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Natural farming: अन्न उत्पादन और गुणवत्ता सुधार के लिए जैविक एवं प्राकृतिक खेती को बढावा

जैविक खेती
जैविक खेती

ग्रामीण विकास व श्रम मंत्री श्री प्रहलाद सिंह पटेल ने बताया कि जैविक और प्राकृतिक खेती भारत की पारंपरिक कृषि पद्धतियां हैं, जिन्हें बढावा देने के लिए निरंतर प्रयास किए जा रहे हैं। जबलपुर में आयोजित "जैविक एवं प्राकृतिक खेती पर क्षेत्रीय संगोष्ठी" में उन्होंने किसानों को जैविक और प्राकृतिक खेती के महत्व के बारे में जानकारी दी।

संगोष्ठी का आयोजन क्षेत्रीय जैविक एवं प्राकृतिक खेती केंद्र द्वारा किया गया, जिसमें बड़ी संख्या में किसानों ने भाग लिया। मंत्री श्री पटेल ने प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के आह्वान का उल्लेख करते हुए कहा कि दुनिया को बचाने के लिए मोटे अनाज, जिसे 'श्री अन्न' कहा जाता है, की ओर बढ़ने की आवश्यकता है। उन्होंने बताया कि श्री अन्न, उच्च गुणवत्ता वाले अनाजों में शामिल है और इसके उत्पादन के लिए बेहद कम पानी की आवश्यकता होती है। उदाहरण के लिये एक किलोग्राम मोटे अनाज के उत्पादन के लिए केवल 1 लीटर पानी की जरूरत पडती है, जबकि एक किलोग्राम गेहूं और धान के उत्पादन के लिए करीब 28 और 37 लीटर पानी की खपत होती है।

जैविक खेती से भूमि की उर्वरा शक्ति की रक्षा:

मंत्री श्री पटेल ने भूमि की घटती उर्वरा शक्ति को बचाने के लिए जैविक खेती को आवश्यक बताया और कहा कि देशी गाय के गोबर से बेहतर कोई विकल्प नहीं है। उन्होंने कहा कि किसानों की ईमानदारी और उनकी मेहनत पर आधारित खेती को प्रमाणीकरण की आवश्यकता नहीं होनी चाहिए। देश में किसानों का विश्वास ही जैविक खेती का सबसे बड़ा आधार है।

जैविक खेती और पशुधन का महत्व:

उन्होंने जैविक और प्राकृतिक खेती में पशुधन की अनिवार्यता पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि देशी गाय न केवल आर्थिक दृष्टि से बल्कि परिवार की सुख-शांति के लिए भी महत्वपूर्ण है। गाय के गोबर का उपयोग खेती के लिए अमृत के समान है, जो भूमि की उर्वरा शक्ति को बनाए रखता है।

चुनौतियां और समाधान: इस संगोष्ठी में जैविक और प्राकृतिक खेती की चुनौतियों पर भी चर्चा की गई। मंत्री ने कहा कि किसानों को जैविक खेती के लिए प्रोत्साहित करना और इसके बारे में जागरूकता बढ़ाना आज की सबसे बड़ी जरूरत है।

पर्यावरण संरक्षण और अन्न उत्पादन की नई दिशा: जैविक एवं प्राकृतिक खेती केंद्र के निदेशक डॉ. अजय सिंह राजपूत और अन्य गणमान्य व्यक्तियों ने भी अपने विचार साझा किए। साथ ही बड़ी संख्या में किसान उपस्थित रहे और जैविक खेती की बारीकियों को समझने का प्रयास किया। जैविक खेती न केवल पर्यावरण को संरक्षित करने का साधन है, बल्कि यह अन्न उत्पादन और उसकी गुणवत्ता को भी बढ़ावा देती है।

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