानी में यह 2.5 से 4 मीटर की दूरी पर लगाए जाते हैं। पौधे लगाने के लिए 1×1×1 मीटर का गड्ढा तैयार कर उसमें गोबर की खाद, नीम की खली और हड्डी का चूरा मिलाकर भरना चाहिए।
पौधों की देखभाल और उर्वरक प्रबंधन:
शुरुआती तीन-चार वर्षों तक पौधों की विशेष देखभाल करनी होती है। सर्दियों में पाले से बचाने और गर्मियों में लू से बचाने के लिए सिंचाई का उचित प्रबंधन आवश्यक है।
1-3 वर्ष बीच गोबर की खाद 2.5 किलोग्राम, यूरिया 170 ग्राम, सिंगल सुपर फास्फेट 150 ग्राम, म्यूरेट आफ पोटाश 150 ग्राम देना चाहिए।
4-10 वर्ष के बीच गोबर की खाद 10 किलोग्राम, यूरिया 800 ग्राम, सिंगल सुपर फास्फेट 700 ग्राम, म्यूरेट आफ पोटाश 600 ग्राम दें।
10 वर्ष बाद 70 किलोग्राम गोबर की खाद, यूरिया 2000 ग्राम, सिंगल सुपर फास्फेट 1400 ग्राम, म्यूरेट आफ पोटाश 800 ग्राम देना चाहिए।
सिंचाई प्रबंधन: छोटे पौधों को गर्मियों में 4-7 दिन के अंतराल और सर्दियों में 10-12 दिन के अंतराल पर सिंचाई करनी चाहिए। फलदार वृक्षों की सिंचाई अक्टूबर से जनवरी के बीच नहीं करनी चाहिए, ताकि अधिक फल प्राप्त हों।
आम के साथ अन्य फसलें: आम के वृक्षों को पूरी तरह विकसित होने में 10-12 वर्ष लगते हैं। इस दौरान किसान उनके बीच मूंग, लोबिया, चना, मटर और भिंडी जैसी अंतरवर्तीय फसलें उगा सकते हैं। इससे भूमि की उर्वराशक्ति बनी रहती है और अतिरिक्त आय भी प्राप्त होती है।
पुराने आम के वृक्षों का पुनरुद्धार: 50 वर्ष से अधिक आयु वाले आम के वृक्षों की टहनियाँ घनी हो जाती हैं और तना कमजोर पड़ जाता है। ऐसे वृक्षों को स्वस्थ बनाए रखने के लिए 100 किग्रा गोबर की खाद और 2.5 किग्रा नीम की खली प्रति पौधा डालनी चाहिए।
आम में लगने वाले प्रमुख रोग और बचाव के उपाय
पाउडरी मिल्ड्यू रोग:
एन्थे्रक्नोज रोग:
उल्टा सूखा रोग:
फूल आने और उत्पादन का समय: आम के पौधों में फरवरी माह में फूल विकसित होते हैं। एक हेक्टेयर में 100 पौधों की जरूरत होती है और प्रति हेक्टेयर 80 क्विंटल आम का उत्पादन होता है, जिससे किसान लगभग 2.5 लाख रुपये की आमदनी प्राप्त कर सकते हैं।
निष्कर्ष: आम की खेती वैज्ञानिक तरीकों से करने पर कम समय में अधिक उपज और बेहतर गुणवत्ता प्राप्त की जा सकती है। सही भूमि का चयन, उन्नत किस्मों का रोपण, उचित उर्वरक प्रबंधन और कीट-रोग नियंत्रण से किसान अपनी आय में वृद्धि कर सकते हैं।