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Modern Agriculture in Hindi | खेती में समृद्धि की राह, अधिक उत्पादन व आय के लिए कृषि तकनीकि

Modern Agriculture in Hindi | खेती में समृद्धि की राह, अधिक उत्पादन व आय के लिए कृषि तकनीकि
खेती-में-समृद्धि-की-राह-अधिक-उत्पादन-व-आय-के-लिए-आधुनिक-कृषि-पद्धतियाँ

भारत में खाद्य समृद्धि के बाबजूद, जनसंख्या वद्धि के कारण देश मे खाद्यान्‍न की कमी लगातार बनी हुई है इसलिए कृषि से जुड़े लोगो का अधिक उपज और समृद्ध खेती की तरफ रुझान आवश्यक है । खेती को लाभदायक बनाने के लिए दो ही उपाय हैं - पहला उत्पादन को बढ़ाएँ और दूसरा लागत को कम करें। कृषि की लागत नियत्रिंत करने के लिए कृषि के मुख्य आदान जैसे - बीज, उर्वरक, पोध संरक्षण रसायन और सिंचाई तंत्र का संतुलित एवं आधुनिक विधियो द्वारा प्रयोग करना चाहिए। कृषि की हरेक इकाई का सही समय पर सही तरह से उपयोग करके , इनका अपव्यय रोककर खेती को लाभदायक बनाना चाहिए । 

अच्छे किस्म के बीजो का प्रयोग समय पर बुआई तथा बीजोपचार: 

कहते है जैसा आप बोओगे वैसा पाओगे इसलिए बीज एक ऐसा आदान है जिसकी  समृद्ध खेती में काफी अहम भूमिका होती है । फसलों, फलो और सब्जियों के प्रमाणित उत्तम बीजों का उपयोग करना चाहिए जिनमें अधिक पैदावार देने की क्षमता, सिंचित एवं सुखा प्रभावित क्षेत्रों में पनपने की प्रवृति और रोगों के प्रतिरोधन की  गुणवत्ता हो। हलाँकि यह बीज  थोड़े महंगे हो सकते हैं , परन्तु  इनके इस्तेमाल से  उत्पादकता एवं गुणवत्ता में काफी वृद्धि मिलती है। बीज  के ऊपर लगभग 10 से 15 प्रतिशत लागत आती है और अच्छी पैदावार लाने के लिए यह महत्वर्पूण है की बीज उन्नत किस्म का हो और उसे पनपने के लिए अनुकूल परिस्थीतियां मिलें।

संरक्षण खेती का महत्व Importance of Conservation Farming:

अगर खेत समतल नहीं जुता है तो बीजों का अंकुरण प्रभावित होगा एवं पोधो का विकास कम होगा । शून्य जुताई (जीरो टीलेज) बुआई की एक विधि है जिसमे किसान पूरे खेत को नए सिरे से नहीं जोतता है परन्तु पुरानी फसल काट कर उसी खेत पर ही बुआई कर देता है। इससे किसान की जुताई का खर्च, डीजल, समय इत्यादि बच जाता है और साथ ही साथ जमीन में पोषक तत्व, आर्द्रता, मित्र जीवाणुओं का भी संरक्षण हो जाता है । शुरुआती जुताई से बीज को पनपने के लिया अच्छा माध्यम मिलता है एवं खरपतवार पर नियंत्रण प्राप्त होता है। इसके अतिरिक्त किसान अपनी सुविधा एवं समय  अनुसार बुआई कर सकता है । खरपतवार भी कम आते है जिससे खेती का खर्च भी कम रहता है एवं मिट्टी की प्राकृतिक संरचना भी बनी रहती है जोकी भूसंरक्षरण एवं पर्यावरण बचाव के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।

फसल के लिये उचित पोध पोषण Proper Plant Nutrition for Crops:

फसल के विकास की महत्वपूर्ण अवस्थाओं में उर्वरकों की सही मात्रा का प्रयोग होना चाहिये । किसान मिट्टी की जाँच करवाकर सिफारिश के अनुसार संतुलित उर्वरक का प्रयोग करें ताकि उर्वरकों पर कम लागत आए। कुछ तकनीकें जैसे एल सी सी जो फसल में  उचित नाइट्रोजन की  मात्रा उपलब्ध कराने में सहायक हैं और वैसे ही फॉस्फोरस की उपयोग क्षमता को बढ़ाने के लिए  फॉस्फोरस घोलक बैक्टीरिया का उपयोग करके उर्वरकों की सही मात्रा में उपयोग किया जा सकता है। नाइट्रोजनयुक्त उर्वरकों के अंधाधुन  प्रयोग से न  केवल भूमिगत जल प्रदूषित  होता हैं परन्तु ओजोन परत, जो सूर्य की पराबैंगनी किरणों से हमें बचाती है उसको भी बुरी तरह से प्रभावित करते है।  

जैविक-उर्वरक का प्रयोग Use of Organic Fertilizers:

हरित क्रांति के बाद रासायनिक खादों के अंधाधुन्द प्रयोग से मिटटी की उर्वकता धीरे-धीरे कम हो गयी है, जिसने उत्पादकता पर भी गहरा नकारात्मक प्रभाव डाला है अब समय है की किसान फिर से जैविक खाद की तरफ रुझान करें । उदाहरण के लिये किसान गोबर के उपले बना कर उसे ईंधन के रूप में प्रयोग करते हैं अगर इसी गोबर को गोबर-गैस में इस्तेमाल करने के बाद यदि जैविक खाद के रूप में प्रयोग किया जाये तो ओर भी बेहतर परिणाम आऐगें। जैव-उर्वरक जैसे गोबर की खाद, कम्पोस्ट या केंचुआ खाद आदि का प्रयोग भूमि के लिए लाभदायक पाया गया है। इसके अतिरिक्त जीवाणु कल्चर (राईजोबियम) या एजोटोबैक्टर का उपयोग भी  उपज बढाने  में सहायक है । जैविक खाद के साथ-साथ उर्वरक के संतुलित प्रयोग से उच्च पैदावार प्राप्त  होती है । जैव-उर्वरक कम लागत  के आदान हैं व तुलान्त्मक रूप से इनसे अधिक लाभ प्राप्त होता है।
किसान फसल की कटाई के बाद बचे हुए डंठलों को खेत में ही जला देतें हैं जिससे  मिट्ठी के पोषक तत्व एवं मित्र जीव नष्ट हो जाते हैं  और  साथ  ही यह प्रदुषण भी बढाता है। किसानों को इसके विपरीत कटाई के बाद खेत में एक बार मिट्टी पलटने के लिए हल चलाना चाहिये ताकि डंठल मिटटी में दबकर उचित नमी द्वारा खाद में परिवर्तित हो जायें।

फसलों पर हरित खाद का प्रयोग करें: हरित खाद वो फसलें है जो दो फसलों के अंतराल में लगाई जाती है और बहुत तेजी से बढ़ती है। इन फसलों से न केवल भूमि के पोषक तत्वों में  वृद्धि होती है अपितु इनके इस्तेमाल से भूमि कटाव रुकता है, पानी का रिसाव कम होता है, मिटटी की संरचना बेहतर होती है एवं नमी संग्रहण होता है। जो, फलीदार फसलें, सैंज इत्यादी का प्रयोग हरी खाद के रूप में किया जा सकता हैं।

अंतरवर्तीय फसल उन्नत सिंचाई  विधियों  को अपनाएं: एक ही खेत में दो या दो से अधिक फसलों को एक साथ लगाने की विधि अंतरवर्तीय कृषि कहलाती है। अंतरवर्तीय कृषि से फायदे मुख्यत सामान क्षेत्रफल में ज्यादा आमदनी, एक फसल क्षतिग्रस्त होने पर दूसरी द्वारा बचाव, मिटटी से बेहतर पोषक तत्व लेने की शक्ति आदि हैं । किसान  गेहूँ, जवार, मक्का, कपास आदि फसलों के साथ अंतरवर्तीय फसल के रूप में चना, उड़द, अरहर आदि   लगाकर कृषि को लाभदायक बना सकतें हैं। उन्नत सिंचाई साधनों के इस्तेमाल से किसान समय, श्रम व पानी की बचत कर सकता है और इससे पोधो का विकास भी  बेहतर होता है। कतार (अलटरनेट) सिंचाई, फुहार सिंचाई (स्प्रिंकलर) , टपक सिंचाई (ड्रिप), आदि  सिंचाई विधियों का प्रयोग और फसल की कतारों के बीच अवरोध (मलच) परत अदि तकनीकों का उपयोग करके सिंचाई करनी चाहिए।

पौध संरक्षण तथा समाकलित खेती को अपनाएं:  इसमे कीटों का सम्पूर्ण उन्मूलन करने का प्रयास नहीं किया जाता अपितु उन्हें इस स्तर पर रखा जाता है की वो नुकसान के न्यूनतम स्तर को पार न कर पायें। इस प्रणाली से कृषि पर खर्च भी कम होता है और पर्यावरण भी तुलात्मक रूप से सुरक्षित रहता है। इनके नियंत्रण के लिए स्वच्छ कृषि, परजीवी व शिकारी कीड़ों व कीड़ों को हानि पहुँचाने वाले फफूंदों व वायरस का प्रयोग किया जाता है। इनके अलावा नीम, हींग, लहसुन के उपयोग, अंतरवर्तीय  फसलों, ट्रेप, प्रकाश प्रपंच आदि वैकल्पिक साधनों के उपयोग से  भी लागत कम और उत्पादकता बढ़ाई जा सकती है। इस प्रकार की  व्यवस्था में  कृषि उत्पादन के साथ-साथ पशु-पालन, मछली पालन, वानकी, रेशम-उत्पादन इत्यादी को भी सम्मिलित किया जाता है। समाकलित कृषि से किसान की लाभप्रदता में वृद्धि होती है क्योंकि इसमे खाद और चारे का इंतजाम खरीद कर नहीं करना होता है क्योंकि यह किसान को अपनी कृषि क्रियाओं से ही प्राप्त हो जाता है। 

सही समय पर कटाई, उचित छंटाई एवं भंढारण: सही समय पर कटी फसल सही तरीके से पक जाती है जिसका अच्छा  बाजार मूल्य मिलता है और  किसान की सुखाने और संरक्षित करने की मेहनत और खर्च बच सकता है। किसान अपने उत्पाद को अलग अलग किस्मों में छांट कर बेचें। अनुचित भंडारण  कारणों से उत्पाद की गुणवत्ता  कम हो जाती है और फलस्वरूप अच्छा बाज़ार मुल्य नहीं मिल पता।

कृषि तकनीक एवं परिशुद्ध खेती:  परिशुद्ध खेती उपग्रह के प्रयोग, कंप्यूटर, मोबाइल और अन्य सूचना तकनीकी यंत्र पर आधारित व्यवस्थित प्रबंधन है। इससे पोषक तत्वों के सही  मात्रा और सटीक समय पर प्रयोग के लिए सही जानकारी मिल सकती है। इससे हम कीटनाशक तथा अन्य आदानों के  संतुलित प्रयोग कर सकते हैं। 

फसल बीमा: भारत में कृषि प्राकृतिक आपदाओं जैसे सूखा, बाढ़ आदि से प्रभावित होती है जिससे किसानों की फसल पर  काफी असर होता है । कृषि-बीमा  प्राकृतिक कारणों से होने वाले कृषि नुकसान की भरपाई सस्ते में करने का एक अच्छा  समाधान है। फसल बीमा होने के कारण किसान फसलों की नईं  किस्म और नई कृषि तकनीकों को भी प्रयोग में ला सकता है क्योंकि यह जोखिम, बीमा द्वारा रक्षित होता है। फसल बीमा प्राकृतिक आपदाओं से किसानों की रक्षा और अगले सत्र के लिए अपने क्रेडिट पात्रता सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक है। इस प्रयोजन के लिए भारत सरकार ने देश भर में कई कृषि योजनाओं की शुरुआत की है  जैस -व्यापक फसल बीमा योजना, प्रयोगिक फसल बीमा,  कृषि आय बीमा योजना, राष्ट्रीय कृषि बीमा योजना आदि।

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