पुदीना (मिंट) एक सुगंधित जड़ी-बूटी है, जिसका उपयोग चटनी, जलजीरा, दही, छाछ और विभिन्न व्यंजनों में किया जाता है। इसके अलावा पुदीने से निकाला गया तेल औषधीय और व्यावसायिक दृष्टि से काफ़ी उपयोगी होता है। पुदीना सुखाकर भी स्टोर किया जा सकता है, जिससे इसकी मांग पूरे वर्ष बनी रहती है। बाज़ार में इसकी अच्छी कीमत मिलने के कारण किसानों के लिए पुदीने की खेती एक लाभदायक विकल्प साबित हो सकती है।
पुदीने की खेती के लिए उपजाऊ और जल निकासी वाली मिट्टी सबसे उपयुक्त होती है। भारी एवं चिकनी मिट्टी में इसका उत्पादन अच्छा नहीं होता। इसके लिए भूमि का पीएच मान 6 से 7.5 के बीच होना चाहिए। जलवायु की दृष्टि से समशीतोष्ण क्षेत्र पुदीने की खेती के लिए आदर्श हैं। इसे जायद और खरीफ दोनों मौसमों में उगाया जा सकता है, लेकिन सर्दियों में पाला पड़ने से फसल को नुकसान हो सकता है। अंकुरण के लिए तापमान 20-25°C, उचित विकास के लिए 30°C, अधिकतम सहनशीलता 40°C होना चाहिए।
कटाई और उत्पादन: पुदीना की पहली कटाई, रोपाई के 3 महीने बाद और दूसरी कटाई पहली कटाई के 2 महीने बाद करना चाहिए। कटाई हमेशा 4-5 सेमी ऊपर से करें, ताकि पौधे का पुनः विकास हो सके। कटाई के बाद पत्तियों को 2-3 घंटे धूप में सुखाएं, फिर छांव में रखकर तेल निकालें। 1 हेक्टेयर पुदीना खेती से लगभग 100 लीटर तेल प्राप्त होता है।
आर्थिक लाभ: पुदीने का तेल बाज़ार में काफी ऊंचे दाम में बिकता है, जिससे किसानों को अच्छा मुनाफा हो सकता है। सही तकनीक अपनाकर पुदीने की खेती से बेहतर उत्पादन और आर्थिक समृद्धि हासिल की जा सकती है।