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Mango farming: भारत में आम की खेती: उच्च उत्पादन और आय के लिए वैज्ञानिक तकनीकि

आम की खेती
आम की खेती

भारत में फलों का राजा कहे जाने वाले आम की खेती पूरे देश में की जाती है और इसकी मांग न केवल भारत में बल्कि विदेशों में भी काफी अधिक है। विभिन्न राज्यों में आम की अलग-अलग किस्में पाई जाती हैं, जिससे किसानों को व्यापक पैमाने पर खेती करने और लाभ कमाने का अवसर मिलता है। वैज्ञानिक तरीकों से आम की खेती करने पर किसान कम समय में अधिक उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं। इस दिशा में भारत सरकार ने नेशनल मेंगो डाटाबेस तैयार किया है, जिससे किसानों को बेहतर खेती की जानकारी मिल सके।

भूमि की तैयारी land preparation:

आम की खेती के लिए जल धारण क्षमता वाली गहरी, बलुई दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त होती है। इसके अलावा, भूमि का पीएच मान 5.5 से 7.5 के बीच होना चाहिए, ताकि पौधे स्वस्थ रहें और अच्छा उत्पादन दें।

आम के पौधे लगाने का सही समय Right time to plant mango trees:

आम उष्णकटिबंधीय फल है, लेकिन इसे उपोष्ण क्षेत्रों में भी सफलतापूर्वक उगाया जा सकता है। 25-27 डिग्री सेल्सियस तापमान इसकी खेती के लिए आदर्श माना जाता है। मानसून के दौरान 125 सेमी वर्षा आम की फसल के लिए अनुकूल होती है।

आम की प्रमुख किस्में Major varieties of mango:

  1. मल्लिका- आम की यह किस्म नियमित फल देता है। एक आम का वजन 200-350 ग्राम, गूदा 73 प्रतिशत तथा उत्पादन 65-70 किलो प्रति पेड़ होता है।
  2. सुंदरजा- आम की यह किस्म नियमित फलन तथा अतिसुंदर सुगंध देने वाले होती है। एक आम का वजन 300-350 ग्राम, गूदा 76 प्रतिशत तथा उत्पादन 65 किलो प्रति पेड़ होता है।
  3. आम्रपाली- यह किस्म नियमित फल देने वाली सघन बागवानी के लिये उपयुक्त होती है। इसका वजन 200 से 300 ग्राम, गूदा 75 प्रतिशत और इसका उत्पादन 40 किलो प्रति पेड़ होता है।
  4. दशहरी- इस किस्म के आम का स्वाद अत्यधिक मीठा, गुठली छोटी होती है। इसका वजन 160-200 ग्राम, गूदा 77 प्रतिशत और उत्पादन 80 किलो प्रति पेड़ है।

आम के पौधे लगाने की विधि Method of planting mango plants:

आम के पौधों को सामान्यत: 10×10 मीटर की दूरी पर लगाया जाता है, जबकि सघन बागवानी में यह 2.5 से 4 मीटर की दूरी पर लगाए जाते हैं। पौधे लगाने के लिए 1×1×1 मीटर का गड्ढा तैयार कर उसमें गोबर की खाद, नीम की खली और हड्डी का चूरा मिलाकर भरना चाहिए। 

पौधों की देखभाल और उर्वरक प्रबंधन:

शुरुआती तीन-चार वर्षों तक पौधों की विशेष देखभाल करनी होती है। सर्दियों में पाले से बचाने और गर्मियों में लू से बचाने के लिए सिंचाई का उचित प्रबंधन आवश्यक है। 
1-3 वर्ष बीच गोबर की खाद 2.5 किलोग्राम, यूरिया 170 ग्राम, सिंगल सुपर फास्फेट 150 ग्राम, म्यूरेट आफ पोटाश 150 ग्राम देना चाहिए। 
4-10 वर्ष के बीच गोबर की खाद 10 किलोग्राम, यूरिया 800 ग्राम, सिंगल सुपर फास्फेट 700 ग्राम, म्यूरेट आफ पोटाश 600 ग्राम दें।
10 वर्ष बाद 70 किलोग्राम गोबर की खाद, यूरिया 2000 ग्राम, सिंगल सुपर फास्फेट 1400 ग्राम, म्यूरेट आफ पोटाश 800 ग्राम देना चाहिए।

सिंचाई प्रबंधन: छोटे पौधों को गर्मियों में 4-7 दिन के अंतराल और सर्दियों में 10-12 दिन के अंतराल पर सिंचाई करनी चाहिए। फलदार वृक्षों की सिंचाई अक्टूबर से जनवरी के बीच नहीं करनी चाहिए, ताकि अधिक फल प्राप्त हों। 

आम के साथ अन्य फसलें: आम के वृक्षों को पूरी तरह विकसित होने में 10-12 वर्ष लगते हैं। इस दौरान किसान उनके बीच मूंग, लोबिया, चना, मटर और भिंडी जैसी अंतरवर्तीय फसलें उगा सकते हैं। इससे भूमि की उर्वराशक्ति बनी रहती है और अतिरिक्त आय भी प्राप्त होती है।

पुराने आम के वृक्षों का पुनरुद्धार: 50 वर्ष से अधिक आयु वाले आम के वृक्षों की टहनियाँ घनी हो जाती हैं और तना कमजोर पड़ जाता है। ऐसे वृक्षों को स्वस्थ बनाए रखने के लिए 100 किग्रा गोबर की खाद और 2.5 किग्रा नीम की खली प्रति पौधा डालनी चाहिए।
आम में लगने वाले प्रमुख रोग और बचाव के उपाय

पाउडरी मिल्ड्यू रोग:

  1. लक्षण- इसके लक्षण बौरों पुष्पक्रमों की डंडियों, पत्तियों और नये फलों पर देखे जा सकते हैं। नयी पत्तियों पर छोटे स्लेटी रंग के धब्बे दिखायी देते हैं। रोग से प्रभावित पत्तियां टेढ़ी-मेढ़ी मुड़ी हुई हो जाती है। बौरों पर फूल नहीं खिलते और समय से पहले ही झड़ जाते हैं। फल पर बैंगनी भूरे रंग के धब्बे पड़ जाते हैं।
  2. प्रबंधन- रोगग्रसित पत्तियों और पुष्पगुच्छों की छंटाई से रोग को कम किया जा सकता है। 0.2 प्रतिशत विलयनशील सल्फर का घोल बनाकर उस समय करना चाहिए जब बौर 10 सेमी. का हो जाये।

एन्थे्रक्नोज रोग:

  1. लक्षण- पत्तियों की सतह पर गोल, भूरे या गहरे रंग के धब्बे बनते हैं। अधिक नमी होने पर यह कवक तेजी से बढ़ते हैं। बौर एवं खिले फूलों पर काले धब्बे बन जाते हैं। फलों पर बहुत छोटे-छोटे धब्बे या निशान पड़ते हैं जो भण्डारण के समय फल को सड़ा देते हैं।
  2. प्रबंधन- सभी रोगग्रस्त टहनियों की छँटाई करके जला देना चाहिए। मंजरी संक्रमण को रोकने के लिये कार्बेन्डाजिम 0.1 प्रतिशत का दो बार छिड़काव 15 दिनों के अंतराल पर करने से रोग को नियंत्रित किया जा सकता है। 

उल्टा सूखा रोग:

  1. लक्षण- इस रोग का प्रकोप अक्टूबर-नवम्बर माह में देखा जा सकता है। टहनियां ऊपर से नीचे तक सूख जाती हैं और पत्तियों से हरा रंग विलुप्त होने लगता है। शाखाएं फटने लगती हैं, उनसे पीला गोंद निकलता है और फिर शाखाएं सूख जाती हैं। 
  2. प्रबंधन- संक्रमित भाग में 10 सेंमी. नीचे से छँटाई के बाद बोडों मिक्सचर 5:5:50 या कापर आक्सीक्लोराइड 0-3 प्रतिशत का छिडकाव रोग की रोकथाम में सबसे प्रभावी उपाय है।  

फूल आने और उत्पादन का समय: आम के पौधों में फरवरी माह में फूल विकसित होते हैं। एक हेक्टेयर में 100 पौधों की जरूरत होती है और प्रति हेक्टेयर 80 क्विंटल आम का उत्पादन होता है, जिससे किसान लगभग 2.5 लाख रुपये की आमदनी प्राप्त कर सकते हैं।

निष्कर्ष: आम की खेती वैज्ञानिक तरीकों से करने पर कम समय में अधिक उपज और बेहतर गुणवत्ता प्राप्त की जा सकती है। सही भूमि का चयन, उन्नत किस्मों का रोपण, उचित उर्वरक प्रबंधन और कीट-रोग नियंत्रण से किसान अपनी आय में वृद्धि कर सकते हैं।

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