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वर्ष में तीन मौसम सर्दी, गर्मी, और वर्षा होते हैं, प्रत्येक मौसम में मिट्टी और जलवायु के अनुसार अलग-अलग फसलों की खेती की जाती है। वर्षा के ऋतु में खरीफ फसलों की बुवाई की जाती है, क्योंकि वर्षा जल का सही उपयोग हो सके साथ ही खरीफ की फसलों में पानी की अधिक जरूरत होती है। इन फसलों पर विशेष ध्यान न देने पर फसल उत्पादन में कमी आ जाती है। वर्षा ऋतु में नमी अधिक होने के कारण कीट एवं रोग लगने की संभावना अधिक रहती है। कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार खरीफ फसलों की अधिक पैदावार के लिये आवश्यक प्रबंधन, वैज्ञानिक ढंग से खेती और फसल चक्र का उपयोग करना बहुत जरूरी है। खरीफ मौसम में अधिकतर धान, मक्का, मूंग, बाजरा, ग्वार, सोयाबीन, कपास, मूंगफली, तिल, अरंडी, अरहर आदि फसलों की बुवाई की जाती है।
खरीफ मौसम में फसलों से अधिक उपज लेने के लिए मृदा की जांच करना जरूरी है। फसलों में सही मात्रा में खाद व उर्वरक देने के लिए फसलों की बुवाई से एक से डेढ़ माह पहले मृदा की जांच करवाकर उचित मात्रा में उर्वरकों का इस्तेमाल करें। जांच हेतु नमूना लेने के लिए खेत के ऊपरी ऊपरी परत को हल्का सा हटाकर करीब 15 CM गहराई तक की मृदा निकाल लेते हैं। एक खेत में कम से कम पांच छह स्थानों से नमूना एकत्र करते हैं। सबसे पहले 1 किग्रा मृदा नमूने को जांच के लिये भेजने से पहले नमूने की पहचान के लिए नमूने पर किसान का नाम, खेत का नाम, गांव का नाम, जिले का नाम तथा पिन कोड लिखकर मृदा जांच केन्द्र भेजना चाहिए।
मृदा जांच के बाद यदि मिट्टी में लवणीयता व क्षारीयता अधिक मात्रा में हो तो मृदा में कंपोस्ट सड़ी हुई गोबर की खाद पर्याप्त मात्रा में मिलाकर देनी चाहिए। साथ ही अच्छी किस्मों की बुवाई करना चाहिए। इसके बाद मृदा में ढेचे की हरी खाद, 50 से 250 किलोग्राम जिप्सम, 200 से 250 सड़ी हुई गोबर की खाद वर्षा ऋतु में प्रति हेक्टेयर की दर से डालना चाहिए और अगेती रबी फसलों में सरसों, गेहूं, चना, मटर आदि की बुवाई करनी चाहिए।
खरीफ फसलों की बुआई के लिए आवश्यक है कि मई माह में मिट्टी पलटने वाले हल से एक गहरी जुताई करना चाहिए, जिससे मृदा में दबे हुए अनेक रोग कारक कीट नष्ट हो जाएंगे। फसलों के अधिक उत्पादन के लिये अच्छी किस्मों का चुनाव करना चाहिए। जलवायु और मृदा के आधार पर विभिन्न स्थानों पर अलग-अलग फसलों की बुवाई की जाती है। बुवाई करने से पहले हमें विभिन्न क्षेत्रों की जलवायु और मिट्टी के आधार पर फसलों का चयन करना चाहिए।
इस प्रकार करें उर्वरकों का प्रयोग: आवश्यकतानुसार फसल और मृदा में फास्फेटिक तथा पोटाशिक उर्वरकों की संपूर्ण मात्रा बुवाई के समय बीजों की दो से तीन सेंटीमीटर गहराई बुवाई करनी चाहिए। नाइट्रोजन की संपूर्ण मात्रा का एक तिहाई भाग उर्वरकों के साथ मिलाकर बुवाई के समय डालना चाहिए। एक तिहाई भाग बुवाई के 25-30 दिन बाद खड़ी फसलों व बची हुई तिहाई भाग को 40-45 दिन बाद डालना चाहिए। असिंचित क्षेत्रों में नाइट्रोजन की कुल मात्रा को खड़ी फसल पर छिड़काव विधि द्वारा भी दिया जा सकता है। इसके लिए यूरिया का 600 से 800 ग्राम प्रति लीटर घोलकर प्रति हेक्टेयर फसल बुवाई के 30 से 40 दिन बाद खड़ी फसल में छिड़कना चाहिए। बुवाई के समय जैव उर्वरक व दाल वाली फसलों में राइजोबियम कल्चर बीजों में मिलाकर बोना चाहिए।
बीजों का करें उपचार:
इस प्रकार करें बीजों की बुवाई: छोटे बीजों की बुवाई 2-3 सेंटीमीटर और मोटे बीजों वाले फसलों के बीज 4 से 5 सेंटीमीटर गहराई में उचित नमी वाले स्थान पर बुवाई करना चाहिए। शाम के समय बीजों की बुवाई करना ज्यादा अच्छा रहता है। अधिकांश खरीफ फसलों की बुवाई वर्षा शुरू होने के बाद ही की जाती है लेकिन जिन क्षेत्रों पर सिंचाई के साधन उपलब्ध हो वहां पलेवा करके जून माह के अंत तक बुवाई कर देना चाहिए, जिससे फसलों की पैदावार अच्छी रहती है।
निराई गुड़ाई व खरपतवार नियंत्रण: खरपतवार नियंत्रण के लिये 1-2 बार खुरपी या कुदाल द्वारा निराई-गुडाई करके खरपतवार को नष्ट किया जा सकता है। आप विभिन्न यंत्रों से भी निराई-गुडाई जैसे- हैंड हो, कुदाल, फावडा, बैल या ट्रैक्टर द्वारा चलने वाले हैरो या कल्टीवेटर से खरपतवारों का काफी हद तक नियंत्रित कर सकते हैं। स्वच्छ बीच शैया तकनीकि से बीज की बुवाई से 2 सप्ताह पहले खेत में पलेवा करके जुताई कर देते हैं जिससे खेत में खरपतवार उग जाते हैं उसके बाद खेत की पुनः जुताई करके खरपतवार नष्ट करने के बाद फसल की बुवाई की जाती है। निराई-गुडाई कभी भी 4-5 सेंटीमीटर से गहरी नहीं करनी चाहिए। मूंगफली की फसल में सुईया बनना शुरू होने के बाद कभी भी निराई गुड़ाई या मिट्टी चढ़ाने की क्रिया नहीं करनी चाहिए।